Book Title: Parmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Author(s): Jineshratnasagar
Publisher: Adinath Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री परमात्मा का अभिषेक-एक विज्ञान Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ अहँ नमः। लेखक-संपादक मुनि श्री जिनेशरत्नसागारजी म.सा. सहायक मुनि श्री वीरेशरत्नसागरजी म.सा. श्री परमात्मा का " अभिषेक-एक विज्ञान । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक-प्राप्ति स्थान जयपुर श्री ललित जी दुग्गड़ lalitduggar_jaipur@yahoo.com इंदौर श्री वीरेन्द्र कुमार बग Savarn Vatika Society, Pipaliyana Road Near Tilak Nagar, Indore-452018 मुम्बई श्री हीरेन अ. शाह Niranjan Nivas, Gr & 1.8, Dubhash Lane, V.P. Road, Mumbai - 400004 hirrenshah@gmail.com जयपुर श्री अनिलजी बैद Devashish, Uniara Garden, Pushpa Path, Moti Dungri Road, Jaipur - 302004 baidanil@gmail.com मध्य प्रदेश संजय छजिड़ Anand Dham. Tirth Gasohi, Distt. Mandsaur, Madhya Pradesh Mob.: 9098377889 प्रकाशक: आदिनाथ प्रकाशन 120-C, Jain Nagar, Meerut City- 250002 info@bhomiapublication.com Ph.: 0121-2521074 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भोपावर तीर्थ मंडल श्री शांतिनाथ भगवान श्री भोपावर तीर्थ जीणों द्वारक मालवभूषण महातपस्वी परमवारक गुरुदेव प.पू. आचार्य श्री नवरत्नसागर सूरी जी म.सा. जिनके पावन प्ररेणा से पिछले लगभग दस से अधिक वर्षों से लगातार प्रतिदिन भगवान श्री शांतिनाथ प्रभु का 27 बार श्री संतिकर स्तोत्र के पाठ द्वारा जल एवं के अखंड अभिषेक हो रहे हैं। दूध Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ श्री पार्श्वनाथाय नमः। श्रद्धेय मनिराज श्री जिनेश रत्न सागर जी महाराज एवं सहवर्ती मुनिजन। आप सबको खूब-खूब वंदन सुखसाता, खूब-खूब वंदन सुखसाता, वंदन सुखसाता। विशेषः यह समाचार जानकर अत्यंत खुशी हुई कि आप श्री जी। जिनेन्द्र परमात्मा के अभिषेक विधियों को प्रकाशित कर रहे हैं। इस प्रकाशन से अनेक लाभ होंगे। अभिषेक प्रक्रिया के अनुभव आप श्रीजी ने जो ओस्त्रा में हम मुनियों को सुनाए थे, तब से इच्छा थी कि यदि इन अनुभवों और विधियों का प्रकाशन हो जाए तो समाज के लिए एक नई दिशा बन जाएगी। स्त्रोत्रों, स्तुतियों, रासों एवं कई पुस्तकों में पढ़ते ही थे, अभिषेक की महिमा-जैसे कि : नृत्यंति नित्यं माणि पुष्प वर्मं, सृजन्ति गत्यंति च मंगलानि। स्त्रोमाणि गोत्राणि पटंति मंत्रान्। कल्याण भाजो हि जिनाभिषेके । बृहच्तान्ति।। जो जिनेन्द्र परमात्मा के अभिषेक के समय मणि पुष्पादि बरसाते हुए विद्यावधे नृत्य करते हैं, मंगलचिन्हों को बनाते हैं, स्त्रोत्र और मंत्र बोलते हैं, अपने गोत्र बतलाते हैं वे जीव निश्चित ही कल्याण के भागी होते हैं। अर्थात् पुण्य बांधने एवं भोगते हुए मोक्ष स्थिति को प्राप्त करते हैं। एव अन्य गाथा लिखना उचित मानता हूँ। येषाअभिषेककर्म कृत्वा मत्रा हर्षकरात् सुखम् सुरेन्द्राः तृणमापि गणवन्ति नैव नाकं, प्रातः सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः। जिनका अभिषेक करके हर्ष से मंत्र बने हुए देवेन्द्रादि स्वर्गीय सुख को तिनके जैसा - तच्छ। मानते हैं ऐसे जिनेन्द्र परमात्मा प्रातःकाल में अपने कल्याण के लिए हैं। आदि। ऐसे तो अनेक पद हैं। आत्म कल्याण का कारण है जिनेन्द्र परमात्मा का अभिषेक। इतना ही नहीं, रोग, शोक, भय, कष्ट निवारण है जिन अभिषेक। श्रीपाल और मयणासुंदरी की नहति/न्वांगी टीका का आचार्य श्री अभयदेव सूरीश्वर जी महाराज की कहानी आदि चरित्रकथाएं मात्र जिन अभिषेक के महत्त्व को ही बतलाती हैं। आचार्य श्री मानदेव सूरीश्वर जी महाराज द्वारा परिचित लघु शांति वे साथ जिनेन्द्र परमात्मा का अभिषेक दैविक उपद्रवों के नाश का कारण बन गया वैसे ही आप श्री जी के द्वारा नानाविधि लिखित, उद्धृत स्त्रोत्रों एवं मंत्रों पूर्वक अभिषेक मंगलकारी एवं संकटहारी साबित होगा यह विश्वास है। आप श्री जी ने यह कार्य किया यह एक नई विद्या है। इसके लिए हमारी मंगलकामनाएं स्वीकारें। इस पुस्तक के मुद्रण का लाभ गुजरानवालीय श्रीमान् शांतिलाल जी खिलौने वालों ने लिया है। यह भी उन्होंने बहुत-बहुत अनुमोदनीय कार्य किया है। वे जो जिनेन्द्र भक्त हैं त्यों ही गुरुभक्त हैं। गुरुभक्ति के रूप में दिल्ली स्मारक पर किया कराया काम हमेशा स्मार्य है त्यों ही यह कार्य उनकी जिन भिक्ति का साक्ष्य रहेगा। उन्हें भी इस कार्य के लिए आशिष। __ धर्मधुरंधर सूरीजी म.सा. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपस्वी साधक पपू गिनेशरत्नसागरगी म.सा. की तपोगाथा प.पू. आचार्य नवरत्नसागरसरि जी म.सा. के शिष्य मुनि श्री जिनेशरत्नसागर जी म.सा. 68 उपवास संलग्न 52 उपवास संलग्न 45 उपवास संलग्न 42 उपवास संलग्न अभिग्रह पूर्वक 32 उपवास 2 बार उपवास 6बार उपवास 2 बार उपवास 9 बार 68 बेले बेले 44 बेले बेले 44 तेले 44 बेले वर्षांतम बेले से वर्षांतप छ: विगय त्याग से मौन पूर्वक | आजीवन छः विगय का त्याग सरल स्वभावी-स्वाध्याय प्रेमी मुनि श्री वीरेशरत्नसागरजी म.सा. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुझे हर्ष है कि आज शांती लाल जी "खिलौने वाले” दिल्ली निवासी ने मेरे ग्रन्थ समान 'श्री परमात्मा का अभिषेक-एक विज्ञान' के प्रकाशन का लाभ लिया है । सुप्रसिद्ध उद्योगपति होते हुए भी आप सादा जीवन, उच्च विचार के प्रतीक हैं। सरलता, सादगी और संयम आपके जीवन की त्रिवेणी है। आप न केवल धर्म प्रेम से ही ओतप्रोत हैं बल्कि जन सेवा में भी आपकी असीम निष्ठा है सामुहिक यात्राओं के दौरान आपने अपने सामान को स्वयं उठाना, सभी सहधर्मी भाईयों की सुख सुविधा का ध्यान रखना एवं उनको भोजन कराने के बाद फिर स्वंय भोजन करना ये सभी बातें आपके समाज सेवी होने का ज्वलन्त प्रमाण है। आपने अपने साधार्मिक व अन्य भाई बहनों की हमेशा प्राकृतिक तरीके से जीवन को कैसे स्वस्थ रखना चाहिए की प्रेरणा दी है तथा सभी के सुख दुख में शामिल हुए है। आपने अपने पिता जी के एक वचन “किसी भी संयम, प्रेमी, साधू-साधवी की गोचरी का लाभ लेना अत्यन्त लाभकारी है" को बांध लिया अपने जीवन में और जिस प्रकार आपने अपने जीवन में व्यावच किया वो अनुमोदनिये है । आपने किसी भी समुदाय में भेदभाव ना रख कर हर साधू साधवी के मां-बाप बनकर जो सेवा की है, वह सेवा जो उन साधू साधवियों के दिलों में बसी हुई है और स्मरण करने पर वे भूरी भूरी अनुमोदना करते हैं। मेरी दिक्षा से पहले मेरा जो विहार जम्बु विजय महाराज जी के साथ में एक वर्ष तक रहा उस समय पर उत्तर भारत में विहार करते हुए जम्बु विजय महाराज जी के सामने स्वास्थ्य व परिवाहन व अनेक समस्याओं पर आप तुरन्त समक्ष हो जाते थे और जब आप उनकी सारी समस्याओं का निवारण कर देते थे तो उन्होंने आपको एक उपाधी दे दी "संकट मोचन शांतीलाल जी" । आप अपने जीवन में केवल धनोपार्जन को अधिमान न देकर जनसेवा धर्म परायणता और सहधर्मी – उत्थान को महत्वपूर्ण समझा है। आप में धार्मिक भावना कुट - कुट कर भरी है। आपका तन-मन-धन से वल्लभ स्मारक, कांगड़ा तीर्थ, श्री आत्मानन्द जैन हाई स्कूल अम्बाला, आत्मानन्द जैन सभा रूप नगर, आत्मानन्द जैन सभा रोहिणी को दिया गया योगदान को नहीं भुलाया जा सकता जो कि अनुमोदनीय है। वल्लभ स्मारक के प्रारम्भ के निर्माण के समय में जब आप किसी भी पद पर नहीं थे फिर भी आपने कर्मचारियों की एक्सीडेंट (Accident) होने पर उनकी चिकित्सा करने का जो योगदान दिया व निर्माण का कार्य रूक ना जाये इस पर तत्पर रहे थे और 12 वर्ष का बहूमुल्य समय आपने उस तीर्थ पर समर्पण किया जो सदाकाल याद रहेगा । सन् 1973 में आपके औद्योगिक संस्थान में आग लग गई थी सब कुछ जलकर राख हो गया था यहाँ तक कि जीवन यापन करने को भी आपके पास कुछ ना बचा उस समय परम विदुषी महतरा साध्वी श्री मृगावती जी महाराज के चरणों में आप उपस्थित हुए और उनके मुख से निकले शब्दों में "सुन्दरम अति सुन्दरम, एक परिवार नष्ट होने से बच गया है आपका भविष्य और भी उज्जवल होगा" महतरा साधवी जी के शब्द अक्षरशः सत्य सिद्व हुए। आपके जीवन का लक्ष्य जितनी मेहनत करो उतना फल पाओ ही आपके उद्योग को खिलौने के व्यापार में सारे देश में अब्बल नम्बर पर लेकर गया है। जिसमें आपने अपने ही देश के ही बनाये खिलौनों का व्यापार किया और कितने ही फैक्टरियों और लोगों को रोजगार दिलवाया जो कि आज भी आपको हृदय से स्मरण करते हैं। मेरा विश्वास है कि आप जैसे धर्मानुरागी और महान व्यावचकर्ता भक्त का आशीर्वाद और मार्ग दर्शन दूसरे श्रावक और श्राविकाओं को वरदान सिद्ध होगा । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REN Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2000 20 MOON Page #10 --------------------------------------------------------------------------  Page #11 --------------------------------------------------------------------------  Page #12 --------------------------------------------------------------------------  Page #13 --------------------------------------------------------------------------  Page #14 --------------------------------------------------------------------------  Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ III fly ។ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *XX Kis **** *** ****** Page #17 --------------------------------------------------------------------------  Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय सूची 1. मानव विकास का आधार 2. जल अभिषेक का महत्व 3. अभिषेक में गाय के दूध का महत्व 4. शाश्वत आचार अभिषेक निधान की प्राचीनता 5. स्नात्रमहोत्सव में परमात्मा के जन्म कल्याणक महोत्सव का वर्णन 6. इन्द्रादिक द्वारा भगवान का जन्माभिषेक 7. अभिषेक के प्रभाव 8. अभिषेक विधि 9. परमात्मा स्तुति 10. श्री वज्रपंजर स्तोत्रम् 11. क्षिपॐस्वाहा। 12. संकल्प 13. अथ श्री सिद्धचक्र दंडक 14. श्री 24 तीर्थंकर विद्या 15. श्री सिद्धसेन दिवाकरसूरि विरचित -श्री शक्रस्तव16. भक्तामर सूत्र 17. श्री पार्श्वनाथस्य मन्त्राधिराज स्तोत्रम् । 18. श्री सर्वकार्य सिद्धिायक श्री शान्तिधारा पाठः। 19. श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्रम् । 20. प्राचीनतम स्तोत्रमिदं श्री पार्श्वनाथस्य 21. श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र स्तोत्रम्। 22. श्री चिंतामणि पास स्मरण 23. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्रम्। 24. श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम्। 25. अथ श्री शान्ति दंडक। 26. बृहत्शान्ति स्तोत्रम् 27. श्री वसुधारा पाठ 28. श्री अरिहंत प्रभूजी के 1008 नाम Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानव विकास का आधार मानव विकास का आधार तीन बाबतों पर निर्भर करता है, यन्त्र-मन्त्र और तन्त्र। मंदिर का जो शिल्प है वह यन्त्र है, स्तुति या प्रार्थना जो है वह मन्त्र है और परमात्मा का अभिषेक केशर, चंदन पूजा या विलेपन आदि जो क्रिया है वह तन्त्र है। कोई भी दो द्रव्य मिलने से उसमें रासायनिक प्रक्रिया होती है और फलस्वरूप गुणधर्म में परिवर्तन होता है। इसीलिये विविध देशी जडी बूटियों से मिश्रित जल (अनेक नदियों एवं विविध कूप से प्राप्त) से परमात्मा का अभिषेक का आग्रह होता है। कोई भी नये या पुराने अपूजित प्रतिमा यन्त्र आदि को प्रतिष्ठित करने से पहले अभिषेक का विधान महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से हमारे पूर्वजों को इस सभी बातों का सम्पूर्ण ज्ञान था साथ में उनके पास आध्यात्मिक दृष्टि भी थी इसीलिये वे ऐसी रचना और विधि दे पायें कि जिससे जीव मात्र का कल्याण हो लेकिन नुकशान कदापि न हो, और हमें निर्दोष अहिंसात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हुई। अतः विविध प्रकार के तीर्थादि के जल अभिषेक से विघ्नों और अशुचि का नाश होता है, और दूध के अभिषेक से आरोग्य, ऐश्वर्य, यश लाभ में वृध्धि होती है। नृत्यन्ति नृत्यं मणि पुष्प वर्ष, सृजन्ति गायन्ति च मंगलानि, स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान, कल्याण भाजो हि जिनाभिषेके। बड़ी शान्ति का पाठ हम हमेशा शुभ कार्यों में एवं खास करके स्नात्र के बाद जरूर करते हैं, जिसको शान्ति कलश भी कहते हैं। उसमें परमात्मा के अभिषेक का स्थान, विधि, महत्व और अभिषेक द्वारा विघ्नों का नाश एवं तुष्टि-पुष्टि, ऋद्धि-वृद्धि, शान्ति और मांगल्य का कारक बताया है। उसी स्तोत्र की 18वी गाथा में अभिषेक का वर्णन करते हुए लिखा है- नृत्य, मणियों आदि की वर्षा, पुष्पवृष्टि, शंखनाद, घंटनाद, विविध प्रकार के वाजिंत्र नाद, मंगलगीतगान, प्रभावी स्तोत्र पाठ एवं मन्त्रोच्चार सहित किया गया जिनेश्वरदेव का अभिषेक महाकल्याणकारी है। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन परंपरा में तीर्थंकर परमात्मा के जन्म के बाद जब 56 दिक्कुमरी द्वारा भगवान और उनकी माता के शुचि कर्म के तुरन्त बाद परमात्मा को खुद इन्द्र महाराजा अपने कर कमलो में लेकर मेरू पर्वत पर ले जाकर अभिषेक विधान का आयोजन करते हैं। यह कलश देवताओं की मदद से आठ प्रकार के कलशों, हीरा, मानिक, सुवर्ण, रोप्य, मिट्टी आदि द्रव्यों से बना हुआ होता है जो कि 25 योजन ऊँचा और 12 योजन चौड़ा तथा विशाल होता है । ऐसे एक कोटि साठ लक्ष की संख्या में क्षीर समुद्र के जल द्वारा परमात्मा का अभिषेक होता है क्योंकि वहाँ पर क्षीर समुद्र का जल ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इतनी विशाल जल राशि और तुरन्त कर जन्मा बालक एवं मेरू पर्वत जैसा स्थान आपको जरूर संशय में डालता होगा, और संशय होना स्वाभाविक भी है, ऐसा ही संशय खुद इन्द्र महाराजा को भी हुआ था और भगवान ने उनकी शंका का निराकरण अपनी शक्ति का परिचय देते हुए सिर्फ अपने पैर के अंगूठे को हिलाते ही मेरू पर्वत के साथ सारी सृष्टि को कंपायमान किया था । शास्त्रों में भगवान के बल का वर्णन अनन्त बताया है। लेकिन यहाँ पर याद रहे कि अनन्त शक्ति के स्वामी तीर्थंकर परमात्मा के इस साक्षात् अभिषेक में सिर्फ विशिष्ट शक्ति के स्वामी देवी - देवता ही शामिल हैं, किसी भी मानव का वहाँ पर अभिषेक करना तो दूर किन्तु देख पाना भी संभव नहीं है। वहाँ पर जाने योग्य न तो हमारे पास वैसा वैक्रिय धारी शरीर है और न शक्ति है। फिर हमारे मन में एक प्रश्न जरूर उठता है कि हम किस देवता के आचार का काल्पनिक अनुकरण कर रहे हैं । महाजनों येन गतः स पन्थाः ज्ञानिओं ने ऐसा किस आधार पर फरमाया, इसका आधार क्या हो सकता है, ये सब प्रश्न हमारे मन में उठने स्वाभाविक हैं। जल अभिषेक का महत्व थ्वी पर विविध प्रकार के जल स्थान और गुणों पर आधार के पाये जाते हैं। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन्मन्यनन्त सुखदे भुवनेश्वरस्य, सुत्रामभिः कनकशैल-शिरः शिलायाम् । स्नात्र व्यधायि विविधाम्बुधि-कूप-वापी-कासार-पल्वल-सरित-सलिलैःसुगन्धैः तां बुध्धिमाधाय हृदीह काले, स्नात्रं जिनेन्द्रप्रतिमागणस्य। कुर्वन्ति लोकाः शुध्धभावभाजो, महाजनो येन गतः स पन्थाः। वापी-कुप-हृदा-म्बुधि-तडाग-पल्वल-नदी-निर्झरादिभ्यः। आनीतै-दिविमलजलै स्तानधिकं पूरयन्ति च ते। पानी के प्रकार : नादेय-औद्रिद-नैर्झर-ताडाग-वाप्य-कोप-चोणिट्य-पाल्वल -विकिर-कैदार-इत्यादि गंगा, सिन्धु, नर्मदा आदि नदियों के पानी नादेय जल कहलाते हैं। अन्दरुनी जमीन फाड़कर बहते पानी को ओंद्रमिंद जल कहते हैं। पर्वत जैसे ऊँचे प्रदेश से गिरते हुए जल को निर्झर जल कहते हैं। पहाड़ों में रुककर बने हुए बड़े जलाशयों को सरोवर कहते हैं। इसे सारस जल भी कहते हैं। जमीन पर मानव सृनित या कुदरती बने हुए जलाशयों को तडाग कहते हैं। भूमि में अल्प विस्तार वाला गहरा मंडलाकृति वाले कूप के पानी को कोप कहते जिस कूप में पगथी रहती है उसे वाव कहते हैं, उसके पानी को वाप्य जल कहते हैं। जो कूप कुदरती बना हुआ एवं लताओं से आवृत हो उसे चुण्टि कहते हैं। उसके जल को चोणट्य कहते हैं। छोटे तालाबों को पल्लव कहते हैं, उनके जल को पाल्लव कहते हैं। नदी के रेत वाले पट में खुदाई कर जो जल प्राप्त होता है उसे विकिर जल कहते हैं। खेतों में क्यारियों में जो जल संचित है उसे केदार जल कहते हैं। इस तरह स्थान विशेष से पानी के नाम और गुणों में अन्तर पड़ता हैं। