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आधिकमास निर्णय.
बारेमें आपका लेख जैनपत्रमेंभी पढाथा, बेशक! आदमीकी उचाइके. मापमें चोटीका माप नहीगिना जाता, वगेरा अभिप्राय आयेथे.
३-अधिकमहिना जिसवर्समे आवे उसवर्सका नाम अभिवर्द्धितसंवत्सर कहतेहै, और वो तेरहमहिनोंका होताहै, यह एक जगजाहिर वातहै, खरतरगछ अंचलगछ लोंकागछवालेभी जब कभी दो आषाड माहिने आतेहै, पहले आषाडको चातुमासिक व्रत नियमकी अपेक्षा गिनतीमें नहीलेते, जब कभी दो पौषमहिने आतेहै पौषवढी दसमीका तीर्थकर पार्श्वनाथमहाराजका जन्मकल्याणिक एक पौषमें करतेहै, एक पर्युषणके बारेमें कल्पसूत्रके आधारसे (५०) दिनका पक्ष लेकर अधिक महिना गिनतीमे लेनेकी बात अगाडी लातेहै, मगर समवायांगसूत्रके आधारसे जो संवत्सरीके बाद (७०) दिन रखनेका पाठहै उसको खयालमें नहीलाते, और लाजवाब होतेहै, बस ! वात समजनेकी इतनीहीथी मगर अधिक महिना वार्षिकपर्वमे गिनतीमे लेनेवालोने रजका गज बनादिया. और बातको बढादिइ.
४-खतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपनी लघुपर्यषणानिर्णय कितावमे जिनजिन शास्त्रोंके नाम लिखकर अधिक महिना गिनतीमे लेनेका कहतेहै, उनमे सिर्फ ! इतनाही लिखाहैकि अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह महिनोका होताहै, जैनशास्त्रके फरमानसे चौमासके चारमहिनोंमे अधिक महिना कभी आता नहीं. इससाल मुताविक जैनशास्त्रके दो भाद्रपदमाहिने आये नहींथे पाठवतलातेहै, जैनशास्त्रोका और बरताव करतेहै,
अन्यमतके पंचांगपर इसका क्या सवबहै ! कोइ जवाब देवे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com