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अधिकमास निर्णय. मार्गपर चले, और कठिन आचार पालकर बतलावे. तीर्थकर-और चक्रवर्तीयोने संसार छोडकर दीक्षा लिइहै. श्रद्धारहित-केशरका तिलक करनेसे श्रावक होगये एसा समजना गलतहै. जैनशास्त्र फरमातेहै. श्रावकधर्मके (२१) गुण और (१२) व्रत इख्तियार करना चाहिये.
[ दोहा.] चौदह चुके बारह भुले-छकायाके न जाने नाम, नगर दंढोरा फेरिया-श्रावक महारा नाम, १ माला फेरत हाथमें-जिभहिलत मुखमाहि,
मनुवा फिरत बजारमें-एभी समरन नाहि, २ श्रावकको रात्री भोजन नहीं करना चाहिये. व्यापारमेभी असत्य बोलना नही सदाचारसे चलना, जीकंद नही खाना, धर्मखातेकि बोली हुइ रकम तुर्त धर्मकाममे खर्च देना, अपने चोपडेमे जमा कररखना ठीक नही. धर्मका गुनाहहै. व्याजके लोभसे असली रकमभी रहजातीहै. हरसाल ऐक जैन तीर्थकी जियारत करना, ताबेउमर नवलाख नमस्कारमंत्र पढना, चौदहनियम हमेशा धारण करना. बडे बडे पापारंभ छोडना जिस जैन मंदिर या जैनतीर्थके देवद्रव्यका हिसाब अपने हस्तगतहो. वो देवद्रव्य जिन मंदिरके खजानेमे रखना, और मुनिम गुमास्ते रखकर कामचलाना, मगर अपने घरमे देवद्रव्य नही रखना. हरसाल देवद्रव्यका हिसाब छपवाकर जाहिर करना और उसपर चतुर्विध जैनसंघकी सलाहसे पांच श्रावक कार्यकर्त्तातरीके मुकरर करना. चाहे गुजराती, मार
काडी, पंजाबी, दक्षिणी, काठियावाडी या फछी कोइश्रावकहो ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com