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सबसे अच्छा जल बरसाती माना गया है, दूसरे क्रम में नदी का, शेष जल क्रम पृथ्वी पर लगभग 70 भाग पानी है, और जीवन का मुख्य आधार पानी है। हमारे शरीर में भी 70 भाग पानी है। पानी में पारदर्शिता है। पानी में सद्रुपता है। पानी में मुख्य प्र रूप से शीतलता का अद्भुत गुण समाहित है। उबलता हुआ जल भी अग्नि को शान्त कर देता है। शुचिता पानी का प्रमुख गुण हैं, इसीलिये अभिषेक एवं शारीरीक शुद्धि के लिये स्नान में उसका उपयोग होता है। पानी स्फूर्तिदायक है इसीलिये श्रमहर उपायों में निद्रा, तन्द्रा इत्यादि के निवारण में जल को प्रमुख स्थान दिया है। पानी मे सतत गतिशीलता का गुण भी उपलब्ध है। इसमें गतिरोध तोड़ने की विशेष क्षमता, पाताल-पर्वत भेदकर अपना रास्ता बना लेता है। जहाँ कहीं भी मूर्ति स्थापना है वहाँ पर दूध एवं पानी द्वारा अभिषेक विधान अवश्य पाया जाता है। हिन्दू धर्म की परंपरागत विधि में हम पाते हैं कि शिवलिंग पर सतत जल द्वारा अभिषेक का विधान देखने में आता है। शिवलिंग का आकार और आज की आधुनिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाली अणु भट्ठी (न्यूक्लियर प्लांट) का आकार समान है, और गौर करने की बात यह है कि दोनों को ही सतत जल धारा की 57 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यकता बताई गई है। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है?यह भी आश्चर्य जनक और शोध का विषय है कि भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग एवं 52 शक्तिपीठ क्या हैं? कहीं वह आधुनिक युग के अणु संयत्र और पावर हाउस का स्रोत तो नहीं है। पानी द्वारा ही इस शक्ति को नियंत्रित रखा जा सकता है। शक्ति के दो प्रकार होते हैं, दैविक और आसुरी । अगर उसे कन्ट्रोल नहीं किया गया तो शक्ति का रूपान्तर होने का खतरा बढ़ जाता है, जो विनाशकारी हो जाता है। हाल ही में हमने अनुभव किया कि जापान में सूनामी के कारण आवश्यक पानी न मिलने पर जीव जगत को कितना पारावार नुकसान झेलना पड़ा। शास्त्रों में तीर्थों के जल का प्रभाव बताया गया है जैसे कहीं पर गजकुंड के जल का प्रभाव, तो कहीं पर पवित्र नदी के जल का प्रभाव, तो कहीं पर मंत्रित जल का प्रभाव, तो कहीं पर विशिष्ट ग्रहों की स्थिति आने पर अमुक नदी में स्नान और अभिषेक के प्रभाव के भी वर्णन मिलते हैं। जग प्रसिद्ध कुंभ मेले का आयोजन और स्थल इसी आधार पर होता है। आज प्रायः सभी जैन श्वेताम्बर मंदिरों में स्नात्रपूजा अवश्य होती है। अभिषेक में गाय के दूध का महत्व हे...दूधनी धारा शिर पर वहेती, थाये आखी पावन धरती; जीव-अजीव ने जे शिव करती, सहुना मन वांछित पूरती। भगवान का अभिषेक मेरू पर्वत पर क्षीर समुद्र के जल से होता है, क्षीर यार्न दूध । दूध स्वरूप इस समुद्र के जल की एक बूंद भी शरीर को निरोगी बना देती है, ऐसा उसका गुण है। इस लोक में प्रवाही में सर्वश्रेष्ठ अगर कोई प्रवाही है तो निःसंदेह वह गाय का दूध ही है। गाय का दूध इस पृथ्वी पर अमृत है। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीर पुष्ट करने वाला, आरोग्य की रक्षा करने वाला, रोगों का प्रतिकारक तत्व दूध में ही मिलता है। दूध को संपूर्ण आहार कहा गया है, तुरन्त जन्मे बच्चे से लेकर वृद्धजनों, बीमार आदि के लिये यह अमृत समान है। सबसे महत्व की बात यह है कि जगत में जितने भी प्रवाही हैं वह स्वाभाविक उत्पन्न होते हैं, दूध की उत्पत्ति सिर्फ नारी जाति में ही होती है यह भी आचर्य की बात है कि प्रत्येक नारी में तो नहीं पर जो स्त्री मातृत्व धारण करती है उनके ही दूध उत्पन्न होता है। क्योंकि दूध वात्सल्य करूणा का प्रतिनिधि है। वात्सल्य प्रेम से भरपूर ऐसी करूणामूर्ति माँ का प्रेम दूध रूपी अमृत द्वारा बहता है। हमारे तीर्थंकर परमात्मा के सभी जीव करूं शासन रसी की उत्कृष्ठ करूणाधारा से ओतप्रोत हैं इसीलिये उनके शरीर में लाल रक्त की जगह श्वेत खून बहता है! जो दूध का ही प्रतीक है। परमात्मा महावीर को जब चंडकोशीक सर्प डसता है तो खून के बदले दूध की धारा बहती है। ऐसे करूणामूर्ति परमात्मा का अभिषेक करूणा और वात्सल्य के तत्वों से भरपूर ऐसे दूध से करने का सूचन क्षीर यानी दूध रूपी जल से करना बताया है। करूणा के सागर परमात्मा का दुग्धाभिषेक करने वाले को शीघ्र आरोग्य, ऐचर्य और यश का लाभ करने वाला होता है ऐसा मेरा सैंकड़ों बार का अनुभव है। क्योंकि दूध में यह कुदरती गुण है। इस चार्तुमास में 120 दिन परमात्मा के दूध अभिषेक! इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है? निःसंदेह करूणासागर वात्सल्यमूर्ति परमात्मा का अभिषेक वात्सल्य और प्रेम का प्रतीक ऐसे दूध से ही करना उचित है। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाश्वत आचार अभिषेक निधान की प्राचीनता जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सुत्र में मेघकुमार, नागकुमार आदि देवों द्वारा वृष्टि का वर्णन है। ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र में सौधर्मेन्द्र देव से ही हुई वृष्टि का वर्णन है, राजप्रश्न सूत्र में समवसरण की रचना के लिये देवों द्वारा की हुई वृष्टि का वर्णन है। एक समय भगवान श्री महावीर विहार कर रहे थे, तब रास्ते में एक तिल का पौधा देखकर गौशालक ने पूछा कि यह पौधा उगेगा या नहीं, तब भगवान की सेवा में रहे हुए सिद्धार्थ नामक व्यन्तर ने कहा उगेगा और इसमें तिल भी उत्पन्न होंगे । उसका यह वचन मिथ्या करने के लिये गौशालक ने उस पौधे को उखाड़ फेंका। उस समय व्यन्तर देवों ने वहाँ पर जल की वृष्टि की, जिससे उस पौधे की जड़ कीचड़ में घुस जाने से वह उगा भी और तिल भी उत्पन्न हुए। उत्तराध्ययन सूत्र के हरिकेशीय अध्ययन में कहा है कि देवों ने सुगन्धी जल, पुष्प और वसुधारा की वृष्टि की और आकाश में दुंदंभि नाद करके अहोदानं ऐसी उद्घोषणा की। यहाँ देवादि उपलक्षण से योग के लब्धि के और महान तप के प्रभाव से भी वृष्टि होती है । इसलिये वृष्टि प्रयोगजन्य मानना प्रतती पवित्र होता है । श्री भागवत् के पंचम स्कंध के चौथे अध्याय में कहा है कि भगवान श्री ऋषभदेव से स्पर्धा करके इन्द्र ने वर्षा न बरसाई तब ऋषभदेव भगवान ने अपने आत्मबल के योग से वर्षा कर अपना अजनाभ नाम यथार्थ किया । इस तरह लौकिक लोकोत्तर शास्त्र क विरुद्ध देव क्या करते हैं? योग मंत्र आदि के प्रभाव से क्या होता है? सब अपने कर्मों से होता है इत्यादि मूढ जनों का वचन प्रमाणिक नहीं मानना चाहिए। श्री अर्हद् अभिषेक सर्वप्रथम वादि - वेताल श्री शान्तिसूरिवरजी म. सा. द्वारा रचना हुई ( मालवा में महाराजा भोज की सभा में श्री शान्तिसूरिवरजी ने भिन्न-भिन्न मतधारी 84 वारीओं को जीतने से महाराजा भोज ने उन्हें वादि-वेताल बिरूद अर्पण किया था ।) उनके बाद कई आचार्यो ने भिन्न-भिन्न नाम से बहुत सारी अभिषेक विधिओं की रचना की जिसमें “चक्रे देवेन्द्रराजैः” यह काव्य बोलते हुए 108 बार अभिषेक करने की विधि अति प्राचीन है । यह 8 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टोतरशत अभिषेक के अनुसरण रूप लगभग सोलहवीं सदी में किसी ने अष्टोतरी स्नात्र की रचना की उसके बाद सत्रहवीं सदी में श्री सकलचंद्र गणि ने शान्ति स्नात्र नाम से प्रसिद्ध एक अभिषेक विधि का निर्माण किया जो विशेष प्रसिद्ध में आया। वर्तमान में पूज्य वीर विजयजी म.सा.कृतस्नात्र पूजा जो प्रायः सभी श्वेताम्बर जैन मंदिरों में प्रतिदिन करायी जाती है। शक्र देवेन्द्र देवराज वरूण महाराज की आज्ञा में वरूणकायिक, वरूण देवकायिक, नागकुमार, नागकु ममारियाँ, उदधिकुमार-कुमारियाँ, स्तनित कुमार-कुमारियाँ और दूसरे भी उस प्रकार के देव-देवियाँ वृष्टि करने वाले देव-असुर और नागकुमार हैं। ऐसा जिन आगम में कहा गया है। रेवती नक्षत्र पर सूर्य आने से वसन्त ऋतु में बड़े उत्साहपूर्वक पुण्यपात्र जिन स्नात्र करना चाहिये। साथ में देश दिक्पाल और नवग्रहों की पूजा करनी • चाहिये, जितना समय आकाश में रेवती नक्षत्र का भोग सूर्य के साथ हो उतने दिन जिनार्चन करना ये जगत में वृष्टि और पुष्टि के लिये हैं। (जगद्गुरु श्री हीरसूरिश्वरजी म.सा. कृत 'मेघ महोदये') स्नात्रमहोत्सव में परमात्मा के जन्म कल्याणक महोत्सव का वर्णन अवधि-नाणे अवधि-नाणे, उपना जिनराज, जगत जस परमाणुआ, विस्तर्या विश्व जंतु सुखकार; मिथ्यात्व तारा निर्बळा, धर्म उदय परभात सुंदर; माता पण आनंदिया, जागती धर्म विधान; जाणंती जग - तिलक समो, होशे पुत्र प्रधान। दुहा : शुभ लग्ने जिन जनमिया, नारकीमां सुख ज्योत, सुख पाम्या त्रिभुवन जना, हुओ जगत उद्योत। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांभळो कळश जिन - महोत्सवनो इहां, छप्पन कमरी दिशि, विदिशी आवे तिहां, माय सुत नमीय, आनंद अधिको धरे, अष्ट संवर्त - वायुथी कचरो हरे। वृष्टि गंधोदके, अष्टकुमरी करे, अष्ट कळशा भरी, अष्ट दर्पण करे, अष्ट चामर धरे, अष्ट पंखा धरी, चार रक्षा करी, चार दिपक ग्रही। घर करी केळनां, माय सुत लावती, करण शुचि कर्म, जळ कळशे न्हवरावती, कुसुम पूजी, अलंकार पहेरावती, राखडी बांधी जइ, शयन पधरावती। नमीय कहे माय! तुज बाळ लीलावती, मुरू रवि चंद्र लगे, जीवजो जगपति; स्वामी गुण गावती, निज घेर जावती, तेणे समे इन्द्र सिंहासन कंपती। जिन जनम्याजी, जिन वेळा जननी धरे; तिण वेळाजी, इन्द्र सिंहासन थरहरे; दाहिणोत्तरजी, जेता जिन जनमे यदा; दिशि नायकजी, सोहम इशान बेहु तदा। तदा चिंते इन्द्र मनमां, कोण अवसरे ए बन्यो; जिन जन्म अवधिनाणे जाणी, हर्ष आनन्द उपन्यो; सुघोष आदि घंटनादे, घोषणा सूरमें करे; सवि देवी देवा जन्म महोत्सवे, आवजो सुरगिरिवरे। अहीं घंटनाद करवो... ओम सांभळीजी, सुरवर कोडी आवी मले; जन्म महोत्सवजी, करवा मेरू पर चले; सोहम पतिजी, बहु परिवारे आवीया; माय जिननेजी, वांदी प्रभुने वधावीया। 10 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभुजीने चोखाथी वधाववा... वधावी बोले हे रत्नकुक्षी ! धारिणि तुज सुततणो; हुं शक सोहम नामे करशुं, जन्म महोत्सव अति घणो; ओम कही जिन प्रतिबिम्ब स्थापी, पंच रूपे प्रभु ग्रही; देव - देवी नाचे हर्ष साथे, सुरगिरि आव्या वही। पूर्वली मेरू उपरजी, पांडुक वनमें चिहुं दिशे; शिला उपरजी, सिंहासन मन उल्लसे; तिहां बेसीजी, शके जिन खोळे धर्याः हरि त्रेसठजी, बीजा आवी मल्या। मल्या चोसठ सुरपति तिहां, करे कळश जातिना; मागधादि जळ तीर्थ औषधि, धूप वळी बहु भांतिना; अच्युतपतिले हुकम कीनो, सांभळो देवा सवे; क्षीरजळधि गंगा नीर लावो, झटिति जिन महोत्सवे। सुर सांभलीने संचर्या, मागध वरदामे चलिया; पद्मद्रह गंगा आवे, निर्मळ जल कळशा भरावे। तीरथ जळ औषधि लेता, वळी क्षीर समुद्रे जाता; जळ कळशा बहुल भरावे, फूल चंगेरी थाळा लावे। सिंहासन चामर धारी, धूप धाणा रकेबी सारी; सिध्धांते भाख्या जेह, उपकरण मिलावे तेह। ते देवा सुरगिरि आवे, प्रभु देखी आनन्द पावे; कळशादिक सहुं तिहां ठावे, भक्ते प्रभुना गुण गावे। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आतम भक्ति मल्या केइ देवा, केता मित्त नु जाइ; नारी प्रेर्या वळी निज कुळवट, धर्मी धर्म सखाइ। जोइस व्यन्तर भुवनपतिना, वैमानिक सुर आवे; अच्युतपति हुकम करी कळशा, अरिहाने नवरावे। अडजाति कळशा प्रत्येके, आठ आठ सहस प्रमाणो; चउसठ सहस हुवा अभिषेके, अढीसें गुणा करी जाणो; साठ लाख उपर एक कोडी, कळशानो अधिकार; बांसठ इन्द्र तणां तिहां बासठ, लोकपालना चार। चन्द्रनी पंक्ति छासठ, छासठ रवि श्रेणि नरलोको; गुरूस्थानक सुरकेरो एक ज, सामानिकनो एको; सोहमपति इशानपतिनी, इन्द्राणीना सोळ; असुरनी दश इन्द्राणी नागनी, बार करे कल्लोल। ज्योतिष व्यन्तर इन्द्रनी चउ चउ, पर्षदा त्रणनो अको; कटकपति रक्षक केरो , एक एक सुविवेको; परचुरण सुरनो एक छेल्लो, ए अढीसें अभिषको; इशान इन्द्र कहे मुज आपो, प्रभुने क्षण अतिरेको। तव तस खोळे ठवी अरिहाने, सोहमपति मनरंगे; ऋषभ रूप करी शंग जळ भरी, न्हवण करे प्रभु अंगे; पुष्पादिक पूजीने छांटे, करी केशर रंगरोले; मंगल दीवो आरती करतां, सुरवर जय - जय बोले। भेरी भुंगळ ताल बजावत, वळिया जिन कर धारी; जननी घर माताने सोंपी, एणे परे वचन उच्चारी; पुत्र तुमारो स्वामी हमारो, अम सेवक आधार; पंच धाइ रंभादिक थापी, प्रभु खेलावण हार। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्रीस कोडी कनक मणि माणिक, वस्त्रनी वृष्टि करावे; पूरण हर्ष करेवा कारण, द्वीप नंदीसर जावे; करी अट्ठाइ उत्सव देवा, निज निज कल्प सिधावे; दिक्षा केवल ने अभिलाषे, नित नित जिन गुण गावे। इन्द्रादिक द्वारा भगवान का जन्माभिषेक तीर्थंकर महाराजा के जन्म अभिषेक में एक कोटि साठ लाख कलशों का उपयोग है जो इस तरह हैंकलश आठ प्रकार के होते हैं : (1) सुवर्णमय, (2) रजतमय, (3) रत्नमय, (4) स्वर्णरूप्यमय, (5) स्वर्णरत्नमय, (6) रूप्यरत्नमय, (7) स्वर्णरत्नमय, (8) मृन्मय-मिट्टी के प्रत्येक के आठ हजार कलश होते हैं। प्रत्येक कलश का माप-25 योजन ऊँचा, 12 योजन चौड़ा तथा 1 योजन के नालवाला होता है। एक अभिषेक में 64 हजार कलश रहते हैं। कुल 250 अभिषेक होते हैं, जो इस प्रकार हैं...() 10 अभिषेक बारह वैमानिक देवों के इन्द्रों के 20 अभिषेक भुवनपति के इन्द्रों के 32 अभिषेक व्यन्तर के 32 इन्द्रों के 66 अभिषेक अढीद्वीप के सूर्य के 66 अभिषेक अढीद्वीप के चन्द्रों के 8 अभिषेक सौधर्मेन्द्र की आठ अग्रमहिषी के 8 अभिषेक इशानेन्द्र की आठ अग्रमहिषी के 5 अभिषेक चमरेन्द्र की पाँच अग्रमहिषी के 5 अभिषेक बलीन्द्र की पाँच अग्रमहिषी के 6 अभिषेक धरणेन्द्र की पटरानी के 6 अभिषेक भूतानंद की पटरानी के Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 अभिषेक व्यन्तर की चार अग्रमहिषी के 4 अभिषेक ज्योतिषी के चार अग्रमहिषी के 4 अभिषेक चार लोकपाल के 1 अभिषेक अंगरक्षक देव के 1 अभिषेक सामानिक देव का 1 अभिषेक कटकाधिष देव का 1 अभिषेक त्रायत्रिंशक देव का 1 अभिषेक प्रजास्थानीय देव का 1 आखरी अभिषेक परचुरन देवों का इस प्रकार 250 अभिषेक हुए। श्रीमत् पुण्यं पवित्रं कृतविपुलफलं मंगलं लक्ष्म लक्ष्मयाः, क्षुण्णारिष्टोपसर्ग-ग्रहगति-विकृति-स्वप्नमुत्पात-घाति। संकेलः कौतुकानां सकलसुख-मुखं पर्व सर्वोत्सवानाम्, स्नात्रं पात्रं गुणानां गुरुगरिमगुरोर्वञ्चिता यैर्न दष्टम्। भावार्थ : श्रेष्ठ गुरु गौरव-पूजा-सत्कार प्राप्त करनारे, चक्रवर्ती, इन्द्र, गणधर इत्यादि के भी गुरु महान से महान अर्हत् जिनेश्वर परमात्मा का गुण पात्र स्नात्र, कि जो श्रीमत है, पुण्य के हेतु रूप है, पवित्र पावनकारी है, विपुल फलदायक है, मंगलरूप है, इष्ट अर्थ का संपादक है, लक्ष्मी का चिन्ह है, अरिष्ट-अशुभ, उपसर्ग, ग्रहों की गति से उत्पन्न विकृतियों, शारीरिक पीड़ा, विकृत अशुभ स्वप्नों का नाशक, अनिष्ट सुचक उत्पात-ग्रहोपराग, धरती-पन इत्यादि को रोकने वाले, कौतुकों के संकेत रूप हैं। सकल सुखों के मुखरूप-उपायरूप हैं। सर्व उत्सवों के पर्वरूप-उत्सवरूप हैं तथा सर्व उत्सव में प्रधान-श्रेष्ठ है। वह स्नात्र जिन्होंने देखा नहीं, वंचित रहे वह आँखे प्राप्त होते हुए उसका सद्उपयोग नहीं कर सके, फल-लाभ प्राप्त नहीं कर सके। रूपं वयः परिकरः प्रभुता पटुत्वं पान्डित्यमित्यतिशयश्च कला-कलापे। तज्जन्म ते च विभवा भवमर्हनस्य स्नात्रे व्रजन्ति विनियोगमिहार्हतो ये। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ : जन्म-जरा-मरण का विनाश करने वाली अर्हत् के स्नात्र के विनियोग में उपयोग में आए वह रूप, वय, परिकर-परिवार, प्रभुता, पटुत्व, चतुराई-दक्षता, पान्डित्य, गीत-नृत्य इत्यादि कला समूह का विशिष्ठ अभ्यास तथा वह जन्म-द्रव्य सार्थक कहलाते हैं। छत्रं चामरमुज्जवलाः सुमनसो गन्धाः सतीर्थोदका, नानालंकृतयों वलिद्धि पयः सप्पी पि भद्रासनम्। नान्दी-मंगलगीत-नृत्यविधयः सत्स्तोत्रमन्त्रध्वनिः, पक्कवान्नानि फलानि पूर्णकलशाः स्नात्रांगमित्यादि सत्। भावार्थः छत्र, चामर, उज्ज्वल पुष्प, सुगंधी पदार्थ, कुंकुम, चंदन इत्यादि पदार्थ, दही, दूध, घी, भद्रासन (स्नात्रपीठ), नांदी (भंभा इत्यादि मंगलवाजिंत्र), मंगल गीत-मंगल पंचक-मंगलमय पंचकाव्य इत्यादि, विविध प्रकार के फल, जल-दूध गन्ने का रस आदि से भरे हुए कलश जो भी उत्तम है वह स्नात्र के अंगरूप ग्रहण करना चाहिये। सुरासुर-नरोरग-त्रिदशवर्मचारिप्रभु-प्रभूतसुखसंपदः समनुभूय भूयो जनाः। जितस्मरपराक्रमाः क्रमकृताभिषेका विभो-र्विलंध्य यमशासनं शिवमनन्तमध्यासते।। भावार्थः कामदेव के पराक्रम को जीतने वाले जो कोई विभु तीर्थंकर परमात्मा का क्रम से अभिषेक करते हैं वह यम के शासन को परोजित करते हैं तथा सुर, असुर, मनुष्य, नागलोक और आकाशमार्ग से गमन करने वाले विद्याधरों के स्वामियों की विशाल श्रेष्ठ समृद्धियों का उपयोग करके अनन्त सुखमय अनन्त शिव में निवास करते हैं। अशेषभुवनान्तराश्रितसमाजग्वेदक्षमौ, न चापि रमणीयता मतिशयीत तस्यापरः। प्रदेश इह मानतो निखिललोक-साधारणः, सुमेरूरिति तायिनः स्नपनपीठभा गतः।। भावार्थः इस जगत के मान प्रमाण में समस्त लोक में साधारण ऐसा कोई दूसरा प्रदेश नहीं है। तीनों भुवन के समूह के खेद को दूर करने में समर्थ अन्य प्रदेश नहीं है, और सुन्दरता में अधिक ऐसा कोई प्रदेश नहीं है। इसलिये सकल लोक Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के पालक भगवान की स्नात्र पीठ के रूप में स्थापित हुआ है। नरकान्ते! तथा नारी-कान्ते! रूप्ये परितोषरसातिरेकम्। कुर्युः कुतूहलं (च) लोत्कलिकाऽऽकुलत्वं, देवा मुहूर्तमपि सोढु-मपारयन्त। भावार्थः उत्कृष्ट उत्पन्न भक्ति भाव से सभर मन के भाव, आनन्द रस का अतिरेक, तथा कुतूहल से प्रबल तालवंत आकुलता इन सबके कारण मुहूर्त मात्र भी विलंब सहन करने में असमर्थ देवता भी जिन अभिषक करते हैं। तात्पर्य सकल सत्वों पर उपकार करने में असाधारण दक्ष निष्कारण बंधु ऐसे जिनेश्वर भगवान के जन्म से उत्पन्न आनन्द को व्यक्त करने के लिये देवता भी उनका अभिषेक करते हैं। रक्षार्थमाहितविरोध-निरोधहेतो-लोकत्रयाधिकविभुत्व-विभावनाय । कल्याणपञ्चकनिबद्ध-सुरावतार-संवित्तये च जिनजन्मदिनाभिषकम् ।। भावार्थः रक्षा के लिये, उपस्थित हुए विरोध को रोकने के लिये और तीनों लोक में उनका विभुत्व विख्यात करने के लिये तथा पाँच कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण प्रसंग पर उपस्थित देवों के आगमन को बताने के लिये जिनेश्वर का जन्म दिवस पर अभिषेक करते हैं। यो जन्मकाले कनकाद्रि-शृंगे यश्चादिदेवस्य नृपाधिराज्ये। भूमण्डले भक्तिभरावननैः सुरासुरेन्द्रैर्विहितो अभिषेकः । भावार्थः जो अभिषेक भगवान के जन्म समय पर कनकाद्रि (सुवर्णगिरि-मेरूपर्वत) के शिखर पर और आदिदेव ऋषभदेव के राजाधिराज्य प्रसंग के वक्त भूमण्डल पर भक्ति-भाव से सभर सुरेन्द्रों ने अभिषेक किया। ततः प्रभूत्येव कृतानकारं, प्रत्यादृतैः पुण्यफल प्रयुक्तैः । श्रितो मनुष्यैरपि बुद्धिमद्भिः, महाजनो येन गतः स पन्थाः ।। