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आधिकमास निर्णय.
मानीहुइवातपर आना. और फिर मुखसे कहनादोंनों आषाड मान्य है. यह क्या बात हुइ. इसीको अगर अछीतरहसमजलिइजाय तो फिर शकही किसवातका रहे. अपने पक्षकों जहां पुष्टि मिले वहां उसवातको मानना. और जहां पुष्टि न माले वहां नही मानना यह कौन इन्साफ हुवा? बल्कि! सचपुछोतो एकतरहका पक्ष हुवा, जब सभा होगी उसमे विद्वान्लोग वेठेगें यह पक्ष कैसे ठहरसकेगा? जैसे खरतरछके मुनि श्रीयुत माणिसागरजीकी तर्फसे लघुपर्युषण निर्णय जाहिर हो चुका है, वैसे मेरी तर्फसे पर्युषणपर्व निर्णय जाहिर हो चुकाहै, दोनोंकों मीलाकरदेखलिजिये! और सचका इम्तिहान करलिजिये. सत्तहुवा आपभी चातुमासिकवत नियमकी अपेक्षा अधिक महिना गिनतीमें नही लेते, तपगछवाले फिर और क्या कहतेहै ? अगर कहाजाय पहला आषाड धूपकालके चौमासेमें चलागया तो जवाबमें मालुम हो उधर पांच माहिने होगये, फिर बात क्या हुइ ? बात यही हुइकि-दोनो आपाडमेसे एक आषाड चौमासिक व्रतनियमकी अपेक्षा आपनेभी गिनातमें नही लिया.
१९-दुसरी दालिल तिथिके बारेमेभी देताई. सुनिये! हरेक पखवाडा पनराहरौजका मानाजाताहै, मगर कइदफे तिथिकी कमीबेसी होनेसे कभी चौदहदिनका या कभी सोलहदिनका पखवाडाभी होताहै लौकिकपंचांगकी अपेक्षा कभी तेरहदिनकामी होताहै. बतलाइयें आप पाक्षिक प्रतिक्रमण पनरांहमे रौजकरेंगे सोलहमे रौज करेंगे चौदहमे या तेरहमें रोज करेंगे? इसका जवाब दिजिये! आपकी सरलदिन गणना उसवख्त कहां चली जायगी? यातो कमी बेसी दिनकी मान्य
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