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आधिकमास निर्णय.
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नाही वर्नन लिखाहै कि अभिवर्द्धित संवत्सर तेरहमहिनोका होताहै. इसके शिवाय दुसरी बात नही आती. खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अधिकमहिना चातुर्मासिक वार्षिक
और कल्याणिक पर्वके व्रत नियममें गिनतीमें लियाहै, एसा पाठ आजतक क्यों नही बतलासके? और जब दो आषाड आतेहै. जब खरतरगछ अंचलगछवाले पहले आषाडको चातुमासिक पर्व कृत्यमें क्यौं छोडदेतेहै ? दो पौष आतेहै तब तीर्थकर पार्श्वनाथका जन्मकल्याणिक एक पौषमे करतेहै, और एक पौषको कल्याणिक पर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा क्यों छोडदेतेहै ? इसका जवाब क्यों नहीं देते. लौकिक पंचांगकी अपेक्षा जब दो आसोज आवे तब सिद्ध चक्रका तप दो दफे क्यों नहीं करते? इससाल दो भादवे लौकिकपंचांगकी रुहसे माने और संवत्सरीकेबाद (७०) दिन हुवे बाद चौमासा खतम करके विहार क्यों नही किया? पर्युषणपर्व निर्णय किताबमें मेने पुछाथाकि अगर अधिकमहिना गिनतीमें लेनेका कहतेहो तो पहले आषाडको चौमासी पर्वकी अपेक्षा गिनतीमें क्यों नही लेते ? इसका जवाब आजतक नही दिया, इसकी क्या वजहहै ? . - हम और हमारे अनुयायी तपगछवाले अधिक महिनेके बारेमें मुताबिक जैन शास्त्रके फरमानपरही चलतेहै. और अधिक महिनेके वर्तनकों स्वमतानुयायी मानतेहै. मगर खरतरगछके मुनि श्रीयुत माणिसागरजीकीतरह एसा नहीं मानते, आधेक महिना गिनतीमें लिया है एसा कहतेभी जाना. और चातुर्मासिक पर्व वगेराके व्रतनियमकी अपेक्षा पहले आषा
डको गिनतीमेसे छोडतेभी जाना, जैनशास्त्र फरमातेहै कि___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com