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ: तब से लेकर आज तक जन्म, समय और राज्य अरोहण समय से प्रारंभ कर, करने वालों का अनुकरण करने में आदर वाले, पुण्य फल से प्रेरित सद्बुद्धिवाले मनुष्यों ने भी इसका अनुकरण किया है। क्योंकि महाजनों ने जो मार्ग अपनाया वह मार्ग तात्पर्य देवों ने अभिषेक किया इसीलिये हमारे द्वारा भी यथाशक्ति प्रयास हो। स्नात्र : अर्थात् प्रभुजी का जन्माभिषेक, जैसा कि मेरू पर्वत पर इन्द्र-इन्द्राणी मनाते हैं। उल्हास और उमंग से स्नात्र पढ़ाने से कर्मों का क्षय होता है और उत्तम पुण्य का उपार्जन होता है। अभिषेक के प्रभाव मुगल सम्राट अकबर बादशाह द्वारा स्नात्र पूजा करना :- अकबर बादशाह के बड़े पुत्र जहाँगीर के यहाँ पुत्री के जन्म हुआ । ज्योतिषियों ने बालिका का जन्म मूल नक्षत्र में होने से पिता के लिए कष्टदायक होना बताया। बादशाह ने जैन गुरु भानुचन्द्रविजयजी जो जगद्गुरु हीरसूरि के शिष्य थे तथा दूसरे जैन | विद्यवान मुनि श्री मानसिंह जो जैनाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि के शिष्य थे, उनसे पूछा कि कष्ट निवार्णार्थ क्या किया जाय? जैन गुरुओं ने फरमाया कि जैन मंदिर में स्नात्र पूजा कराई जाय तो कष्ट दूर हो सकता है। महोत्सव बड़े ही ठाठ-बाट के साथ प्रारंभ हुआ। सम्राट अकबर अपने पुत्र जहाँगीर व अन्य दरबारियों के साथ उपस्थित हुआ। मुनि भानुचन्द्र व मुनि मानसिंह ने स्नात्र विधि सम्पन्न कराई। मुनि भानुचन्द्रविजयजी ने स्वयं भक्तामर महास्तोत्र का पाठ किया संम्राट अकबर व पुत्र जहांगीर ने खड़े रहकर संपूर्ण स्नात्र पूजा विधि की । सुवर्ण पात्र से दोनों ने स्नात्र जल ग्रहण किया । फिर सम्राट व युवराज के सुख शान्ति में निरंतर वृद्धि हुई । बाहुराजा का कोढ सूरजकुंड के नव्हण जल से दूर हुआ था । सूरजकुंड के पवित्र जल से चंदराजा कुकृट से फिर मानव बन गया। गजपद कुंड का जल अत्यंत पवित्र माना जाता है, जिसके जल से दुर्गंधा नारी ने अपने शरीर की दुर्गंध दूर की। 17 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब, ऐसे तीर्थजल के पवित्र पानी मात्र से इतना प्रभाव अनुभव में आता हो तब वही जल करूणा के सागर-वात्सल्य से परमात्मा का स्पर्श पाया हुआ जल कितना प्रभावशाली बन जाता होगा उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। औषध मिश्रित मंत्रोच्चारपूर्वक परमात्मा को स्पर्श किया हुआ जल अचिन्त्यशक्ति युक्त विशेष प्रभावशाली बन जाता है उसमें कोई शंका नहीं। इस प्रकार के जल से निश्चित रूप से सभी प्रकार के इति-उपद्रव-मारी-मरकी-रोग-शोक -भय-दीनता-दारिद्रता-पर विद्या का दुष्प्रभाव-ग्रहों का दुष्प्रभाव दूर हो जाता है और जीवन में सुख-शान्ति एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। स्नात्र जल के छिटकाव से जादव की जरा दूर हुई। स्नात्र जल के प्रभाव से ही श्रीपाल राजा का कोढ़ रोग दूर हुआ साथ में रहे हुए सात सौ कोढ़ियों का कोढ़ रोग दूर हुआ। और काया निरोगी कंचन जैसी बन गयी। इतिहास के पन्नों पर ऐसे कई किस्से मौजूद हैं। नवांगी टीकाकार प.पू.आचार्यदेव श्री अभयदेवसूरि म.सा. का कोढ़ रोग अभिषेक जल से ही दूर हुआ था। प्रहलाद राजा का दाह रोग इसी तरह अभिषेक जल से ही दूर हुआ था। ... हजारों गाँवों में, नगरों में भूत-प्रेत उपद्रव आदि में उपद्रव शान्ति अभिषेक जल की शान्तिधारा से ही हुई है। सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ भगवान जब माता अचिरादेवी के गर्भ में थे तब नगरं मरकी रोग फैला उसके निवारण हेतु अचिरा माता के स्नात्र जल का छिड़काव पूरे नगर में किया गया और फलस्वरूप पूरा नगर रोग मुक्त हुआ। श्री संघाँ में आज वह विधान रूप में प्रस्थापित है। जब कहीं भी स्नात्रपूजा होती है तब समग्र अभिषेक जल को विधिपूर्वक एक उवस्सगळं एवं बृहद् शान्ति स्तोत्र Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के पाठ के उच्चारपूर्वक भरने का विधान प्रचलित है। उसे भरते समय विशेष समृद्ध करने के लिए हरी घास में से पसार करना चाहिये। इस अभिषेक जल के छिड़काव से सभी प्रकार के उपद्रव नष्ट होते हैं। वीर संवत् 1956 की बात है, समग्र भाव नगर शहर में कोलेरा रोग फैला हुआ था। सभी नगर जनों की आशा जैन शासन के आर्हत् धर्म पर हुई। उस वक्त वहां पर प.पू. पन्यास श्री गंभीरविजयजी म.सा. वहां विराजमान थे। उन्होंने उपद्रव निवारण हेत संकल्प सहित परमात्मा का स्नात्र महोत्सव का आयोजन करना तय किया। वैशाख बीदि छट्ठ के दिन विधिपूर्वक स्नात्र के लिये जल लाया गया, वैशाख बिदि बारस के दिन बड़े ही ठाठ से परमात्मा का स्नात्र महोत्सव हुआ। कार्य भी जन हित का था, पूजा में असीम उत्साह था। बड़े उत्साहपूर्वक वरघोड़ा निकाला गया पूरे नगर के चारों और स्नात्र जल का छिडकाव किया गया इस जल धारा के प्रभाव से व्याधि की शान्ति होती गयी चंद दिनों में ही भाव नगर शहर रोग से मुक्त हो गया। (श्री जैन धर्म प्रकाश अंक-3 संवत् 1956, पाठशाला ग्रंथ प.पू.आचार्य श्री पधुमनसूरिजी म.सा.) वि.संवत 2041-42-43 के भयंकर दुष्काल से गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ ग्रसित थे नदी, तालाब आदि सूखे पड़े हुए थे, सबको बरसात का ही इंतजार था। इस परिस्थिति के उपायरूप पुन्योद की जागृति के लिये प.पू. आचार्य भगवत् श्री प्रद्युमनसूरिजी म.सा. ने श्री शत्रुजय तीर्थाधिपति श्री आदिनाथ दादा के अभिषेक का विचार किया और आगमप्रज्ञ प.पू.मुनिराज श्री जंबविजयजी म. सा. के साथ चर्चा कर अभिषेक के लिए विधान की तैयारियाँ की। सभी प्रकार के उत्तम द्रव्य विपुल प्रमाण में मँगवाये गये। अंबर, कस्तूरी जैसे दुर्लभ कीमती द्रव्यों सुगंधी द्रव्य, केसुडा के फूल, अगरू काष्ट इत्यादि तथा गजपद कुंड, विविध नदियों के जल इत्यादि सामग्री मंगवायी गयी। उत्साह और उल्लसित वातावरण में मंगलबेला में प्रभुजी का अभिषेक प्रारंभ हुआ। चतुर्थ मंगलमुत्तिका स्नात्र में जिन प्रतिमा को लेप हेतु मृत्तिके के प्रवाही लेप द्वारा हल्के हाथों से मर्दन करके विलेपन किया, विलेपन का पूर्ण असर बिंब को पहुँचे Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसलिये विलेपन थोड़ीदेर ऐसे ही रहने दिया। मंगलमृत्तिका के बाद पंचगव्य और क्रमशः अभिषेक धारा आगे बढ़ते हुए सातवाँ अभिषेक शुरू हुआ सभी के आश्चर्य के बीच आकाश में बड़े-बड़े काले बादल छाने लगे, कुछ ही देर में पूरा आकाश काले बादलों से भर गया। रीबि छीटें पड़ने शुरू हो गये, थोड़ी ही देर में बिजली के चमकार और बादलों की गर्जना के साथ ही जोरों की बरसात शुरू हो गई। 18 अभिषेक पूर्ण करके नीचे उतरते समय देखा कि ऊपर चढ़ते समय जो इच्छाकुंड, कुमारकुंड इत्यादि जो कि बिल्कुल शुष्क दिख रहे थे वह न सिर्फ भर गये थे बल्कि बह ते हुए नजर आने लगे। उसी दिन शाम को फिर से जोरों की बारिश हुई और संपूर्ण गुजरात, सौराष्ट्र, कच्छ आदि स्थानों पर भी अच्छी बारिश के समाचार प्राप्त हुए। यह चमत्कार था श्रद्धा, भक्ति, और संकल्प सहित किया हुआ अभिषेक! प्राणी मात्र के जीवन पर ग्रहों का प्रभाव सुविदित है और तीर्थंकर भगवंत के चरणों में इन्द्रादिक का स्थान न होकर सिर्फ नवग्रहों को ही स्थान प्राप्त है यह भी सोचनीय बात है। जब औषधी मिश्रित जल अभिषेक सतत छः महीने तक करने से असाध्य रोग भी ठीक होने का आश्चर्यकारी परिणाम देखने में आया है। इस साल मानव भूषण महातपस्वी परम पूज्य आचार्य देव श्री नवरत्नसागरसूरि म.सा. के नवम् शिष्यरत्न आजीवन छः विगय के त्यागी तपस्वी पूज्य मुनिराज श्री जिनेशरत्नसागरजी म.सा.एवं सरल स्वभावी पू. मुनिराज श्री विरेशरत्नसागरजी म.सा. का चार्तुमास जयपुर के श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मालवीय नगर में जब से शुरू हुआ जब से आज तक लगातार भगवान का दूध से अभिषेक जारी है, 9-27 एवं 108 लीटर दूध द्वारा परमात्मा का अभिषेक और 1008 पुष्पों से जाप हो रहे हैं। प्रत्येक अभिषेक में लोगों को सुखद अनुभव हो रहे हैं । लगातार 72 दिन तक मालवीय नगर श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ में अभिषेक होने के बाद लोगों का उत्साह बढ़ता गया और अभिषेक दायरा बढ़ता गया और जयपुर के विविध मंदिरों में अभिषेक होने लगे। श्री महावीर (20) Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वामी मंदिर, टोंक फाटक, श्री संभवनाथ मंदिर, न्यू लाइट कॉलोनी, श्री वासुपूज्य मंदिर, मालवीय नगर, श्री नाकोडा मंदिर, प्राकृत भरती, श्री आदिनाथ आग्रा वाला मंदिर जौहरी बाझार एवं श्री महावीर स्वामी मुलतान मंदिर तथा श्री आदिनाथ भगवान बरखेडा तीर्थ, श्री देराउर पार्श्वनाथ जयपुर इत्यादि मंदिरों में अभिषेक होते रहे। अभिषेक द्वारा परमात्मा भक्ति और परमात्मा का सानिध्य, परमात्मा का स्पर्श और विशेष बात यह है कि सरल प्रक्रिया द्वारा प्रभु भक्ति का यह विधान बच्चे से लेकर वृद्धों तक को आनन्द दे गया और इसके आनन्द दायक परिणाम का भी लोगों ने अनुभव किया। अभिषेक विधि अभिषेक विधि में उपयोगी सामग्री की शुद्धि सुरीमंत्र - वर्धमान विद्या मंत्र अथवा तीन बार नवकार के स्मरण करके वासक्षेप द्वारा करनी है। जल शुधि : ॐ ह्रीं भः जलधिनदी द्रहकुन्डेषु यानि तीर्थोदकानि शुध्यति तेर्मन्त्र संस्कृतरिह बिम्बं स्नपयामि शुध्यर्थम् स्वाहा । आपा अप्काया एकेन्द्रियाः जीवाः निरवद्यार्हत्पूजायां निव्यर्थाः सन्तुनिरपायाः सन्तु सद्गतयः सन्तु मे नस्तू संघट्टन हिंसापापमर्हदचने स्वाहा । सर्वोषधि मन्त्र : ॐ ह्रीँ सर्वोषधि संयुक्ता सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः स्नपयामि जैनबिम्बं मन्त्रिण तन्नीर निवहेन स्वाहा । पुष्प फल आदि : ॐ वनस्पतिकाया एकेद्रियाः जीवाः निरविद्यार्हत् पूजायां निव्यर्थाः सन्तु निरपायाः सन्तु सद्गतयः सन्तु न मेऽस्तु संघट्टन हिंसाऽपापमर्हदूर्चने स्वाहा। कलश अधिवासन 21 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ हीं श्रीं धृति कीर्ति बुध्धि लक्ष्मी शान्ति तुष्टि पुष्टयः एतेषु नवकलेषु कृताधिवासा भवन्तु भवन्तु स्वाहा। कलश में जल अथवा दूध भरते हुए। ॐ शाँ क्षौं क्षीरसमुद्रोद्भवानि क्षीरोदकान्येषु स्नात्र कलशेष्व वतरन्त्वत्वरन्तु संवौषट्। परमात्मा स्तुति नमो अरिहंताणं। नमो सिध्धाणं। नमो आयरियाणं। नमो उवज्झायाणं। नमो लोए सब्ब साहूणं। एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पाव्वपणासणो; मंगला णं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं । चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिध्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवली पन्नत्ते मंगलं। चत्तारि लागुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिध्ध लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवल पन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि शरणं पवज्जामि, अरिहंते शरणं पवज्जामि, सिध्धे शरणं पवज्जामि, केवली पन्नतं शरणं पवज्जामि। आदिमं पृथ्वी नाथं मादिमं निष्परिग्रहम् । आदिमं तीर्थ नाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः। श्रीमते शान्ति नाथाय नमः शान्तिविधायिने-त्रैलोक्यस्यामराधीशमुकुटाभ्यःर्चितांघ्रये। या शान्ति : शान्तिजिने, गर्भगतेऽथाजनिष्ट वा जाते। सा शान्तिरत्रभूयात् सर्वसुखोत्पादनाहेतुः। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगन्महा-मोहनिद्रा- प्रत्युष-समयोपमम् । मुनिसुव्रतनाथस्य, देशनावचनं स्तुमः। कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति, प्रभुस्तुल्यमनोवृतिः पार्श्वनाथ श्रियेस्तुवः । श्रीमते वीरनाथाय सनाथायाद्भुतश्रियाः महानन्दसरोराज मरालायार्हते नमः। सर्वारिष्ट-प्रणाशाय सर्वाभिष्टार्थदायिने, सर्व लब्धिनिधानाय श्री गौतमस्वामिने नमः । अंगुठे अमृत वसे लब्धितणां भण्डार | श्री गुरू गौतम समरिये वांछित फल दातार । अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिध्धाश्च सिध्धि स्थिता, आचार्या जिन शासनोन्नत्तिकरा, पूज्या उपाध्याया; श्री सिध्धान्त सुपाठकाः मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पंचै ते परमेष्ठिनं प्रति दिनं कुर्वन्तु वो मंगलं । मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम प्रभुः मंगलं स्थूलिभद्रद्या, जैनो धर्मोस्तु मंगलं । ॐ नमो जिणाणं शरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ हीँ हूँ हूँ ह्रीं हू: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रव शमनाय अर्हते नमः स्वाहा । 23 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वज्रपंजर स्तोत्रम् ॐ परमेष्टि नमस्कारं, सारं नव पदात्मकम्; आत्मरक्षाकरं वज्रपन्जराभं स्मराम्यहम्। ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् । ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनि। ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दढम् । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पंच नमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले। सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः। मंगला णं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका। स्वाहन्तं च पदं ज्ञेयं पढमं हवइ मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देह रक्षणे। महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव नाशिनी। परमेष्ठि पदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः। यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि पदैः सदा। तस्य न स्याद् भयं व्याधि, राधिश्चापि कदाचन। क्षि प ॐ स्वा हा । आव्हानः ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं अर्हन् भगवन्! श्री शान्तिनाथाय ह्रीं गरूड यक्ष-निर्वाणी देवी सहिताय अत्र श्री महा -मस्त्काभिषेक महोत्सवे श्री शान्तिनाथ तीर्थ मंडपे आगच्छ आगच्छ।। संवौषट् ।। स्थापनाः ------ तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। संनिधानः ------ मम सन्निहितो भव भव वषट्। संन्निरोधः ------महोत्सवानन्त पर्यन्त यावद् अत्रैव स्थातव्य। अवगुंठनः ------परेषाम् दिक्षितानामदृश्यो भव भव। (24) Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिमा स्थापन : ॐ अत्र क्षेत्रे अत्र काले नामार्हन्तो रूपार्हन्तो द्रव्यार्हन्तो भावार्हन्तः समागताः सुस्थिताः सुनिष्ठिताः सुप्रतिष्ठाः सन्तु स्वाहा। नवगृहों की सीपना करनी संकल्प ओमिति नमो भगवओ अरिहंतसिध्धायरिय-उवज्झाय। वर सव्वसाहू मुणि संघ धम्मतित्थ पवयणस्स। सप्पणव नमो तह भगवई सुहदेवयाए सुहयाइ। सिवसंति देवयाए सिव पवयण देवयाणं च। इन्दागणि जम नेरईय वरूण कुबेर इशाणा। बम्भो नागुत्ति दसण्ह मविय सुदिसाण पालाणं। सोम यम वरूण वेसमण वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं सुराइगहाण नव्हणं। साहंतस्स समक्कं मज्झमिणं चेव धम्मणुठाणं। सिध्धमविग्घं गच्छउ जिणाइ नवकारओ धणियं । (हाथ में श्रीफल धारण करना) विश्वातिशायि महिमा ज्वलत्तेजो विराजितम्, शान्तिं शान्तिं करं स्तौमि दूरितव्रात शान्तये। सोडष विद्या देव्योऽपि चतुःषष्ठि सुरेश्वराः, ब्रह्मादयश्च सर्वेऽपि यं सेवन्ते कृतादराः। ॐ ह्रीं श्रीं जये विजये ॐ अजये परैरपि, ॐ तुष्टिं कुरू कुरू पुष्टिं कुरू कुरू शान्तिं महाजये। न क्वापि व्याधयो देहे न ज्वरा न भगंदराः, कास श्वासादयो नैव बाधन्ते शान्ति सेवनात। यक्ष भूत पिशाचााद्या व्यन्तरा दुष्ट मुद्गलाः, सर्वे शाम्यन्तु मे नाथ शान्तिनाथ सुसेवया। (25) Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ नमो पार्श्वनाथाय विश्व चिंतामणियतेः, ही धरणेन्द्र वैरोट्या पद्मावती युतायते। शान्ति तुष्टि महापुष्टि धृति कीर्ति विद्यायिने, ॐ ह्रीं दृढ व्याल वैताल सर्व व्याधि विनाशिने। जयाऽजिताख्या विजयाख्या ऽपराजिता यान्वितः, दिशांपालेः गृहेय: विद्यादेवी भिरन्वितः। ॐ असिआउसाय नमः तत्र त्रैलोकनाथतं, चतुषष्ठि सुरेन्द्रास्ते भासते छत्र चामरे। ॐ अरै तरू कामधेनुः चिंतामणि कामकुंभ माईयः श्री पासनाह सेवा ग्राहणं सेवींहा संत। ॐ ह्रीं ऐं अहँ तुह दंसणेण शामिय पणासेइ रोगसोगदोहगं कप्पतरूमेवजाईयः तुह दंसण अमफलहेउ स्वाहा। श्री शंखेश्वरमंडन पार्श्वजिन प्रणतः कल्पतरू कल्प, चुरय दुष्ट व्रातं पूरय मे वांछितं नाथः । अथ श्री सिद्धचक्र दंडक ॐ हीं ब्रह्मरूचि ब्रह्मबीज भूताय परमार्हते नमोनमः। ॐ पंचरूवहींकारस्थ श्री ऋषभादि जिन कदम्बाय नमोनमः। ॐ धवल निर्मल मूलानाहत रूपाय त्रिकाल गोचरानन्त द्रव्य -गुण पर्यायात्मक वस्तुपरिच्छेदक जिन प्रवचनाय नमोनमः। श्री सिध्धचक्र मुलमन्त्राराध्य पदाधार रूपाय श्री संघाय नमोनमः। ॐ अर्हद्भ्यो नमोनमः। ॐ सिध्धेभ्यो नमोनमः। ॐ सूरिभ्यो नमोनमः। ॐ उपाध्यायेभ्यो नमोनमः । ॐ सर्वे साधूभ्यो नमोनमः। ॐ सम्यक्दर्शनाय नमोनमः। ॐ सम्यक्ज्ञानाय नमोनमः । ॐ सम्यक्चारित्राय नमोनमः। ॐ सम्यक्तपसे नमोनमः । ॐ स्वरेभ्यो नमोनमः। ॐ वर्गेभ्यो नमोनमः। ॐ सर्वाऽनाहतेभ्यो नमोनमः । ॐ सर्व लब्धिपदेभ्यो नमोनमः। ॐ अष्टविधागुरू पादुकाभ्यो नमोनमः। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रियन्तां प्रियन्तां। अर्हदादयो मयि प्रसन्ना भवन्तु भवन्तु। श्री सिध्धचक्राधिष्ठायक देवा-देव्यो-नाग-यक्ष-गण-गन्धर्व -वीर-ग्रह-लोकपालाश्च सानुकुला भवन्तु। समस्त साधु साध्वी श्रावक श्राविकाणां राजाऽमात्य-पुरोहित-सामन्त-श्रेष्ठि सार्थवाह प्रभूति समग्र लोकानां च स्वस्ति-शिव-शान्ति-तुष्टि -पुष्टि श्रेयः-समृध्धि वृध्धयो भवन्तु भवन्तु। चोरारि मारि रोगोत्पानीति-दुर्भिक्ष-डमर-विग्रह-ग्रह-भूत-पिशाच-मुद्गल -शाकिनी प्रभूति दोषाः प्रशाम्यन्तु। राजा विजयी भवतु भवतु । प्रजा स्वास्थ्यं भवतु भवतु। श्री संघो विजयी भवतु भवतु। ॐ स्वाहा । ॐ स्वाहा। भूः स्वाहा। भूवः स्वाहा। स्वः स्वाहा। ॐ भूर्भवः स्वः स्वाहा। शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवतु लोकः ।। खामेमि सव्व ज वे। सव्वे जीवा खमंतु में।। मित्ती मे सव्वभूएसु। वेरं मज्झ न केणई। तीन नवकार गिनके संकल्प श्रीफल परमात्का को समर्पित करना। पुष्पाभिषेक मन्त्र : जल से आद्रित अन्जलि के अग्र भागमें रखकर मौन पूर्वक - ॐ नमोऽर्हद्भ्यः सिद्धेभ्यस्तीर्णेभ्यस्तारकेभ्यो बोधकेभ्यः सर्वजन्तु हितेभ्यः, इह कल्पनाबिम्बे भगवन्तोऽर्हतः सुप्रतिष्ठिताः सन्तु स्वाहा। पुनः जल से आद्रित पुष्प लिए बोलना – स्वागतमस्तु सुस्थितिरस्तु सुप्रतिष्ठास्तु स्वाहा। पुष्प प्रतिमा उपर चढाते हुए : अर्ध्यमस्तु पाद्यमस्तु आचमनीयमस्तु स्वाहा। हे...अभिषेक धारा शिर पर वहेती, थाये आखी पावन धरती; जीव अजीव ने जे शिव करती, सहुना मन वांछित पूरती। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे...गाजे जगतमां जय जयकारा, विश्व मंगलनी अभिषेक धारा; शिर पर थाये अभिषेक धारा, जाणे जग माटे करूणाधारा। हे...महा प्रभावी औषधी लावे, मणि रत्नना चुर्ण मिलावे; सोना रूपाना कळशो भरावे, प्रभुजीने अभिषेक करावे। स्वस्ति स्वस्ति नमोस्तु ते भगवते, त्वं जीव जीव प्रभो। भव्यानन्दन नन्द नन्द, भगवन्नर्हस्त्रीलोकीगुरो। जैने स्नात्र विद्यो विद्युत कलुषे, विश्वत्रयी पावने। प्राप्त स्नात्रमिदं शुभोदयकृतेऽस्माभिः समाराभ्यते। पुण्याहं तदहः क्षणोऽयमनघः पूजास्पदं तत्पदं, सर्वास्तीर्थभुवोऽपि ता जलभृतस्तद्वारि हारि प्रभो। तेऽनर्धा घुसृणादिगन्धविधयः कौम्भास्तु कुत्भाश्च ते, धन्या यान्ति कृतार्थतां जिनपतेः स्नात्रोपयोगेन ये। कुम्भाः कान्चनरत्नराजतमयाः क्षीरोदनीरोदयाः, भव्यैः स्नात्रकृते जिनस्य पुरतो राजन्ति राजीकृताः। सार्वा स्वीयशुभर्द्धि संगममये मांगल्य कुम्भा इव, गीतातोद्योरूनादैः सरभसममराब्ध नाट्य प्रबन्धे। नाना तीर्थोदकुम्भै रजतमणिमयैः शातकुम्भैजिनः प्राक्, मेरोः शृंगे यथैन्द्रैः सजयजयवैर्मज्जितो जन्मकाले। कल्याणी भक्त यस्तं विद्यिवदिह तथा भाविनो मज्जन्तु, जैने स्नात्र विद्यो विद्युतकलुषे विश्वत्रयी पावने, क्षुद्रोपद्रवविद्रवप्रणयिनां घ्यातं त्वति प्राणिनाम् । श्री संघे सुजने जने जनपदे धर्मक्रिया कर्मठे, देवाः श्री जिनपक्षपोषपटवः कुर्वन्तु शान्तिं सदा। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जे जन्म समये मेरू गिरि नी स्वर्णरंगी टोंच पर, लइ जइ तमोने देव ने दानव गणो भावे सभर; कोडो कनक कलशों वडे करता महा-अभिषेक ने, त्यारे तमोने जेमणे जोया हशे ते धन्य छ। चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभिः, नृत्यन्तिभिः सुरीभिः ललितपदगमं तुर्यनादैः सुदीप्तैः। कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भैः, बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरः स्नापयाम्यत्र काले।। श्री 24 तीर्थंकर विद्या ॐ ह्रीं श्रीं अहँ मैं ऋषभाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह ॐ नमो भगवओः अरहओ उसभसामिस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ ह्रीं नमो भगवओ अरिहओ उसभसामिस्स आइतित्थगरस्स जस्सेअं जलं तं गच्छइ चक्खं सव्वट्ठ (सव्वत्थ) अपराजियं, आयाविणी, ओहाविणी, मोहिणी, थंभिणी, जंभणी, हिलि, हिलि, कालि कालि, धारणी, चोराणं, भंडाणं, भोइयाणं, अहिणं, दाढिणं, सिंगीणं, नहीणं, चोराणं, चारियाणं, वेरिणं, जक्खाणं, रक्खसाणं, भूयाणं, पिसयाणं, मुंहबंधणं, गइबंधणं, चक्खुबंधणं, दिट्ठिबंधणं करेमि सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठःठःठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्री अजितनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्रीं अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अजिय जिणस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ अजिए, अपराजिए, अणिहए, महाबले, लोगसारे सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहँ श्री संभवनाथाय नमः ॐ ही श्रीं अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह केवली जिणाणं, ॐ हीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरिहओ संभवस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ संभवे, महासंभवे, अपराजियस्स, संभूए, महासंभावणे सव्वट्ठसिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अभिनंदनस्वामिने नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्रीं अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ हीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ अभिनंदणस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ नंदणे, अभिनंदणे, सुनंदणे, महानंदणे सव्वट्ठ सिध्धे ॐ हीं ठः ठः ठः स्वाहा। 30 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री सुमतिनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो भगवओ अरहओ सुमइस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ सुमए, सुमई, सुमणे, सुमणसे, सुसुमणसे, सोमणसे सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं पद्मप्रभुस्वामिने नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो भगवओ अरहओ पउमपहस्स सिज्जउ मे भगवईमहई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ पउमे, महापउमे, पउमत्तरे, पउमप्पले, पउमसरे, पउमसिरि सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सुपार्श्वनाथाय नमः ॐ ह्री श्रीं अर्हं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अणंतोहि जिणाणं, 31 ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं केवली जिणाणं, Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ सुपासस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जाऊँ नमो भगवओ अरहओ पासे, सुपासे, अइपासे, सुहपासे, महापासे सव्व सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री चंद्रप्रभुने नमः ॐ ह्री श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ चंदपभस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ चंदे, सुचंदे, चंदप्पभे, महाविद्याप्पभे, सुप्पहे, अइप्पहे, महाप्पहे सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहँ श्री शीतलनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्री श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, . ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, . ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्री अहँ नमो भगवओ अरहओ पुष्फदंत्तस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ पुप्फे, पुप्फे, महापुप्फे, पुप्फेसु, पुष्पदंते, पुप्फसुइ सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहँ श्री सुविधिनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्री श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं. ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहणं, Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ हीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ शीयल जिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ शीयले, शीसले, पासे,पसंते, पसीयले, संते, निव्वुउ, निव्वाणे, निव्वुएति नमो भगवईए सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ हीं श्रीं अहं श्री शीतलनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं. ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ हीं श्रीं अहँ अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ सिज्जंस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ सिज्जंसे, सिज्जंसे, सेयंकरे, महासेयंकरे, सुसिज्जंसे, सुसिज्जंसे, पभंकरे, सुपभंकरे सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ हीं श्रीं अहं श्री श्रेयांसनथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्रीं अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ हीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो ओहिजिणाणं, ॐ हीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ वासुपूजस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ वासुपुज्जे, वासुपुज्जे, अइपुज्जे, महापुज्जे, पुज्जारूहे सव्वट्ठ ॐ हीं ठः ठः ठः स्वाहा। 337 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ gg gg ge ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री वासुपूज्यस्वामिने नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो अरिहंताणं, ही श्रीं अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहणं, ह्रीं श्रीं अहं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ विमलस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ अमले, अमले, विमले, विमले, कमले, कमलिणी, निम्मले सव्वट्ठ सिध्धे ॐ हीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री विमलनाथाय नमः । ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ अणंतजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ अणंतेकेवलनाणे, अणंतेपज्जवनाणे अणंतेगमे, अणंतकेवलदसणे, सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्री अनन्नाथाय नमः ॐ ह्री श्री अहं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ धम्मजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ धम्मे, सुध्मे, धम्मचारिणी, धम्मधम्मे, सुअधम्मे, चरित्तधम्मे, आगमधम्मे, उवएसधम्मे सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ५. ५. ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री धर्मनाथाय नमः ॐ ही श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं शान्तिनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, 8 फ 86 8 86 ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ शान्तिजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ ॐ संति संति पसंति उवसंति सव्वपावं उवसमेहिं सव्वट्ठ सिध्धे ॐ हीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री कुंथुनाथाय नमः । ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्री अहं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं केवली जिणाणं, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ कुंथुजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ कुंथु कुंथे, सुरकुंथे, कीडकुंथुमई सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहँ श्री अरनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्री श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ अरजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ अरणी अरणी आरणीस्स, पिणियले (सयाणिए) सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहं श्री मल्लिनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्री श्री अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अणंतोहि जिणाणं. ॐ ह्रीं श्रीं अहँ केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो भगवओ अरहओ मल्लिजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ मल्लि सुमल्लि, जयमल्लि, महामल्लि, अप्पडिमल्लि सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अहँ श्री मुनिसुव्रतनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो अरिहंताणं, ॐ ही श्रीं अहँ नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमो लोए सव्वसाहणं, (36 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो भगवओ अरहओ मुणिसुव्वयस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ सुव्वए, महासुव्वए, अणुव्वए, महाव्वए, वएयइ, महादिवादित्ये सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं श्री नमिनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं अणतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं श्री नेमिनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं केवली जिणाणं. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो भगवओ अरहओ नमिजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ नमि नमि, नामिणि, नमामिणि सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो भगवओ अरहओ नेमिजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ रहे रहावत्ते ( अरे रहावत्ते) आवत्ते, वत्ते, अरिट्ठनेमि सव्वद्व सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाह । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथाय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो भगवओ अरहओ पासजिणस्स सिज्जउ मे भगवई महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ उग्गे, उग्गे, महाउग्गे, उग्गज्जसे, गाम पासे, नगर पासे, पासे-पासे, सुपासे, पासमालिणि सव्वट्ठ सिध्धे ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं श्री महावीराय नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो सिध्धाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो परमोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो ओहिजिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सव्वोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अहं केवली जिणाणं, ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमो भगवओ अरहओ वध्धमाण सामिस्स सिज्जउ मे भगवई | महई महाविज्जा ॐ नमो भगवओ अरिहओ सुर-असुर तेलुक्क पूईअस्स, वेगे-वेगे, महावेगे, निद्वंत्तरे, निरालंबणे, अंत रहिओ भवामि ॐ ह्रीं वीरे, ॐ ह्रीं वीरे, ॐ ह्रीं महावीरे, ॐ ह्रीं महावीरे, ॐ ह्रीं जयवीरे, ॐ ह्रीं जयवीरे, ॐ सेणवीरे, ॐ ह्रीँ सेणवीरे, ॐ ह्रीं वध्धमाण वीरे, ॐ ह्रीं वध्धमाण वीरे, ॐ ह्रीं जये, ॐ ह्रीं विजये, ॐ ह्रीं जयन्ते, ॐ ह्रीं अपराजिए, ॐ ह्रीं अणिहए ॐ सव्वट्ठ सिध्धे निव्वुए, महाणसे, महाबले ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । ॐ नमो भगवओ अरहओ अमुं विज्जा पउज्जामि सामे विज्जा पसिज्जउ । 38 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धासेन दिवाकरसूरि विरचित - श्री शकस्तव - ॐ नमोऽर्हते भगवते परमात्मने, परम ज्योतिथे, परम परमेष्ठिने, परमवेधसे, परमयोगिने, परमेश्वराय, तमसः परस्तात्, सदोदितादित्यवर्णाय, समूलोन्मूलतानादि सकलक्लेशाय... ॐ नमोऽर्हते भूर्भवः स्वस्त्रयीनाथ मौलिमन्दार मालार्चितकमाय, सकलपुरषार्थ योनिनिरवद्य विद्याप्रवर्तनैकवीराय, नमः स्वस्ति स्वद्या स्वाहा वषऽर्थैकान्त शान्तमूर्तये, भवद्भाविभूत भावावभासिने, कालपाशनाशिने, सत्वरजस्तमोगुणातिताय, अनन्तगुणाय, वाङमनोऽगोचरचरित्राय, पवित्राय, करणकारणाय, तरणतारणाय, सात्विकदैवताय, तात्विकजीवीताय, निग्रन्थ परमब्रह्महृदयाय, योगिन्द्रप्राणनाथाय, त्रिभूवन भव्यकुल नित्योसत्वाय, विज्ञानानन्द परब्रह्मैकात्म्यसालयसमाधये, हरिहरहिरण्य गर्भादिदेवता परिकलित स्वरूपाय, सम्यक् श्रध्धेयाय, सम्यग्ध्येयाय, सम्यग्शरण्याय, सुसमाहित सम्यग् स्पृहणीयाय... ॐ नमोऽर्हते भगवते आदिकराय, तीर्थंकराय, स्वयंसम्बुध्धाय, परूषोत्तमाय,पुरुषसिंहाय, पुरूषवर पुण्डरीकाय, पुरूषवरगन्धहस्तिने, लोकोत्तमाय, लोकनाथाय, लोकहिताय, लोकप्रदिपाय लोकप्रद्योतकारिणे, अभयदाय, दृष्टिदाय, मुक्तिदाय, मार्गदाय, बोधिदाय, जीवदाय, शरणदाय, धर्मदाय, धर्मदेशकाय, धर्मनायकाय, धर्मसारथये, धर्मवरचातुरन्त चक्रवर्तिने व्यावृतच्छद्मने, अप्रतिहत सम्यग्ज्ञानदर्शनछद्मने..... ॐ नमोऽर्हते जिनाय जापकाय, तीर्णाय तारकाय, बुध्धाय बोधकाय, मुक्ताय माचकाय, त्रिकालविदे, पारंगताय, कर्माष्टकनिषूदनाय, अधीश्वराय, शम्भवे, जगतप्रभवे, स्वयंभूवे, जिनेश्वराय, स्याद्वदवादिने, सार्वाय, सर्वज्ञाय, सर्वदर्शिने, सर्वतीर्थोपनिषदे, सर्वपाखण्ड मोचिने, सर्वयज्ञफलात्मने, सर्वज्ञकलात्मने, सर्वयोगरहस्याय, केवलीने, देवाधिदेवाय, वीतरागाय Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ नमोऽर्हते भगवते परमात्मने, परमाप्ताय, परमकारूणिकाय, सुगताय, तथागताय, महाहंसाय, हंसराजाय, महासत्वाय, महाशिवाय, महाबोधाय, महामैत्राय, सुनिश्चिताय, विगतद्वन्द्वाय, गुणाब्धये, लोकनाथाय, जितमारबलाय. ॐ नमोऽर्हते भगवते सनातनाय, उत्तमश्लोकाय, मुकुन्दाय, गोविन्दाय, विष्णवे, जिष्णवे, अनन्ताय, अच्युताय, श्रीपतये, विश्वरूपाय, हीषिकेशाय, जगन्नाथाय, भूर्भवः स्वः समुत्ताराय, मानंजयाय, कालंजयाय, ध्रुवाय, अजाय, अजेयाय, अजराय, अचलाय, अव्ययाय, विभवे, अचिन्त्याय, असंख्येयाय, आदि संख्याय, आदिकेशवाय, आदिशिवाय, महाब्रह्मणे, परमशिवाय, एकानेकान्त स्वरूपिणे, भावाभावविवर्जिताय, अस्तिनास्तिद्वयातीताय, पुन्य-पाप विरहिताय, सुख-दुःखविविक्ताय, व्यक्ताव्यक्त स्वरूपाय, अनादि मध्य निधानाय, नमोस्तु मुक्तिश्वराय, मुक्तिस्वरूपाय..... ॐ नमोऽर्हते भगवते थ्नरांतकाय, निःसंगाय, निःशंकाय, निर्मलाय, निर्भयाय, निर्द्वन्द्वाय, निस्तरंगाय, निरूर्मये, निरामयाय, निष्कलंकाय, परमदैवताय, सदाशिवाय, महादेवाय, शंकराय, महेश्वराय, महावतिने, महायोगिने, महात्मने, पंचमुखाय, मृत्युंजयाय, अष्टमूर्तये, भूतनाथाय, जगदानन्दाय, जगत्पितामहाय, जगद्देवाधिदेवाय, जगदीश्वराय, जगदादिकन्दाय, जगद्भास्वते, जगत्कर्मसाक्षिणे, जगच्चक्षुषे, त्रयीतनवे, अमृतकराय, शीतकराय, ज्योतिश्चक चक्रिणे, महाज्योति?तिताय, महातमः(पः) पारे सुप्रतिष्ठाय, स्वयंकत्रे, स्वयंहत्रे, स्वयंपालकाय, आत्मेश्वराय, नमो विश्वात्मने..... ॐ नमोऽर्हते भगवते सर्वदेवमयाय, सर्वध्यानमयाय, सर्वज्ञानमयाय, सर्वतेजोमयाय, सर्वमन्त्र मयाय, सर्वरहस्यमयाय, सर्वभावाभाव जीवाजीवेश्वराय, अरहस्यरहस्याय, अस्पृहस्पृणीयाय, अचिन्त्यचिन्तनीयाय, अकामकामधेनवे, असंकल्पितकल्पद्रु माय, अचिन्त्यचिन्तामणये, चर्तुदशरज्वात्मक जीवलोकचूडामणये, चतुरशितिलक्ष जीवयोनि प्राणनाथाय, पुरूषार्थनाथाय, परमार्थनाथाय, जीवनाथाय, देवदानव मानव सिध्धसेनादिनाथाय.... Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ नमोऽर्हते भगवते निरंजनाय, अनन्तकल्याणनिकेतनकीर्तनाय, सुग्रहीतनामधेयाय (महिमामयाय) धीरोदातधीरोद्धत, धीरशान्त, धीरललित पुरुषोत्तम, पुण्यश्लोक सतसहस्त्रलक्ष कोटि वन्दित पादारविन्दाय, सर्वगताय... ॐ नमोऽर्हते भगवते सर्वसमर्थाय, सर्वप्रदाय, सर्वहिताय, सर्वाधिनाथाय, कस्मैश्चेनक्षेत्राय, पात्राय, तीर्थाय, पावनाय, पवित्राय,अनुत्तराय, उत्तराय, योगाचार्याय, संप्रक्षालनाय, प्रवराय, आग्रेयाय, वाचस्पतये, मांगल्याय, सर्वात्मनीनाय, सर्वार्थाय, अमृताय, सदोदिताय, ब्रह्मचारिणे तायिने, दक्षिणीयाय, निर्विकाराय, वज्रर्षभनाराचमूर्तये, तत्वदर्शिने, पारदर्शिने, परमदर्शिने, निरूपमज्ञानबलवीर्यतेजः शक्तैश्वर्यमयाय, आदिपुरूषाय, आदिपरमेष्ठिने, आदिमहेशाय, महाज्योतिःसत्वाय, महार्दािनेश्वराय, महामोहसंहारिणे, महासत्वाय, महाज्ञामहेन्द्राय, महालयाय, महाशान्ताय, महायोगिन्द्राय, अयोगिने, महामहीयसे, महाहंसाय, हंसराजाय, महासिध्धाय, शिवमचलमरूजमनन्तमक्षयमव्याबाधमपुनरावृति, महानन्दं, महोदयं, सर्व दुःखक्षयं कैवल्यं, अमृतं, निर्वाणक्षरं, परमब्रह्मनिः, श्रेयसमपुर्नभवं, सिध्धिगतिनामधेयं, स्थानं, संप्राप्तवते चराचरमवते नमोऽस्तु श्री महावीर त्रिजगत्स्वामिने श्री वर्धमानाय। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर - प्रणत- मौलि-मणि- प्रभाणा सम्यक्-प्रणम्य जिनदयुगं युगादा भक्तामर सूत्र यःसंस्तुतः सकल-वाङ्मय - तत्त्वबोधा स्तोत्रै-र्जगत्-त्रितय-चित्तहरै-रूदारैः बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चित- पादपीठ ! बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र! शशांक- कान्तान् कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्रचक्रं सोऽहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश ! प्रीत्याऽऽत्म-वीर्य-मविचार्य मृगो मृगेन्द्रं अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति - सन्निबद्धं आक्रान्त-लोक-मलि-नील - मशेषमाशु मत्वेतिनाथ ! तव संस्तवनं मयेद चेतो हरिष्यतिसतां नलिनी - दलेषु आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्तदोषं दूरे सहस्र-किरणः कुरुते प्रभैव नात्यद्भुतं भुवन-भूषण ! भूत - नाथ ! तुल्या भवन्तिभवतो ननु तेन किं वा दष्ट्वा भवन्त-मनिमेष - विलोकनीयं पीत्वा पयः शशिकर-द्युति- दुग्धसिन्धोः मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । वालंबनं भवजले पततां जनानाम् ।।1।। दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथः । स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् | 12 || स्तोतुं समुद्यत-मति - र्विगत-त्रपोऽहम् । मन्यः क इच्छतिजनः सहसा ग्रहीतुम् ।। 3 ।। स्ते क्षमः सुरगुरू - प्रतिमोऽपि बुद्या । को वा तरितु-मल-मम्बु-निधिं भुजाभ्याम् ।।4। कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृत्तः । नाभ्येतिकिं निजशिशोः परिपालनार्थम् । ।15।। त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । तच्चारू-चूत- - कलिका-निकरैक-हेतुः । 16 ।। पापं क्षणात्क्षय-मुपैतिशरीर-भाजाम् । सूर्यांशु - भिन्नमिव शार्वर - मन्धकारम् । 17 ।। मारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात् । मुक्ताफल- द्युतिमुपैतिननूद-बिन्दुः ॥ 8 ।। त्वत् संकथाऽपि जगतां दुरितानि हान्ति । पद्माकरेषु जलजानि विकाशभांजि। 19 ।। भूतैर्गुणै-र्भुवि भवन्त-मभिष्टुवन्तः। भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति । ।10।। नान्यत्र तोष-मुपयातिजनस्य चक्षुः । क्षारं जलं जलनिधे रसितुं क इच्छेत् ।।11।। 42 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यैः शान्त-राग-रुचिभिः परमाणुभिस्त्वं निर्मापित-स्त्रिभुवनैक-ललामभूत! तावन्तएव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति ।।12।। वक्तं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्रहारि- निःशेष-निर्जित-जगत्-त्रितयो-पमानम्। बिम्बं कलङ्क-मलिनं क्व निशाकरस्य यद्वासरे भवतिपाण्डु-पलाश-कल्पम् ।।13।। सम्पूर्ण-मण्डल-शशांक-कला-कलाप ये संश्रिता-स्त्रिजगदीश्वर-नाथमेकं शुभ्रा-गुणा-स्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति। कस्तान् निवारयतिसञ्यरतो यथेष्टम्।।14।। चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभि कल्पान्त-काल-मरूता चलिताचलेन तं मनागपि मनो न विकार-मार्गम्। किं मन्दरादि-शिखरं चलितं कदाचित्?।।15।। निर्धूमवर्ति-रपवर्जित-तैलपूरः गम्यो न जातु मरूतां चलिता-चलानां कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि। दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः।।16।। नास्तं कदाचि-दुपयासि न राहुगम्यः नाम्भोधरो-दर-बिरूद्ध-महाप्रभावः स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्-जगन्ति। सूर्यातिशायि-महिलाऽसि मुनीन्द्र ! लोके ।।17।। नित्योदयं दलित-मोह-महान्धकारं गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्ज-मनल्प-कान्ति विद्योतयज्-जगद-पूर्व-शशाङ्क-बिम्बम् ।।18 ।। किं शर्वरीषु शशिना-ऽह्नि विवस्वता वा युष्मन्-मुखेन्दु-दलितेषु तमस्सु नाथ ! निष्पत्र-शालि-वन-शालिनि जीव-लोके : कार्य कियज्-जलधरै-र्जलभार-ननैः ।। 19।। ज्ञानं यथा त्वयि विभातिकृताऽवकाशं तेजः स्फुरन्मणिषु यातियथा महत्त्वं नैवं तथा हरिहरादिषु नायके षु। नैवं तु काच-शकले किरणा-कुलेऽपि।।20।। मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा किंवीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति। कश्रिन्मनो हरतिनाथ ! भवान्तरेऽपि।।21 ।। स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्तिपुत्रान् नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। सर्वा दिशो दधतिभानि सहस्ररश्मिं प्राच्येव दिग्जनयतिस्फुरदंशुजालम् ।।22।। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्वा-मामनन्तिमुनयः परमं पुमांस त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्तिमृत्युं मादित्य-वर्ण-ममलं तमसः परस्तात् । नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः ।।23।। त्वा-मव्ययं विभु-मचिन्त्य-मसंख्य-माद्यं ब्रह्माण-मीश्रर-मनंत-मनंगकेतुम् । योगीश्ररं विदितयोग-मनेक-मेकं ज्ञान-स्वरुप-ममलं प्रवदन्तिसन्तः ।।24।। बुद्वा-स्तमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोघात् त्वं शंकरोऽसि भुवन-त्रय-शंकर-त्वात् । धाताऽसि धीर ! शीवमार्ग-विधे-विधानात् व्यक्तं त्वमेव भगव् ! पुरुषोत्त्मोऽसि ।।25।। तुभ्यं नम-स्त्रिभुवनाऽऽर्तिहराय नाथ ! तुभ्यं नमः क्षिति-तलाऽमल-भूषणाय। तुभ्यं नम-स्त्रिजगतः परमेश्रराय तुभ्यं नमोजिन ! भवोदधि-शोषणाय ।।26 ।। को विस्मयोऽत्र यदि नाम-गणे-रशेषै दौषै-रूपात्त-विविधाश्रय-जातगर्वैः स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश !। स्वप्नांतरेपि न कदाचिद-पीक्षितोऽसि ।।27।। उच्चै-रशोक-तरु-संश्रित-मुन्मयूख माभातिरूप-ममलं भवतो नितान्तम्। स्पष्टोल्लसत्-किरण-मस्त-तमो-वितानं बिम्बं रवे-रिव पयोधर-पार्श्ववर्ति ।।28।। सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्। बिम्बं वियद्-विलस-दंशु-लता-वितानं तुंगोदयाद्रि-शिरसीव सहस्ररश्मेः ।।29 ।। कुन्दा-वदात-चल-चामर-चारू-शोभं विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम् । उद्यच्-छशाङ्क-शुचि-निर्झर-वारि-धार मुच्च-स्तटं सुर-गिरे-रिव शात-कौम्भम् । 30 ।। छत्र-त्रयं तव विभातिशशांक-कान्त- मुक्ताफल-प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभं मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानुकर-प्रतापम् । प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ।।31 ।। उन्निद्र-हेम-नव-पंकज-पुञ्त-कान्ति पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः पर्युल्लसन्-नख-मयूख-शिखा-भिरामौ पझानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ।।32 ।। इत्थं तथा तव विभूति-रभूज्-जिनेन्द्र ! धर्मो पदेशन-विधौ न तथा परस्य। यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा तादृक्कुतो ग्रह-गणस्य विकाशिनोऽपि।।33 ।। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्च्योतन्-मदाविल-विलोल- कपोल - मूल मत्त - भ्रमद्-भ्रमरनाद-विवृद्ध-कोपम् । ऐरावताभमिभ-मुद्धत-मापतन्त्रं दृष्ट्वा भयं भवतिनो भवदा-श्रितानाम् ।।34 ।। भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्जवल - शोणिताक्त बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-वह्निकल्पं विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुख - मापतन्त रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठनीलं आक्रामतिक्रमयुगेन निरस्त-शंक वल्ग-तुरंग-गज-गर्जित-भीम-नादं - उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा - पविद्धं कुन्ताग्र-भिन्न-गज-शोणित- वारिवाह - युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास् - अम्भोनिधौ क्षुभित-भीषण-नक्रचक्ररंगतरंग-शिखर-स्थित-यानपात्रा उद्भुत-भीषण-जलोदर-भारभुग्नाः त्वत्पाद-पंकज-रजोऽमृत - दिग्धदेहा मत्त-विपेन्द्र-मृगराज-दवानल -हितस्याशु नाश-मुपयातिभयं भियेव मुक्ताफल- प्रकर-भूषित-भूमिभागः । नाक्रामतिक्रमयुगाचल-संश्रितं ते । 35।। स्तोत्र - नजं तव जिनेन्द्र ! गुणै-निर्बध्धां ते जनो य इह कंठगता-मजस्रं दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्फुलिंगम् । त्वन्नाम - कीर्तन - जलं शमयत्य- - शेषम् ।।36 ।। क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतन्तम् । स्त्वन्-नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुंसः । ।37 ।। माजौ बलं बलवता-मपि भूपतीनाम् । त्वत्- कीर्त्तना-तम इवाशु भिदा-मुपैति ।।38 ।। वेगावतार-तरणाऽतुर-योध-भीमे । त्वत्पाद-पंकज-वना- श्रयिणो लभन्ते । 139 ।। पाठीन- पीठ-भय-दोल्बण - वाडवाग्नौ । स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति ।।40 ।। आपाद-कण्ठ-मुरू-शृङ्खल - वेष्टिताङ्गा गाढं बृहन् - निगड-कोटि-निघृष्ट- जंधाः । सद्यः स्वयं विगत-बन्ध - भया भवन्ति । । 42 ।। त्वन्नाम-मन्त्र-मनिशं मनुजाः स्मरन्तः शोच्यां दशा-मुपगता श्रूयुत-जीविताशाः । मर्त्या भवन्तिमकर-ध्वज-तुल्य - रूपांः ।।41 । संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम् । यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ।।43 ।। भक्त्या मया रुचिर - वर्ण-विचित्र - पुष्पाम् । तं मानतुंग- मवशा समुपैतिलक्ष्मीः ।।44 ।। 45 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पार्श्वनाथस्य मन्त्राधिराज स्तोत्रम्। - - - - - - - - - श्री पार्श्वः पातु वो नित्यं, जिन परम शंकर; नाथः परम शक्तिश्च, शरण्यः सर्वकामदः। सर्व विघ्नहर स्वामि, सर्व सिध्धि प्रदायकः; सर्व सत्वहितो योगी, श्रीकरः परमार्थदः । देवदेवः स्वयं सिध्ध, श्चिदानन्दमयः शिवः; परमात्मा परब्रह्म, परम परमेश्वरः। जगन्नाथः सुरज्येष्ठो, भूतेशः पुरूषोत्तमः; सुरेन्द्रे नित्यधर्मश्च, श्री निवासः सुधार्णवः । सर्वज्ञः सर्वदेवेशः, सर्वगः सर्वतो मुखः; सर्वात्मा सर्वदर्शी च, सर्व व्यापी जगद्गुरूः । तत्वमूर्ति परादित्यः, परब्रह्म प्रकाशकः; परमेन्दु परप्राणः, परामृतसिध्धिदः । अजः सनातनः शम्भ, रिश्वरश्च सदाशिवः; विश्वेश्वरः प्रमोदात्मा, क्षेत्राधिशः शुभप्रदः। साकारश्च निराकार, सकलो निष्कलोऽव्ययः; निर्ममो निर्विकारश्च, निर्विकल्पो निरामयः। अमरश्चाजरोऽनन्त, अकोऽनेकः शिवात्मकः; अलक्ष्यश्चाप्रमेयश्च, ध्यानलक्ष्यो निरंजनः। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐकाराकृतिरव्यक्तो, व्यक्तरूपस्त्रयीमयः; ब्रह्मद्वय प्रकाशात्मा, निर्भय परमाक्षरः। दिव्य तेजोमयः शान्तः, परामृतमयोऽच्युतः; आद्योऽनाद्यः परेशानः, परमेष्ठि परः पुमान् । शुध्ध स्फटिकसंकाशः, स्वयंभूः परमाच्युतः; व्योमकार स्वरूपश्च, लोकाऽलोकावभासकः। ज्ञानात्मा परमानन्दः, प्राणारूढो मनः स्थिति; मनो साध्यो मनोध्येयो, मनोदश्यः परापरः । सर्व तीर्थमयो नित्यः, सर्व देवमय प्रभुः; भगवान् सर्व तत्वेशः, शिव श्री सौख्यदायकः। इति श्री पार्श्वनाथस्य, सर्वज्ञस्य जगद्गुरोः; दिव्यमष्टोतरं नाम, शत मत्र प्रकीर्तितम् । पवित्रं परमं ध्येयं, परमानन्द-दायकम्; भुक्ति मुक्ति प्रदं नित्यं, पठतां मंगलप्रदम् । श्रीमत्परमकल्याण, सिध्धिदः श्रेयसेऽस्तु वः; पार्श्वनाथजिनः श्रीमान्, भगवान् परमः शिवः। धरणेन्द्र फणच्छत्रा, लंकृतो वः श्रियं प्रभुः; दद्यात्पद्मावतीदेव्या, समधिष्टित - शासनः। ध्यायेत्कमलमध्यस्थं, श्री पार्श्वजगदीश्वरम्; ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह समायुक्तं, केवलज्ञान भास्करम् । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद्मावत्याऽन्वितं वामे, धरणेन्द्रेण दक्षिणे; परितोऽष्टदलस्थेन, मंत्रराजेन संयुतम् । अष्टपत्र स्थितैः पंच, नमस्कारैस्तथा त्रिभिः; ज्ञानाधै र्वेष्टितं नाथं, धर्मार्थ काम माक्षदम् । सत्षोडशदलारूढं, विद्यादेवीभिन्वितम्; चतुर्विशंतिपत्रस्थं, जिनं मातृसमावृतम् । मायावेष्टयं त्रयाग्रस्थं, क्रौंकारसहितं प्रभुम्; नवग्रहावृतम देवं, दिक्पालैर्दशभिर्वृतम् । चतुष्कोणेषु मन्त्राद्यैश्चतुर्बीजान्वितैर्जिने; चतुरष्टदशद्वित्रि, द्विधांकसंज्ञकैर्युतम् । दिक्षु क्षकारयुक्तेन, विदिक्षु लांकितेन च; चतुरस्त्रेण वज्रांक, क्षितितत्वे प्रतिष्ठिम् । श्री पार्श्वनाथ मित्योवं, यः समाराधयेज्जिनम्; तं सर्व पाप निर्मुक्तं, भजते श्री शुभप्रदा । जिनेशः पूजितो भक्त्या, संस्तुतः प्रणतोऽथवाः; ध्यातस्तवं यैःक्षणं वाऽपि,सिध्धिस्तेषां महोदया। श्री पार्श्वतन्त्रराजान्ते, चिन्तामणिगुणास्पदम्; शान्तिपुष्टिकरं नित्यं, क्षुद्रोपद्रवनाशनम् । ऋध्धि सिध्धि महाबुध्धि, घृति श्री कान्ति कीर्तिदम्; मृत्युंजयं शिवात्मनं, जपनान्नन्दितो जनः । 48 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वकल्याणपूर्णः स्याद्, जरामृत्युविवर्जितः; अणिमादिमहासिध्धिं, लक्षजापेन चाप्नुयात्। प्राणायाममनो मन्त्र, योगादमृतमात्मनि; त्वामात्मनं शिवं ध्यात्वा, स्वामिन् सिध्धयन्ति। हर्षदः कामश्चेति, रिपुन्यः सर्वसौख्यदः; पातु वः परमानन्द, लक्षणः संस्मृतो जिनः । तत्वरूपमिदं स्तोत्रं, सर्वमंगल सिध्धिदम्; त्रिसन्ध्य यः पठेन्नित्यं, नित्यं प्राप्नोति स श्रियम् । -------------- ॐकार अक्षर जगत्गुरू सविहुं अक्षर बीज, अहं पास जिन नमो, रूपे माया बीज। चंद सूर देवह तणो, रतना रोहिणी भोग, मयण रहंती जेड तस, देजे तुम संजोग। कीजे मोहन वशीकरण, डाहरा मंत्र पसाय, चरणरक्त धरणेन्द्र कर, गौरी शंकर धाय। कर्पूरादिक पूजतां, रिध्धि वृध्धि दिये सार, बलवंती पद्मावती, षट् दरिशन आधार। जोयण मोहन वशीकरण, उपर चक फुरंत, मन के चिंते माणसे, ते पण पाय लागंत। ॐ नमो काली नागण, मुख वसे को वीस कंटो खाय, ह्रीं निलाडे वसे, को नवि सामु थाय। हथ मिले विण मुख मिले, मिलिया दुजण सत्तु, जो मे दुजण वशी कीया, सजण के हि मित्तु। ॐ लंकामई थरहरे, हणवो राम पभणेय, हुँ विहुं तुस माणसे, जो जल होम दियेण। ॐ डूमण कडणे डूमणी, बहू बहू कज कहेअ, (49) Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मो संनेहि विडंबीयो, जुणां पाणी देय। हुं तुम सलुणां विनवू, वातह एक सुणीज, द्याठा चांठा माणसा, तस सिर रोस गलीज। मंत्र गुप्त ए विनति, दीधी जन तव पास, बोधि बीज भव भव दीयो, सेवक कुं करो तास। ---------- पासह समरण जो करइ संतुट्ट हीयएण, अठुतर सवाहि भय, तसु नासेइ दूरेण। पासु चिंतामणि जे जपइ,नीय मणकमल मझारी, तिह नइ मंगलि नादि सिउं, आवइ नव निधि वारि। पास जिनेसर पणवमय, संकटि चिंतवइ जेय, रिध्धि बुध्धि सण, पमइ पामइ मंगल तेय। माया अक्खरि पासु जिण, जो जाइहिं निय चित्त, सुरनर किन्नरि हरिस वसि, ते नर थुणीइ जत्ति। पासु महासिरि मनि वसइ जीह नर तणइ तिकाल, तीह नर देखी उल्लसइ, महि मंडलि भूपाल। अहँ नमः श्री पास जिण, जे समरइ वरि भावि, ते नर वरीयइ तित्थयर, केवल कमला आवि। नमि उणय पासह अविचल गजपति जो सुविसाल, पास पसाइ जक्ख हुअ कलिकुंडि जि रखवाल। जस पयकमलि सया वसइ पउमि पासु वइरूट्ट, तसु नामिहिं तुट्टइ सयलु विसहर विसनां घट्ठ। वामा नंदन वसह जिण जे नित नमइ फूलिंग, भव माया ते नवि पडइ पामिय जिणवर जिंग। नाग सहस्सा दस वसइ भतीइ जेहनइ नामि, निम्मल सण सो दीयउ पास जिणेसर स्वामि। लंछण निसि सेवा करइए जसु पाए धरणिंदु, (50) Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सा दंसण उज्जोय कर पास जिणेसर चहुं। धरइ जो नियमणे पास मितं परं केडिआ सेस जीय कुग्ग डंबरं, लहइ सो नरमहा निम्मलं भोयणं पिच्छइ जेण तत्तीयं सोहणं। श्री सर्वकार्य सिद्धिादायक श्री शान्तिधारा पाठः) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ वं मं हं सं तं वंवं ममं हंहं संसं तंतं पंपं डंडं म्वी म्वी क्ष्वी ध्वी क्ष्वी द्राँ द्राँ द्रीं द्रौं द्रावय द्रावय नमोऽर्हते ॐ ह्रीं क्रौं मम पापं खंण्डय खण्डय, हन हन, दह दह, पच पच, पाचय पाचय सिध्धिं कुरू कुरू। ॐ नमोऽहं डॅ म्वी क्ष्वी हं सं डं वं व्हः पः हः क्षाँ क्षीं झै क्षौं क्षः। 1 । ॐ हूँ हाँ हिँ ही हूँ हूँ हैं हैं ह्रौं हूँ हू: अ सि आ उ सा नमः मम पूजकस्य ऋधिं वृध्धिं कुरू कुरू स्वाहा। ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते डः डः डः मम श्रीरस्तु, वृध्धिरस्तु. तुष्टिरस्तु, पुष्टिरस्तु, शान्तिरस्तु, कान्तिरस्तु, कल्याणमस्तु मम सर्व कार्य सिद्धयर्थं सर्व विध्न निवारणार्थ श्रीमद् भगवते सर्वोत्कृष्ट त्रैलोक्यनाथार्चितपादपद्म अर्हत्-परमेष्ठि-जिनेन्द्र देवाधिदेवाय नमोनमः। मम श्री शान्तिदेव पादपद्म प्रसादात् सधर्म-श्री- बलायुरारोग्यैश्चर्याभिवृद्धिरस्तु, स्वस्तिरस्त धान्यसमृध्धिरस्तु श्री शान्तिनाथो मां प्रति प्रसीदतु, श्री वीतरागदेवो मां प्रति प्रसीदतु, श्री जिनेन्द्रः परममांगल्य-नामधेयो ममेहामुत्र च सिध्धिं तनोतु। ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथाय, तीर्थकराय, रत्नत्रयरूपाय, अनन्तचतुष्टयसहिताय, धरणेन्द्रफणमौलि मण्डिताय, समवसरणलक्ष्मी शोभिताय, इन्द्रधरणेन्द्रचक्रवर्त्यादिपूजित पादपद्माय, केवलज्ञान लक्ष्मी शोभिताय, जिनराजमहादेवाष्टादशदोषरहिताय, Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षट्चत्वारिंशद्गुण संयुक्ताय, परमगुरूपरमात्मने, सिध्धाय, बुध्धाय, त्रैलोक्य परमेश्वराय, देवाय, सर्वसत्वहितकराय, धर्मचकाधीश्वराय, सर्वविद्यापरमेश्वराय, त्रैलोक्यमोहनाय, धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय, अतुलबलवीर्यपराकमाय, अनेकदैत्यदानव कोटिमुकुट घृष्टपादपीठाय, ब्रह्मा-विष्णु-रूद्र-नारद-खेचरपूजिताय, सर्वभव्यजनानन्दकराय, सर्वजीवविघ्न निवारण समर्थाय, श्री पार्श्वनाथ देवाधिदेवाय, नमोऽस्तु ते श्री जिनराज पूजन प्रसादात् मम सेवकस्य सर्व दोष- रोग-शोक-भय-पीडा विनाशनं कुरू कुरू सर्व शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं कुरू कुरू स्वाहा। ॐ नमो श्री शान्तिदेवाय सर्वारिष्टशान्तिकराय हाँ ही हूँ हैं हः असिआउसा मम सर्वविघ्नशान्तिं कुरू कुरू श्री संघस्य (अमुकस्य) मम तुष्टिं पुष्टिं कुरू कुरू स्वाहा। श्री पार्श्वनाथ पूजनप्रसादाद् मम अशुभान् पापान् छिन्धि छिन्धि, मम अशुभकर्मोपार्जित दुःखान् छिन्धि छिन्धि, मम परदुष्टजनकृत मंत्र-तंत्र-दृष्टि-पुष्टि छलच्छिद्रादिदोषान् छिन्धि छिन्धि, मम अग्नि-चोर-जल-सर्प व्याधि छिन्धि छिन्धि, मारिकृतोपद्रवान् छिन्धि छिन्धि, सर्व भैरव देवदानव-वीरनरनार-सिंहयोगिनी कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, भुवनवासी व्यन्तर ज्योतिषी देवदेवीकृतदोषान् छिन्धि छिन्धि, अग्निकुमार कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, उदधिकुमार सनतकुमारकृत विघ्नान् छिन्धि छिन्धि, दीपकुमार यान छिन्धि छिन्धि, भिन्धि भिन्धि, वातकुमार मेघकुमार कृतविन्यान् छिन्धि छिन्धि, भिन्धि भिन्धि, इन्द्रादि दशदिक्पाल देवकृत विघ्नान् छिन्धि छिन्धि, जय-विजय, अपराजित माणिभद्र पूर्णभद्रादि क्षेत्रपाल कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, राक्षस-वैताल -दैत्य -दानव यक्षादि कृतविघ्नान् छिन्धि छिन्धि, नवग्रहकृत ग्रामनगरपीडां छिन्धि छिन्धि, सर्व अष्टकुलनागजनित विषभयान् सर्व ग्राम नगर दशरोगान् छिन्धि छिन्धि, सर्वस्थावर जंगम वृश्चिक दष्टि विषजाति- सर्पादिकृत विषदोषान् छिन्धि छिन्धि, सर्वसिंहाष्टापद व्याघ्र-व्याल वनचरजीवभयान् छिन्धि छिन्धि, परशत्रुकृत मारणो-च्चाटन-विद्वेषण-मोहन-वशीकरणादि दोषान् छिन्धि छिन्धि ।। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वगो - ऋषभादि तिर्यग्मारीं छिन्धि छिन्धि, सर्व-वृक्ष-फल-पुष्प-लता-मारीं छिन्धि छिन्धि, ॐ नमो भगवति। चक्रेश्वरी ज्वालामालिनी पद्मावतीदेवी अस्मिन् जिनेन्द्रभुवने आगच्छ आगच्छ एहि एहि तिष्ठ तिष्ठ, बलिं ग्रहाण ग्रहाण, मम धनधान्य समृद्धिं कुरू कुरू, सर्वभव्यजीवानन्दं कुरू कुरू, सर्वदेश- ग्राम-पुर-मध्य क्षुद्रोपद्रव - सर्व दोष- मृत्यु - पीडा विनाशनं कुरू कुरू, सर्वपरचक्रभयनिवारणं कुरू कुरू, सर्वदेशग्रामपुरमध्य क्षुद्रोपद्रव - सर्व दोष- मृत्यु - पीडा विनाशनं कुरू कुरू, सर्वदेशग्रामपुरमध्य सुभिक्षं कुरू कुरू सर्व विघ्नशान्तिं कुरू कुरू स्वाहा ।। ॐ आँ कौं ह्रीं श्रीं वृषभादि वर्धमानानन्त चतुर्विशंति तीर्थंकर महादेवाः प्रीयन्तां प्रीयन्तां मम पापानि शाम्यन्तु, घोरोपसर्गाः सर्वविघ्नाः शाम्यन्तु । ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं रोहिण्यादि महादेव्यः अत्र आगच्छन्तु आगच्छन्तु सर्वदेवताः प्रीयन्तां प्रीयन्तां ।। ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं वर्धमानस्वामि- गौतमस्वामि धर्मतीर्थाधिष्ठायिकाः देवदेव्यः श्री पार्श्वपुरम् तीर्थाधिष्ठायिका दिव्य पद्मावतीदेवी वर्धमानविद्याधिष्ठायीन्यः जयाविजयाजयंता ऽपराजितादेव्यः सूरिमंत्राधिष्ठायिकाः भगवती सरस्वती देवीत्रिभुवनस्वामिनी श्रीदेवी - यक्षराजगणीपिटक - चतुषष्ठिसुरेन्द्रा-षोऽशविद्यादेव य-चतुर्विशंतियक्षाः चतुर्विंशंतियक्षिण्यः प्रीयन्तां प्रीयन्तां, मम अज्ञान निवारण - सारस्वत- रोगापहारिणी - विषापहारिणी-बंधमोक्षणी- श्री लक्ष्मीसंपादनी-परमंत्रविद्याछेदिनी - दोषनाशिनी-अशिवोपशमनी-विद्यासिद्धिं कुर्वन्तु, मम बाहुबलीविद्या- सौभग्यविद्या - जयविजयादि स्वप्नविद्यादि कुरूत कुरूत, विजयाजयाजयंति नंदाभद्रादेव्यः सानिध्यं कुर्वन्तु कुर्वन्तु, जैनशासन प्रत्यनीक निवारणं कुर्वन्तु कुर्वन्तु, मम सर्वकार्यसिध्धिं कुर्वन्तु कुर्वन्तु स्वाहा । - ॐ आँ कों ह्रीं श्रीं ॐ चक्रेश्वरी ज्वालामालिनी पद्मावती महादेवी प्रीयन्तां प्रीयन्तां । 53 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ आँ कौँ ह्रीं श्रीं माणिभद्रादि यक्षकुमारदेवाः प्रीयन्तां प्रीयन्तां । सर्वजिनशासन "रक्षक देवाः श्री घंटाकर्ण महावीराः प्रीयन्तां प्रीयन्तां । श्री आदित्य, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनी, राहु, केतु सर्वे नवग्रहाः प्रीयन्तां प्रसीदन्तु देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञःकरोतु शान्तिं भगवान जिनेन्द्रः। यत्सुखं त्रिषु लोकेषु, व्याधिव्यसनवर्जितम्। अभयं क्षेममारोग्यं स्वस्तिरस्तु च मे सदा। यदर्थं क्रियते कर्म, सप्रीतिनित्यमुत्तमम्। शान्तिकं पौष्टिकं चैव, सर्वकार्येषु सिद्धिदम् ।। ************************** श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्रम् । किं कर्पूरमयं सुधारसमयं, किं चन्द्र रोचिर्मयं, किं लावण्यमयं महामणिमयं, कारूण्यकेलिमयम्; विश्वानन्दमयं महोदयमयं, शोभामयं चिन्मयं, शुक्लध्यानमयं वपुर्जिनपते-भूयाद् भवालम्बनम् । पातालं कलयन्, धरांधवलयन्, आकाशमापूरयन्, दिक्चक्र क्रमयन्, सुरासुरनर, श्रेणिं च विस्मापयन्; ब्रह्माण्डं सुखयन्, जलाजिलधेः फेनच्छलाल्लोलयन्, श्री चिन्तामणि पार्श्वसंभवयशो, हंसश्चिरंराजते। पुण्यानांविपणि, स्तमोदिनमणिः कामेभ कुम्भे शृणिः, मोक्षेनिस्सरणिः, सुरेन्द्रकरिणि, ज्योति प्रकाशारिणिः; दाने देवमणि, नतोत्तमजन,-श्रेणिः कृपा सारिणी, विश्वसनन्दसुधा, धृणिभवभिदे, श्री पार्श्वचिन्तामणि। 154 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चिन्तामणि, पार्श्वविश्वजनता, संजीवनस्त्वंमया, दष्टस्तात ततः श्रियः समभ्वन, नाशक्रमाचक्किणम्; मुक्तिः क्रीडती, हस्तयोर्बहुविधं, सिद्धमनोवांच्छितं, दुर्दैवं दुरितं च, दुर्दिनभयं कष्टं प्रणष्टं मम । यस्थ प्रौढतमः प्रताप तपनः प्रोद्यामधामा, जगत् जंघालः कलिकाल केलिदलनो, मोहान्धविध्वंसकः: नित्योद्योतपदं, समस्तकमला, केलिगृहं राजते, स श्रीपार्श्वजिनो,जनेहितकृतश्चिन्तामणिःपातु माम। विश्वव्यापि तमो, हिनस्ति तरणि- बालोपि कल्पांकुरो, दारिद्राणि गजावलिंकरिशिशुः, काष्टानि वहूने कणः; पीयूषस्य लवोपि, रोगनिवहं यद्वतथाअते विभो, मूर्तिः स्फुर्तिमती, सती त्रिजगति; कष्टानि हर्तुं क्षमा । श्री चिन्तामणि मन्त्रर्मोकृतियुतं, ह्रींकार साराश्रितं, श्री मर्हन्नमिउण पाशकलितं, त्रैलोक्यवश्यावहम्; दैधाभूत विषापहं, विषहर श्रेयः प्रभावास्पदं, सोल्लसं वसहांकितं जिन फुलिंगानन्ददं देहिनाम् । श्रीं कारवरं नमोक्षरपरं, ध्यायन्ति ये योगिनो, हृत्पद्मे विनिवेश्य, पाश्वमधिपं, चिंतामणिः संज्ञकम्; भाले वाच भुजे च नाभि करयोर्भूयो भुजे दक्षिणे, पश्वादष्ट दलेसु ते शिवपदं द्वित्रैर्भवे यान्त्य हो । नो रोगा नैव शोका न कलह कलना नारि मारि प्रचारो, नो व्याधिर्ना समाधिर्न दुरितं दुष्ट दारिद्रता नो; नो शाकिन्यो ग्रहानो न हरिकरिगणा व्याल वैताल जाला, जायन्ते पार्श्वचिन्तामणिनतिवशतः प्राणिनां भक्ति भाजाम् । 55 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गीर्वाण द्रुम धेनु कुम्भ मणय स्तस्थांगणे रंगिनो, देवा दानव मानवाः सविनयं तस्मै हितं ध्यायिनः; लक्ष्मी स्तस्य वशा वशेव गुणीनां ब्रह्माण्ड संस्थायिनीः, श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मनिशं संस्तौति, इतिजिनपतिपार्श्वः पार्श्व पार्थ्याख्य यक्षः; त्रिभुवन जन वाञ्छा-दान चिन्तामणिकः; शिवपदतरू बीजं बोधि बीजं ददातु। ܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙ प्राचीनतम स्तोत्रमिदं श्री पार्श्वनाथस्य श्रीमदेवेन्द्र वृन्दामलमणि, मुकुटं ज्योतिषां चकवालै ालीढं पादपीठं, शठ कमठ कृतोपद्रवा बाधितस्य; लोकालोवभासीस्फुर दुरू विमलज्ञान सीपकं च, प्रध्वस्त ध्वान्त जालाः, स वितरतुसुखं संस्तुवे पार्श्वनाथम् । हाँ ही हूँ हौं विभास्वन्, मरकतमणिकाकान्तमूर्ते ! हिमं च; हं सं तं बीजमन्त्रैः, कृत सकल जगत् क्षेम रक्षोरूवक्षः; क्षा क्षीं बै क्षौं समस्त, क्षितितल महिता ज्योतिरूद्रद्योतितार्थम्; बै क्षाँ क्षौं क्षः क्षिप्त बीजो, गुरू शुभ भरैः संस्तुवे पार्श्वनाथम्। हीकारे रेफ युक्तं रररररररं, देव सं सं प्रयुक्तं; ॐ हाँ हाँ हाँ समेतं, विपदमद कला कच्चकोद्भासि हुँ हुँ ; धूं धूं धूं धूम्र वर्णे रखिल, महि जगन् मोहि देह्यानुकष्टं; वैषण्यन्त्रं पतन्तं, त्रिजगदधिपते! संस्तुवे पार्श्वनाथम् । (56) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आँ कों हीं सर्ववश्यं, कुरू कुरू सरसं कार्यणं तिष्ट तिष्ट; यूँ हूँ हूँ रक्ष रक्ष, प्रबलतरमहा भैरवारातिभीमैः; हाँ ही हूँ द्रावयेति, द्रव हन हन फट् फट् वषट् बन्ध अन्ध; स्वाहा मन्त्रं पठन्तं, त्रिजगदधिपते संस्तुवे पार्श्वनाथम्। हं सं इवीं क्ष्वी सहंसः, कुवलय कलितै रचितांग प्रसूनैः; इवी भः हः घर्भ हंसं, हर हर हहहं पक्षिपः पाक्षिकोपम्; पँ वँ हँस पर्वम सर सर, सर सत् सत्सुधा बीज मन्त्रैः; स्नाय स्थाने परत्नैः, प्रबलति विमुखं संस्तुवे पार्श्वनाथम् । क्ष्माँ माँ यूँ क्ष्मी क्षः, रेतै रहपति विनुतं रत्नदीपैः प्रदीपैः; हा हा कारोग्रदादैर्चल-द्हन शिखा कल्प दी|ध्वकेशैः; पिंगाक्षैलॊलि जिवे, विषम विषधरा लङकृते स्तीक्ष्ण दंष्टै; भूतेः प्रेतैः पिशाचै, रनघ कृत महोपद्रवाद् रक्षितारम् । झाँ झीँ झ्ः श्शाकिनीनां, सपदि हरपदं त्रिर्विशु द्धै र्विबुद्धैः; ग्लौं क्ष्मं ईं दिव्य जिह्ला, गतिमति कुपितं स्तम्भनं संविधेहि; फट् फट् सर्पादि रोगं, ग्रह मरणभयोच्चाटनं चैव पार्श्व; त्रायस्वाशेष दोषा, दमर नर वरैः संस्तुवे पार्श्वनाथम् । स्पाँ स्ी स्प॑ स्ौं स्फ्ः, प्रबल सु फलदं मन्त्र बीजं जिनेन्द्रम्; राँ रौं रौं रूँ रः, प्रमह महितं...पार्श्वदेवाधिदेवम्; क्राँ की . कौँ क्रः, ज ज ज ज ज जरा जर्जरी कृत्य देहं; धूं धूं धूं धूं धूं धूं धूं, ससम डुरित हं संस्तुवे पार्श्वनाथम्। इत्थं मन्त्राक्षरोत्थं, वचन मनुपमं पार्श्वनाथं सनित्यं; घो/ विद्वेषच्चाटनादि स्तंभन जयवशं पापरोगापनोदि, प्रोत्सर्पज्जंगमादि, स्थविर विषमुखं ध्वंसनं स्वायुदीधै; आरोग्यैश्चर्य युक्तो भवति यशः सुखं स्तौति तस्येष्ट सिद्धिः। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र स्तोत्रम् । ॐनमो देवदेवनाय, नित्यं भगवतेऽर्हते; श्रीमते पार्श्वनाथाय, सर्व कल्याण कारिणे। ही रूपाय धरणेन्द्र, पद्मावत्यर्चिताङघ्रये; सिद्धातिशय कोटिभिः; सहिताय महात्मने। अट्टे मट्टे पुरो दुष्ट-विघट्टे वर्ण पंक्तिवत्; दुष्टान् प्रेत पिशाचादिन्, प्रणाशयति ते मिधा। स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा, शतकोटि नमस्कतः। अधमत् कर्मणा दूरा-दापतन्तीविडम्बनाः। नाभिदेशोद्भवत्राले, ब्रह्मरन्ध्रप्रतिष्ठिते; ध्यातमष्टदले पद्म, तत्वमेतत् फलप्रदम्। तत्वमत्र चतुवर्णी, चतुर्वर्ण विमिश्रिता; पंचवर्ण क्रमध्याता, सर्वकार्यकारी भवेत्। क्षिप ॐ स्वाहेति वर्णैः, कृतपंचांग रक्षणः; योभिध्यायेदिदं तत्वं, वश्यास्तस्याऽखिलाः श्रियः । पुरूषं बाधते बाढं, तावत् कलेश परंपरा; यावत्र मंत्रराजोऽयं, हृदि जागर्ति मूर्तिमान्। व्याधि बन्धवध व्याला-नलाम्भः सम्भवं भयम; क्षयं प्रयाति प्रयाति पार्श्वेश-नाम स्मरण मात्रतः। यथा नादमयो योगी, तथा चेत् तन्मयो भवेत्; तथा न दुष्करं किञ्चित्, कथ्यतेऽनुभवादिदम् । Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इति श्री जीरिकापल्ली-स्वामी पार्श्वजिन स्तुतः; श्री मेरूतुंग सुरेः स्तात, सर्वसिद्धि प्रदायकः। जीरापल्ली प्रभु पार्श्व, पार्श्वयक्षेण सेवितम्; अर्चितं धरणेन्द्रेण, पद्मावत्याप्रपूजितम् । सर्व मन्त्रमयं सर्व-कार्यसिद्धिकरं परम्; ध्यायामि हृदयाम्भोजे, भूतप्रेत प्रणाशकम् । श्री मेरूतुंग सूरिनद्रः श्रीमत् पार्श्वप्रभोः पुरः; ध्यान स्थितिं हृदि ध्यायान् सर्वसिद्धिं लभेद् ध्रुवम। श्री चिंतामणि पास स्मरण दोहा :कल्पबेल चिन्तामणि कामधेनु गुणखान। अलख अगोचर अगमगति चिदानंद भगवान।। परमज्योति परमात्मा निराकार अविकार। निभ्रय रूप ज्योति स्वरूप पूरण ब्रह्म अपार ।। अविनाशी साहिब धनी चिन्तामणि श्री पास। विनय करूं कर जोड़ के पूरो वांछित आस।। मन चिंतित आशा फले सकल सिद्ध हो काम।। चिंतामणि का जाप जप चिंता हरे यह नाम ।। तम सम मेरे को नहीं चिंतामणि भगवान। चेतन की यह विनती दीजो अनुभव ज्ञान।। चौपाई : प्राणत देवलोक से आए जनम बनारस नगरी पाये। अश्वसेनकुलमण्डन स्वामि तिहुं जग के प्रभु अन्तर्यामि।। वामादेवी माता के जाए लंछन नागफणि मणि पाए। शुभकाया नवहाथ बखानो नीलवरण तनु निर्मल जानो।। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानव यक्ष सेवे प्रभु पाय पद्मावती देवी सुखदाय। इन्द्र चन्द्र पारस गुण गावै कल्पवृक्ष चिंतामणि पावै।। नित समरो चिंतामणि स्वामि आशा पुरे अन्तर्यामि। धन धन पारस पुरसादानी तुम सम जग में को नहीं नाणी।। तुमरो नाम सदा सुखकारी सुख उपजे दुःख जाये विसारी। चेतनरो मन तुमरे पास मन वांछित पुरो प्रभु पास।। दोहा :ओम् भगवंत चिंतामणि पार्श्वप्रभु जिनराय। नमो नमो तुम नाम से रोग शोक मिट जाय।। वात पित्त दूरे टले कफ नहीं आवै पास। चिंतामणि के नाम से मिटे खांस और श्वास।। प्रथम दूसरो तीसरो ताव चोथियों जाय। शूल बहतर परिहरे दाह खाज मिट जाय।। विस्फोटक गड गुमडा कोढ अठारह दूर। नेत्र रोग सब परिहरे रोग शोक मिट जाय।। चेतन पारस नाम को सुमरो मन चित लाय।। चौपाई :मन शुद्धे सुमरो भगवान् भयभंजन चिंतामणि नाम। भूत प्रेत भय जाये दूर जाप जपै सुख सम्पति पूर।। हाकरण श्याकरण व्यन्तर देव भय नहीं लारौ पारस सेव। जलचर थलचर उरपर जीव इनको भय नहीं समरो पीव।। बाग सिंह को भय नहीं कोय सर्प गोह आवै नहहीं कोय। बाट घाट में रक्षा करे चिंतामणि चिंता सब हरे।। टोणा टामण जादु करै तुमरो नाम लियां सब डरै। ठग फांसीगर तस्कर कोय द्वेषी दुशन नावे कोय।। भय सब भागे तुमरे नाम मन वांछित पूरो सब काम। भय निवारण पूरो आस चेतन जपे चिन्तामणि पास।। दोहा :चिंतामणि के नाम से सकल सिद्ध हो काम। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज रिद्धि रमणी मिले सुख संपत्ति बहु दाम।। हय गय रथ पायक मिले लक्ष्मी को नहीं पार। पत्र कलत्र मंगल सदा पाये शिव दरबार।। चेतन चिंता हरण को जाप जपे तिहुं काल। कर आंबिल षट्मास को उपजे मंगलमाल ।। पारस नाम प्रभाव से बाढे बह बल ज्ञान। मन वांछित सुख उपजे नित समरो भगवान ।। सवंत अठारा उपरे साठ त्रीस परिमाण। पोष शुक्ल दिन पंचमी वार शनिश्चर जाण।। पढे गुणे जो भाव से सुने सदा चित लाय। चेतन सम्पति बहुत मिले सुमरो मन-वच-काय।। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्रम्। श्री पद्म पद्मापति पूजितांग, स्नात्राम्भसो जातजयं जरान्तात्; सत्प्रातिहार्येण सदा सनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । लीलागृहं मंगल मालिकायाः, सुखाऽऽसिकायाः प्रवरं वदान्यम् । यमीश्वरं निर्मल योगनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । गलत् प्रभावं कमठस्य कष्टं, व्यालस्य बाल्येपि कृतं हि येन; तिं नित्य सेवाऽऽगत नागनाथं, नमामि शखेश्वर पार्श्वनाथं । सुखश्रिया निर्जित चारुचन्द्रं, सद्भूषणा भूषित दिव्य देहम्; प्रभावती प्रेमरसिकनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । अनेक देशाऽऽगत यात्रिकाणां, मनोऽभिलाषं ददसे समक्षम्; गम्भीरता हारित सिन्धुनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पद्रुम चिन्तामणि मुख्यभावा, इच्छाफलं देहभृतां फलन्ति; यन्नामत स्तं श्रितनाकिनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । योगा वियोगा रिपवो गरिष्ठाः, शोकाग्नि तोयादि भयाःप्रयान्ति; नाशं यतःशान्ततयोडुनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । भावप्रभेणाभिहितं यदेतत्, स्तुत्यष्टकं दुष्ट विघातकारि; तत्वं सदाऽभिष्टद पाश्वनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम्। महानन्द लक्ष्मी घनाश्लेष सक्त! सदा भक्त वाञ्छा विदानाभियुक्त! सुरेन्द्रादि सम्पल्लता वारिवाह! प्रभो पार्श्वनाथाय नित्यं नमस्ते। नमस्ते लसत् केवलज्ञानधारन्! नमस्ते महामोह संहारकारिन्! नमस्ते सदानन्द चैतन्य मूर्ते! नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते। नमस्ते जगज्जन्तु रक्षा सुदक्ष! नमस्तेऽनभिज्ञाततत्वैरलक्ष्य ! नमस्तेऽव्ययाचिन्त्य विज्ञान शक्ते! नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते। नमस्ते महादर्प कन्दर्प जेत, नमस्ते शुभध्यान साम्राज्य नेतः! नमस्ते मुनि स्वान्त पाथोज भुंग, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते। नमस्ते सदाचार कासार हंस! नमस्ते कृपाधार! विश्वावतंस ! नमस्ते सुर प्रेयसी गीत कीर्ते! नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते। नमस्ते सुदुस्तार संसारतायिन्! नमस्ते चतुर्वर्ग संसिद्धिदायिन्! नमस्ते परब्रह्म शर्मप्रदायिन्! नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमस्तेऽमितागण्य कारूण्य सिन्धो! नमस्ते त्रिलोक्यात सम्बन्ध बन्धो ! नमस्ते त्रिलोकी शरण्याय नाथ! नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते । नमस्ते सुरेन्द्रादि संसेव्य पाद! नमस्ते नतेभ्यः सदा सुप्रसाद ! नमस्ते तमःस्तोम निर्नाशमान! नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते । नमस्ते विभो! सर्व विद्यामयाय, नमस्ते लसल्लब्धि लीला युताय ! नमस्तेऽसम श्रेष्ठ देवेश्वराय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते । जय त्वं जगन्नेत्र पीयुषपात्र! जय त्वं सुधांशु प्रभा बौर गात्र! जय त्वं सदा मन्मनः स्थायिमुद्र! जय त्वं जय त्वं जय त्वं जिनेन्द्र । इत्थं स्वल्पधियापि भक्ति जनितोत्साहान्मया संस्तुत ! श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ! नत सद्भक्तैक चिन्तामणे ! सर्वोत्कृष्टपद प्रदान रसिकं सर्वार्थ संसाधकं ! तन्मे देहि निजाङिङ्घ्रपदूम विमल श्री हंसरत्नायितम् । अथ श्री शान्ति दंडक । 2 नमः श्री शांतिनाथाय सर्वलोक प्रकृष्टाय, सर्व वांछित दायिने इह हि भरतैरावत विदेहजन्मनां तीर्थंकराणां जन्मसु चतुःषष्ठि सुरासुरेन्द्राश्च चलितासना विमान घंटाटंकार क्षुभिताः प्रयुक्तावधि ज्ञानेन, जिन जन्मविज्ञान परमतम प्रमोद पूरिताः मनसा नमस्कृत्य जिनेश्वरं सकलसामानिकां गरक्ष- पार्षद्य-त्रायस्त्रिंशल्लोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोगिक-सहिताः साप्सरोगणाः सुमेरूशृंगमागच्छन्ति, तत्र च सौधर्मेन्द्रेण विधिना करसंपुटानीतांस्तीर्थंकरान् पांडुकंबला तिपांडुकंबला रक्तकंबला तिरक्तकंबला शिलासुन्यस्त- सिहांसनेषु, सुरेन्द्रक्रोडस्थितान् कल्पित मणि सुवर्णादिमय योजनमुख कलशोद्गत स्तीर्थवारिभिः स्नपयन्ति, ततो गीत-नृत्य- वाद्य - महोत्सवपूर्वकं शांति मुद्द्द्घोषयन्ति, तत् कृतानुसारेण वयमपि तीर्थंकर स्नात्रकरणानन्तर शान्ति मुद्घोषयामः सर्व कृतावधानाः सुरासुरनरोरगाः श्रृणवन्तु स्वाहाः। 63 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ नमो जय जय पुण्याहं पुण्याहं, प्रियन्तां प्रियन्तां भगवतोऽर्हन्तो विमलकेवला स्त्रिलोकपूज्या स्त्रिलोकोद्योतकराः महातिशया महानुभावा महातेजसो महापराक्रमा महानन्दाः। ॐऋषभ,अजित,संभव,अभिनन्दन,सुमति,पद्मप्रभु,सुपार्श्व,चन्द्रप्रभु,सुविधि, शीतल,श्रेयांस,वासुपूज्य,विमल,अनन्त,धर्म,शान्ति,कुन्थु,अर,मल्लि,मुनिसुव्रत, नमि,नेमि,पार्श्व,वर्धमानान्ता जिना अतीतानागत वर्तमानाः पंचदशकर्मभूमि संभवा विहरमाणाश्च, शाश्वतप्रतिमागता, भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिक भवनसंस्थिताः तिर्यगलोक,नंदीश्वर, रूचकेषुकार, कुंडल,वैताढय,गजदन्त, वक्षस्कार,मेरूकृतनिलया जिना सुपूजिताः सुस्थिताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा। ॐ देवाश्चतुर्णिकाया भवनपति-व्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिका स्तदिन्द्राश्च साप्सरसः सायुधाः सवाहनाः सपरिकराः प्रीताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा। ॐ रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्जश्रृंखला, वज्जअंकुसिया, चक्केसरि, नरदत्ता, काली, महाकाली, गोरी, गंधारी, महज्जाला, माणवी, वइरूट्टा, अच्छुप्ता, मानसी, महामानसीरूपा सोडष विद्यादेव्यः सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिकारिण्यो भवन्तु स्वाहा। ॐ अर्हत्सिध्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुपरमेष्ठिनः सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा। ॐअश्वनी-भरणी-कृतिका-रोहिणी-मृगशीर-आद्रा-पुर्नवसु-पुष्य-आश्लेषा-मघ -पू.फाल्गुनी-उ. फाल्गुनी-हस्त-चित्रा-स्वाति-विशाखा-अनुराधा-ज्येष्ठा-मूल -पू.षाढा-उ.षाढा-अभिजित-श्रवण-घनिष्ठा-शभिषक्-पू.भाद्रपदा-उ. भाद्रपदा-रेवती रूपाणी नक्षत्राणि सुपूजितानी सुप्रीतानी शान्तिकराणी भवन्तु स्वाहा। ॐ मेष-ऋषभ-मिथुन-कर्क-सिंह-कन्या-तुला-वृश्चिक-धनु-मकर-कुंभमीनरूपाराशस्य सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ सूर्य-चंद्रागारक-बुध-बृहस्पति - शुक्र - शनैश्वर - राहु-केतु रूपाः सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा। ॐ इन्द्र-अग्नि-यम-नैऋत्य- वरूण- वायु- कुबेर- इशान - नाग-ब्रह्म रूपा दिक्पालाः सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा। ॐ गणेश-स्कन्दं क्षेत्रपाला देश - नगर - ग्राम देवताः सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा । ॐ अन्येऽपि क्षेत्रदेवा-जलदेवा - भूमिदेवाः सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा | ॐ अन्याश्च पीठोपपीठ क्षेत्रोपक्षेत्र वासिन्यो देवाः सपरिकराः सबटुकाः सुपूजिताः सुप्रीताः भवन्तु (स्वाहा ) शान्तिं कुर्वन्तु स्वाहा । ॐ सर्वेऽपि तपोधन-तपोधनी - श्रावक-श्राविका भवाश्चतुर्णिकायदेवाः सुपूजिताः सुप्रीताः शान्तिं कुर्वन्तु स्वाहा । ॐ अत्रैवदेश-नगर-ग्रामगृहेषुदोष-रोग-वैर-दौरमनस्य-दारिद्र-मरक-वियोगदुःख - कलहोपशमेन शान्तिर्भवतु । दुर्मनो भूत-प्रेत-पिशाच-यक्ष-राक्षस - वैताल- झोटिंक-शाकिनी-डाकिनी तस्कराततायिनां प्रणाशेन शान्तिर्भवतु । भूकम्प-परिवेष-विद्युत्पातोल्कापात - क्षेत्र देश निर्घात - सर्वोत्पात दोष शमनेन शान्तिर्भवतु। अकाल फल प्रसुति वैकृत्य पशु पक्षी वैकृत्या - कालदुश्चेष्टा -प्रमुखोपप्लवोपशमनेन, ग्रह गणपीडित- राशि - नक्षत्र पीडोपशमनेन शान्तिर्भवतु । जांघिक-नैमितिकाकस्मिक- दुःशुकन - दुःस्वप्नो पशमनेन शान्तिर्भवतु । कतकिमाण- पापक्षयेण शान्तिर्भवतु । दुर्जन- दुष्ट-दुर्भाषक - दुश्चिन्तक- दुराराध्य शत्रुणां दुरापगमनेन शान्तिर्भवतु । उन्मृष्ट-रिष्ट-दुष्ट-ग्रह-गति - दुःस्वप्न- दुनिर्मितादि संपादित-हित संपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः । या शान्तिः शान्तिजिने गर्भगते ऽथाजनिष्ट वा जाते 1 सा शान्तिरत्र भूयात्, सर्वसुखोत्पादनाहेतुः । अत्र च गृहे सर्वसंपदागमनेन, सर्वसंतानवृध्धया, सर्वसमीहितवृध्धया, 65 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वोपद्रवनाशेन, मांगल्योत्सव, प्रमोद, कौतुक, विनोद, दानोद्भवेन शान्तिर्भवतु । भ्रातृ-पत्नि मित्र- सबंधिजन नित्य प्रमोदेन शान्तिर्भवतु । आचार्योपाध्याय-तपोधन-तपोधनी - श्रावक-श्राविका रूप संघस्य शान्तिर्भवतु । सेवक-भृत्य-दास-द्विपद-चतुष्पद परिकरस्य शान्तिर्भवतु । अक्षीणकोष्ठ-कोष्ठागारा-जलवाहनानां नृपाणां शान्तिर्भवतु। जनपदस्य शान्तिर्भवतु । श्री जनपदमुख्याणां शान्तिर्भवतु । श्री सर्वश्रमाणां शान्तिर्भवतु। पुरमुख्याणां शान्तिर्भवतु। राजसन्निवेशानां शान्तिर्भवतु । धन-धान्य, वस्त्र, हिरण्यानां शान्तिर्भवतु । ग्राम्याणां शान्तिर्भवतु । क्षेत्रिकाणां शान्तिर्भवतु । क्षेत्राणां शान्तिर्भवतु । सुवृष्टाः सन्तु जलदाः, सुवाताः सन्तु वायवः । सुनिष्पन्नास्तु पृथ्वीः, सुस्थितो ऽस्तु जनोऽखिलः ।। ॐ तुष्टि - पुष्टि - ऋधि-वृध्धि सर्वसमीहित वृध्धिर्भूयात् । शुद्ध जला अभिषेक - अष्टप्रकारी पूजा करना पुष्प वृष्टि पश्चात् 1008 पुष्प प्रत्येक जाप सहित अर्पण चैत्यवंदन-आरती-मंगल दीपक और शांति कलश बृहत् शान्ति स्तोत्रम् भो भो भव्याः ! शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद्, थे यात्रायां त्रिभुवचनगुरोरार्हता भक्तिभाजः। तेषां शान्तिभवतु भवतामर्हदादिप्रभावा - दारोग्य-श्री- धृति-मतिकरी क्लेशविध्वषंसहेतुः ।। 1 ।। भो भो भव्यलोकाः ! इह हिं भरतैरावतविवेहसम्भ-वानां समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्र कम्पानन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः, सुधोषाघण्टाचालनान्तरं सकलसुरासुरेन्द्रः सह समागत्य, सविनयमर्हद्भट्टारकं 66 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गृहीत्वा, गत्वा कनकाद्रिशृङ्गे, विहितजन्मभिषेकः शान्तिमुद्धोषयति यथा, ततोऽहं कृतानुकारमिति कृत्वा ‘महाजनो येन गतः स पन्धाः' इति भव्यजनैः सह समे त्य, स्नात्र पीठे स्नात्रं विधाय, शान्मुि द्धोषयामि, तत्पूजा-यात्रा-स्नात्रादिमहोत्सवानन्तरमिति कृत्वा कर्ण दत्त्वा निशम्यतां निशभ्यतां स्वाहा। ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदशिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोकमहितास्त्रिलोक-पूज्यास्त्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योत कराः। ॐ ऋषभ-अजित-सम्भव-अभिनन्दन-सुमति-पद्म-प्रभ-सुपार्श्व-चन्द्रप्रभ -सुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपू-ज्य-विमल-अनन्त-धर्म-शान्ति-कुन्थु-अरमल्लि-मुनिसुव्रत-नमि-पार्श्व-वर्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्किरा भवन्तु स्वाहा। ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजय-दुर्भिक्ष-कान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा। ॐ ही श्रीं धृति-मति-कीर्ति-कान्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-मेधा-विद्यासाधन--प्रवेशननिवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः ! ॐ रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वज्प्रशृङ्खला-वग्रङ्कुशी-अप्रति-चऋ-पुरुषदत्ता-कालीमहाकाली-गौरी-गान्धारी-सर्वास्त्रा महाज्वाला-मानवी-वैरोट्या-अच्छुप्ता -मानसी- महामान-सो-षोडश विद्यादेव्यो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा। ॐ आचार्योपाध्यायप्रभृतिचातुर्वर्णस्य श्रीश्रमण-सङ्घस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु। ॐ ग्रहाश्चन्द्र सूर्या-ङ्गारक बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनै-श्चर-राहु-केतुसहिताः सलोकपालाः सोम-यम-वरुण-कुबेर वासवा-ऽऽदित्य-स्कन्द-विनायकोपेता ये चाऽन्ये ऽपि ग्रामनगर-क्षेत्रदेवतादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां, अक्षीणकोष-कोष्ठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा। ॐ पुत्र-मित्र-भ्रातृ-कलत्र-सुहृत्-स्वजन-सम्बन्धि-बन्धुवर्गसहिता नित्यं च । ऽ ऽ माद प, माद का रि [ : , असिम - १ च भूमण्डलआयतननिवासिसाधु-साध्वी-ज्रावक-ज्रावि-काणां गेगोपसर्गव्याधिदुःख-दुर्भिक्ष-दौर्मनस्यो-पशमनाय शान्तिर्भवतु। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ तुष्टि-पुष्टि-ऋद्धि-वृद्धि-माङ्गल्योत्सवाः सदा प्रादुर्भूतानि पापानि शाभ्यन्तु दुरितानि शत्रवः परा-ङ्मुखा भवन्तु स्वाहा। श्रीमते शान्तिनाथाय, नमः शान्तिविधायिने। त्रैलो-क्यस्याऽमराधीश- मुकुटाभ्यचिंताछये ।।1 ।। शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान्, शान्तिं दिशतु मे गुरुः। शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शान्तिर्गृहे गृहे ।।2 ।। उम्मृष्टरिष्ट-दृष्टग्रहगति-दुःस्वप्न-दुर्निमित्तादि । सम्पादितहितसम्य-त्रामग्रहणं जयति शान्तेः ।।3।। श्रीसचजगज्जनपद-राजाधिप-राजसत्रिवेशानाम्। गोष्ठिक-पुरमुल्याणां, व्याहरणैव्यहिरेच्छान्तिम् ।।।।। श्रीश्रमणसङ्घस्य शान्र्भिवतु, श्रीपौरजनस्य शान्ति-:वतु, श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु, श्रीराजाधिपानां शान्तिर्भवतु, श्रीराजसत्रिवेशानां शान्तिर्भवतु, श्रीबह्यलोकस्य शान्तिर्भवतु, श्रीगोष्ठिकानांश तर्भवतु, श्री पौर मुख्याणां शान्ति भर्वतु ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा। एषा शान्तिः । प्रतिष्ठा-यात्रा-स्नात्रा-द्यवसानेषु शान्तिकलशं गृहीत्वा कुङ्कुम-चन्दन-कर्पूरा-ऽगरुधूप-वास-कुसुमाज्जलिसमेतः स्नात्रचतुष्किकायां श्रीसङ्घस-मेतः शुचिः शुचिवयुः पुष्प-वस्त्र-चन्दना-ऽऽभरणालङ्कृतः पुष्पमाला कण्ठे कृत्वा शान्तिमुद्धोषयित्वा शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यमिति। नृतयन्ति नित्यं मणिपुष्पवर्ष, सृजन्ति गायन्ति च मङ्गलानि । स्त्रोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान्, कल्याणभाजो हिं जिनाभिषेके।। शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र, सुखीभवतु लोकः ।। अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनिवासिनी। अम्ह सिव तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा।। उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ।।।।। सर्वमङगलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम्।। प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ।।5 ।। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वसुधारा पाठ इयं वसुधारा नाम धारिणी तथागतेभ्यः अर्हद्भ्यः स्वयं संबुद्धेभ्यो महतीं उंदारां पूजां कृत्वा नमस्कृत्वा समर्चयेत्, अर्ध रात्रौ चतुर्वारान् तस्य देवता आत्मनः प्रमुदिता प्रीति सौमनस्य जाता स्वमेवागत्य धन, धान्य, हिरण्य, सुवर्ण,रत्न वृष्टि पातयिष्यति, ते प्रीताः तथागत शासने प्रीता बुध प्रज्ञप्त्या प्रीता ग्रन्थ प्रज्ञप्त्या प्रीता मम धर्म भाणकस्याशनेन च नमो रत्नत्रयाय ॐ नमो भगवते वज्रधर सागर निर्घोषाय तथागताय अर्हत् सम्यग् संघाय तद्यथा ॐ नमो श्री सुरूपे, सुवदने, भद्रे, सुभद्रे, भद्रवति, मंगले, सुमंगले, मंगलवति, अग्रले, अग्रवती, चन्द्रे, चन्द्रवती, अचले, अचपले, उद्घातिनी, उभेदिनी, उद्छेदिनी, उद्योतिनी, । । शिष्यवति, धनवति, धान्यवति, उद्योतवति, श्रीमति-प्रभवति अमले, विमले, निर्मले, रूरूमे, सुरूपे, सुरूपे, विमले, अर्चनस्ते, अतनरस्ते, वितनस्ते, अतुनस्ते, अवनतहस्ते, विश्वकेशि, विश्वनिशि, विश्वरूपिणी, विश्वनखा, विश्वशिरे, विश्वशीले, विगुहनीये, विशुध्धनीये, उत्तरे, अनुत्तरे, अंकुरे, मंकुरे, नंकुरे, पभंकरे, ररमे, रिरिमे, रूरूमे, खखमे, खिखिमे, खूखूमे, धधमे, धिधिमे, धूधूमे, ततरे, ततरे, तुरे तुरे, तर तर, तारय तारय मां सर्वसत्वाश्च वज्र वज्रे, वज्रगर्भे, वज्रोपमे, वज्रणि, वज्रवति, उक्के, बुक्के, तुहुकक्के, दक्के, धक्के, टक्के, वरक्के, आवर्तनि, प्रवर्तिनि, निवर्षणि, प्रवर्षनि, वर्धनि, प्रवर्धिनि, निष्पादनि, वज्रधरसागर निर्घोषं तथागतं अनुस्मर-अनुस्मर, स्मर-स्मर, सर्व तथागत्ये सत्यमनुस्मर, संघ सत्यमनुस्मर, अनिहारी-अनिहारी, तप-तप, रूढ-रूढ, पूर-पूर, पूरय-पूरय, भगवति वसुधारे मम सपरिवारस्य सर्वेषां सत्वानां च भर-भर भरणी शान्तिमति, जयमति, महामति, सुमंगलमति, पिंगलमति, सुभद्रमति, शुभमति, चन्द्रमति आगच्छ आगच्छ समय मनुस्मर स्वाहा। आंधार मनुस्मर स्वाहा। आकाश मनुस्मर स्वाहा। आचरण मनुस्मर - स्वाहा। प्रभाव मनुस्मर स्वाहा। स्वभाव मनुस्मर स्वाहा। धृति मनुस्मर स्वाहा। सर्व तथागतानां विनय मनुस्मर स्वाहा। हृदय मनुस्मर स्वाहा। उपहृदय मनुस्मर स्वाहा । जय मनुस्मर स्वाहा। ॐ श्री वसुमुखी स्वाहा। ॐ श्री वसुश्री स्वाहा। ॐ श्री वसु स्वाहा। ॐ श्री वसुश्रियै स्वाहा। ॐ वसुमति स्वाहा । ॐ वसुमतिश्रियै स्वाहा । ॐ वस्वे स्वाहा । ॐ वसुदे स्वाहा । ॐ वसुधरी स्वाहा । ॐ धरणी धारिणी (69) Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाहा। ॐ समयसौमय समयकरी महासमये स्वाहा। ॐ श्रियै स्वाहा। ॐ श्री करी स्वाहा । ॐ धनकरी स्वाहा। ॐ धान्यकरी स्वाहा। मूलमंत्र ॐ श्रिये श्री करी धनकरी धान्यकरी रत्नवर्षिणी साध्यमंत्र ॐ वसुधारे स्वाहा। हृदयं ॐ लक्ष्मी स्वाहा। ॐ उपहृदयः ॐ लक्ष्मी भूतलनिवासिने स्वाहा। स यथा ॐ यानपात्रावहे स्वाहा। मा दूरगामिनी. अनुत्पन्नानां द्रव्यानां उत्पादनि उत्पन्नां द्रव्याणां वृध्धिकरी, ॐ टिलि-टिलि, टेलि-टेलि, इत-इत, आगच्छ आगच्छ भगवति, वसुधारे, मा विलंबय मा विलंबय, मनोरथं मे परिपूरय। इन्द्रो वैश्रमणश्चैव, वरूणो धनदो यथा। मनोनुगामिनी सिध्धि, चिन्तयति सदा नृणां ।। चिन्तितं सततं मम प्रयच्छन्तु हिरण्यं सुवर्णं प्रदापय स्वाहा । वसु स्वाहा। वसुपतये स्वाहा । इन्द्राय स्वाहा। यमाय स्वाहा। वरूणाय स्वाहा । वैश्रमणाय स्वाहा । इप्सितं मनोरथं मे परिपूरयति। मूल विद्या नमो रत्नत्रयाय, नमो देवि धनद दुहिते वसुधारे धनधारा पातय पातय भगवति वसुधारे मद्भवने प्रविश्य महाधन धान्य धारा पातय कुरू कुरू। ॐ महावृष्टि निपाती निवसु स्वाहा। ॐ वसूधारे सर्वार्थ साधिनि साधय-साधय शुध्धे विशुध्धे, शिवंकरि, शान्तिकरि, भयविनाशिनि, सर्व दुष्टान् भंजय-भंजय, स्तंभय-स्तंभय श्री सकल संघस्य शान्तिं, तुष्टिं, पुष्टिं, ऋधिं, वृध्धिं सुख सौभाग्यं रक्षां कुरू कुरू राजा प्रजा सर्वजन वश्यं कुरू कुरू मम शान्ति सुख सौभाग्यं रक्षां कुरू कुरू स्वाहा। अर्हतां सम्यक् परिपूजां कृत्वा षण्मासान आवर्तयेत् ततः इयं वसुधारा सिध्धा वति इति।। वसुधारा मूल मंत्रः ॐ ऐं ह्रीं क्ली हमाँ श्री कनकधारा रूप्य मणि मुक्ताफल सुख धन चिन्तामणि प्राप्ति कारिणी विद्या धारिणी धनदपुत्री श्री वसुधारा सुखकारिण मम संपदानी देनारी स्वामिनी तुभ्यं नमो नमः स्वाहा। इति श्री आर्य वसुधारायाः संक्षिप्त पाठः परि समाप्तः। विधि-विधानपूर्वक लाई गई औषधियों द्वारा परमात्मा का विलेपन और जल र सतत छः महीने तक श्रद्धापूर्वक अभिषेक करने से असाध्य रोगी भी ठीक होने के आश्चर्यकारी परिणाम देखने में आये हैं। गुड के पानी, मिश्री का पानी, हल्दी मिश्रित जल, केसर मिश्रित जल, नालीले Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जल, गन्ने का रस, दूध, दही, मोसंबी का रस इत्यादि विविध प्रकार के अभिषेक भी अलग-अलग राशि एवं ग्रहों की बाधा में सुन्दर परिणाम देते हैं। औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य है, बहेडा को संस्कृत भाषा में 'बिभीतक' कहते हैं। जिसके प्रभाव से परस्पर गाठ मित्रता वाले दो मित्र अगर वह वृक्ष के नीचे कुछ क्षण रुके तो दोनों का स्वभाव परस्पर विशेष हो जाता है। दोनों में दुश्मनी हो जाती है जबकि परस्पर शत्रु भाव रखने वाले दो व्यक्ति अशोक वृक्ष के नीचे बैठे हुए होंतो दोनों में शत्रु भाव में मंदता और मित्र भाव में वृद्धि होती है। कभी-कभी तो देवों की शक्ति जहाँ नहीं पहुँच सकती है, वहाँ औषधि शक्ति ने अपना प्रभाव दिखलाया है। प.पू.आ. री सोमप्रभ सूरि म.सा. द्वारा रचित श्री 'कुमारपाल प्रतिबोध' ग्रंथ के एक कक्ष में यह बात आती है। राजा की कन्या गूंगी थी, राजा के मित्र ने देव की शक्ति का परिचय बताते हुए कहा कि उस देव को वह अपने पास ला सकता है। राजा ने मित्र से देव को बुलाने की विनती की, देव हाजिर हुए लेकिन कन्या कुछ बोली नहीं थोड़ी देर बाद कन्या बोलने लग गई। तब राजा ने देव से प्रश्न किया क्यूँ बोलने में इतनी देर हुई, तब देव ने कहा यहाँ आकर बोलने को हुआ लेकिन कन्या गूंगी होने की वजह से बोल नहीं पाया इसलिये हिमालय जाकर औषधि लाकर उसका प्रयोग किया इसलिए इतनी देर लगी। स्तोत्र पाठ समर्पण की क्रिया है और मंत्र जाप पुरुषार्थ की क्रिया है। इस अवधि काल के प्रथम धर्म तीर्थ स्थापक श्री ऋषभ देव भगवान ने जगत की असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मों के द्वारा जहाँ समाज को विकास का मार्ग बतलाया, वहीं अहिंसा, आचार्य, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को उपदेश द्वारा समाज की आंतरिक चेतना को जगाया और आत्म विकास का मात्र बतलाया। उचितमभिषेककाले, मुनिगात्र-पवित्र-चित्र-चारुफलं क्षीरं आरादादेक-लक्ष्मी-लक्ष्मी दध (द्) दधात्। अभिषेक के समय क्षीर सागर का जल की लक्ष्मी शोभा को धारण करता है, क्षीर (दुन्ध), मुणि (तीर्थंकर) के शरीर द्वारा पवित्र होकर आश्चर्यकारक सुंदर फल देने वाले (स्नात्र करने वाले को) लक्ष्मी प्रदान करे। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीव-अजीव का उन्हें सूक्ष्म ज्ञान था वनस्पति काटा को जीव-रूप जानते थे, उन्हें भेद कार्य प्रणाली गुण धर्म, त्रसकाय-बेन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय आदि जीवों के स्वरूप, स्वभाव, गुण-दोष आदि का सर्वांगीण ज्ञान था। इसीलिये हरएक जीव दूसरे जीव का पूरक कैसे बन सकता है यह भी जानते हैं।' अतः ऐसी अनेक विधियों का संयोजन किया जिससे कि शुभ भाव भी बना रहे और निर्विघ्न आत्म विकास का मार्ग सरल बने । ऐसी क्रिया विकसित कर सके कि क्रिया का फल सिर्फ शुभ ही हो नुकशान कदापि न हो। आयुर्वेद और एलोपेथी उपचार हम देख रहे हैं एक तरफ निर्दोष और कुदरती नियम के अधीन उपचार पद्धति है, तो दूसरी और हिंसक एलोपेथी इलाज जो अनेक मूल जीवों पर क्रूर अत्याचार जो कि कुदरत और धैर्य के बिलकुल विरुद्ध मत के आधार पर चल रहा है, फिर भी रोग घटने के बजाय विकुलस्वरूप धारण कर लेते हैं। परमात्मा का 1008 पुष्प मंत्र जाप सहित अर्पण ‘परमात्मा की भक्तिस्वरूप स्तोत्र-स्तुति श्रद्धा समर्पण है।' 'परमात्मा का ममंत्र जाप पुरुषार्थ है।' आध्यात्मिक और भौतिक विकास राजमार्ग है। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अरिहंत प्रभूजी के 1008 नाम 34. inim two nooo 40 45 nuomos ñ ñ ñ ñg ॐ अहँते नमः ॐ अहँ स्वामिने नमः ॐ अहँ क्षान्तिराजिताय नमः ॐ अहँ क्षमाधाराय नमः ॐ अहँ अचलस्थितये नमः ॐ अहँ भयत्रात्रे नमः ॐ अहँ जिनोत्तराय नमः ॐ अहँ निश्चलाय नमः ॐ अहँ देवेन्द्राय नमः ॐ अहँ धैर्यध्वंसित हेमाद्रये नमः ॐ अहँ नरोत्तमाय नमः ॐ अहँ धर्मधौरेयाय नमः ॐ अहँ धर्मनायकाय नमः ॐ अहँ मनोज्ञानाय नमः ॐ अहँ धर्मादेशकाय नमः ॐ अहँ अरिष्टतातये नमः 17. ॐ अहँ धर्मतीर्थकृते नमः ॐ अहँ क्षमासद्मने नमः 19. ॐ अहँ ईश्वराय नमः । ॐ अहँ नराधीशाय नमः 21. ॐ अहँ धर्मरक्षकाय नमः ॐ अहँ धर्मसेनान्यै नमः ॐ अहँ क्षमाधराय नमः 24. • ॐ अहँ क्षान्तिमते नमः ॐ अहँ अरिंजयाय नमः ॐ अहँ शुभंयवे नमः ॐ अहँ लाभकर्त्रे नमः ॐ अहँ छद्मापेताय नमः ॐ अहँ लक्ष्मणाय नमः 30. ॐ अहँ अजन्मने नमः 31. ॐ अहँ देवसेविताय नमः 32. ॐ अहँ गतलोभाय नमः ॐ अहँ धार्मिकाय नमः ॐ अहँ धृतिमते नमः ॐ अहँ धर्मनाथाय नमः ॐ अहँ धर्मिष्ठाय नमः ॐ अहँ धर्मराजाय नमः ॐ अहँ धर्मज्ञाय नमः ॐ अहँ धर्मघोषाय नमः ॐ अहँ धर्मसारथये नमः ॐ अहँ धर्माध्यक्षाय नमः ॐ अहँ धर्मात्मने नमः ॐ अहँ धर्मवते नमः ॐ अहँ अचिन्तयाय नमः ॐ अहँ नागलंछनाय नमः ॐ अहँ शतानंदाय नमः 47. ॐ अहँ अधोक्षजाय नमः ॐ अहँ विश्वंभराये नमः 49. ॐ अहँ सर्पशाय नमः ॐ अर्ह विष्टरश्रवसे नमः ॐ अहँ चतुर्वक्त्रे नमः ॐ अहँ पुरूषोत्तमाय नमः ॐ अहँ चतुरास्याय नमः ॐ अहँ स्वभुवे नमः ॐ अहँ सात्तिवकाय नमः 56. ॐ अहँ त्रिक्रमाय वेधसे नमः 57. ॐ अहँ लक्ष्मीवते नमः 58. ॐ अहँ अष्ट्रे नमः । 59. ॐ अहँ प्रजापतये नमः 60. ॐ अहँ ध्रुवसूरये नमः 51. 52. 53. 54. 55. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 97. 99. 61. ॐ अहँ कारूण्याय नमः 62. ॐ अहँ दोषज्ञाय नमः ॐ अहँ अभिज्ञाय नमः ॐ अहँ मित्रवत्सलाय नमः ॐ अहँ निपुणाय नमः ॐ अहँ विदग्धाय नमः ॐ अहँ प्रजानंदाय नमः ॐ अहँ शतधृतये नमः 69. ॐ अहँ श्रीवत्साय नमः ॐ अहँ हरये नमः ॐ अहँ हरस्वामिने नमः ॐ अहँ विष्टराय नमः ॐ अहँ सुरज्येष्ठाय नमः ॐ अहँ गोविंदाय नमः 75. ॐ अहँ नीलकंठाय नमः ॐ अहँ चतुर्युजाय नमः ॐ अहँ कवये नमः ॐ अहँ कमनाय नमः ॐ अर्ह आल्हादकारकाय नमः ॐ अहँ श्रीधराय नमः ॐ अहँ लब्धवर्णाय नमः ॐ अहँ रविज्ञेयाय नमः ॐ अहँ ध्रुवाय नमः 84. ॐ अहँ अमितशासनाय नमः 85. ॐ अहँ कुशलाय नमः ॐ अहँ सृकृत्याय नमः . 87. ॐ अहँ प्रवीणाय नमः ॐ अहँ बुद्धाय नमः ॐ अहँ प्रतिभान्विताय नमः ॐ अहँ प्रजानंदकराय नमः 91. ॐ अहँ धीरधीये नमः 92. ॐ अहँ धर्म पालाय नमः 93. ॐ अहँ धर्मिणे नमः। ॐ अहँ बहुश्रुताय नमः ॐ अहँ धर्मार्थिन नमः ॐ अहँ जिनाय नमः ॐ अहँ सनातनाय नमः 98. ॐ अहँ अनल्पकान्तये नमः ॐ अहँ श्रीमते नमः । 100. ॐ अर्हं नाथाय नमः 101. ॐ अहँ अबन्धनाय नमः 102. ॐ अहँ अचिन्त्यात्मने नमः 103. ॐ अहँ वीराय नमः 104. ॐ अहँ भवोज्झिताय नमः 105. ॐ अहँ शंकराय नमः 106. ॐ अहँ जननेत्रे नमः 107. ॐ अहँ नराग्रगाय नमः 108. ॐ अहँ स्वप्नाय नमः 109. ॐ अहँ नारार्चिताय नमः 110. ॐ अहँ विश्वविदे नमः 111. ॐ अहँ जिनाधिपाय नमः 112. ॐ अहँ जगत्पालाय नमः 113. ॐ अहँ वीर्यवते नमः 114. ॐ अहँ अजाय नमः 115. ॐ अहँ प्रकाशात्मने नमः 116. ॐ अहँ धर्मप्ररूपकाय नमः 117. ॐ अहँ सहस्त्रबुद्धये नमः 118. ॐ अहँ धर्मविदे नमः 119. ॐ अहँ देवाय नमः 120. ॐ अर्ह असंगाय नमः 121. ॐ अहँ मनोहराय नमः 122. ॐ अहँ पापहराय नमः Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 123. ॐ अर्हं ईश्वराय नमः 124. ॐ अर्हं अरजसे नमः 125. ॐ अर्हं अनद्याय नमः 126. ॐ अर्हं अपुनर्भवाय नमः 127. ॐ अर्हं स्वयंभुवे नमः 128. ॐ अर्हं भूष्णवे नमः 129. ॐ अर्हं वृषभाय नमः 130. ॐ अर्हं सौख्यदाय नमः 131. ॐ अर्हं अनन्तज्ञानिने नमः 132. ॐ अर्हं आत्माज्ञाय नमः 133. ॐ अर्हं अनन्तदर्शिने नमः 134. ॐ अर्हं विश्वव्यापिने नमः 135. ॐ अर्हं विक्रमिणे नमः 136. ॐ अर्हं श्रीपराय नमः 137. ॐ अर्हं श्रांताय नमः 138. ॐ अर्हं वैज्ञानिकाय नमः 139. ॐ अर्हं धर्मचक्रिणे नमः 140. ॐ अर्हं हृदयालवे नमः 141. ॐ अर्हं वचोयुक्तये नमः 142. ॐ अर्हं वागीशाय नमः 143. ॐ अर्हं वेदित्रे नमः 144. ॐ अर्हं परमपूज्याय नमः 145. ॐ अर्हं प्रदेशकाय नमः 146. ॐ अर्हं परादित्याय नमः 147. ॐ अर्हं प्रशमाकराय नमः 148 ॐ अर्हं यथाकामिने नमः 149. ॐ अर्हं निरवग्रहाय नमः 150. ॐ अर्हं स्फार श्रृंगाराय नमः 151. ॐ अर्हं स्फारभूषणाय नमः 152. ॐ अर्हं सदातृप्ताय नमः 153. ॐ अर्हं प्रियंवदाय नमः 75 154. ॐ अर्हं सदावंद्याय नमः 155. ॐ अर्हं बोधिदायकाय नमः 156. ॐ अर्हं भाग्यसंयुक्ताय नमः 157. ॐ अर्हं भवांतकाय नमः 158. ॐ अर्हं भूतनाथाय नमः 159. ॐ अर्हं भवपारगाय नमः 160. ॐ अर्हं प्राज्ञाय नमः 161. ॐ अर्हं वैज्ञानिकपटवे नमः 162. ॐ अर्हं कृतीहृद्याय कृतये नमः 163. ॐ अर्हं वदावदाय नमः 164. ॐ अर्हं पटुक्त्रे नमः 165. ॐ अर्हं पूतशासनाय नमः 166. ॐ अर्हं परमायाय नमः 167. ॐ अर्हं परब्रह्मणे नमः 168. ॐ अर्हं प्रशमात्मने नमः 169. ॐ अर्हं प्रशांताय नमः 170. ॐ अर्हं धनीश्वराय नमः 171. ॐ अर्हं स्फारधिये नमः 172. ॐ अर्हं स्वतंत्राय नमः 173. ॐ अर्हं पद्मेशाय नमः 174. ॐ अर्हं स्फारनेत्राय नमः 175. ॐ अर्हं स्फारमूर्तये नमः 176. ॐ अर्हं आत्मदर्शिने नमः 177. ॐ अर्हं बलिष्ठाय नमः 178. ॐ अर्हं बुद्धात्मने नमः 179. ॐ अर्हं दूरच्छेत्ताय नमः 180. ॐ अर्हं धराधराय नमः 181. ॐ अर्हं मूर्त्तात्मने नमः 182. ॐ अर्हं महादेवाय नमः 183. ॐ अर्हं महासाधवे नमः 184. ॐ अर्हं मदोज्जिताय नमः Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 185. ॐ अहँ महाशक्तये नमः 186. ॐ अहँ महायतये नमः 187. ॐ अहँ महाराजाय नमः 188. ॐ अहँ महामतये नमः 189. ॐ अहँ महाभिक्षवे नमः 190. ॐ अहँ भाग्यभाजे नमः 191. ॐ अहँ महाधृत्यै नमः 192. ॐ अहँ महातेजसे नमः 193. ॐ अहँ महागुणाय नमः 194. ॐ अहँ महाजनाय नमः 195. ॐ अहँ महामहाय नमः 196. ॐ अहँ महाबुद्धाय नमः .197. ॐ अहँ महानंदाय नमः 198. ॐ अहँ महानाथाय नमः 199. ॐ अहँ महावीराय नमः 200. ॐ अहँ महानेत्रे नमः 201. ॐ अहँ महामुनये नमः 202. ॐ अहँ महेशाय नमः । 203. ॐ अहँ महाक्षमिते नमः 204. ॐ अहँ महोदर्काय नमः 205. ॐ अहँ महाप्राज्ञाय नमः 206. ॐ अर्ह महाकीर्तये नमः 207. ॐ अहँ महावीयार्य नमः 208. ॐ अहँ महाव्रतिने नमः 209. ॐ अहँ महामित्राय नमः 210. ॐ अहँ महेश्वराय नमः 211. ॐ अहँ मुनींद्राय नमः 212. ॐ अहँ शमिने नमः 213. ॐ अहँ महाकांत्यै नमः 214. ॐ अहँ महाप्रभुताय नमः 215. ॐ अहँ महालीलाय नमः 216. ॐ अहँ महापतये नमः 217. ॐ अहँ महाश्लोकाय नमः 218. ॐ अहँ महोदयाय नमः 219. ॐ अहँ महाधीराय नमः 220. ॐ अहँ महाबलाय नमः 221. ॐ अहँ महायशसे नमः 222. ॐ अहँ महास्वामिने नमः 223. ॐ अहँ अतिशयान्विताय नमः 224. ॐ अहँ महाभाग्याय नमः 225. ॐ अहँ महाशयाय नमः 226. ॐ अहँ महाचेतसे नमः 227. ॐ अहँ महाप्रभाय नमः 228. ॐ अहँ महाशूराय नमः 229. ॐ अहँ महाशास्त्रज्ञाय नमः 230. ॐ अहँ महाबोधये नमः 231. ॐ अहँ महावाक्याय नमः 232. ॐ अहँ महाद्युतये नमः 233. ॐ अहँ महाप्रीयते नमः 234. ॐ अहँ महासांपत्त्यै नमः 235. ॐ अहँ महापुण्याय नमः 236. ॐ अहँ महाक्रियाय नमः 237. ॐ अहँ महासिद्धयै नमः 238. ॐ अहँ महाश्रुत्यै नमः 239. ॐ अहँ महामूर्तय नमः 240. ॐ अहँ महासुंदराय नमः 241. ॐ अहँ महाशीलाय नमः 242. ॐ अहँ महामोहिताय नमः 243. ॐ अहँ महाज्ञानिने नमः 244. ॐ अहँ मोहद्यमाय नमः 245. ॐ अहँ महासौख्याय नमः 246. ॐ अहँ महापायाय नमः Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 247. ॐ अहँ महातोषाय नमः 248. ॐ अहँ महेंद्राय नमः 249. ॐ अहँ महासुहृदाय नमः 250. ॐ अहँ महेशिताय नमः 251. ॐ अहँ महासत्वाय नमः 252. ॐ अहँ महद्धिकाय नमः 253. ॐ अहँ महाधीशाय नमः 254. ॐ अहँ महाज्योतये नमः 255. ॐ अहँ महाबंधवे नमः 256. ॐ अहँ महात्मने नमः 257. ॐ अहँ महालब्ध्यै नमः 258. ॐ अहँ महामिश्राय नमः 259. ॐ अहँ महालक्ष्म्यै नमः 260. ॐ अहँ महाज्योतने नमः 261. ॐ अहँ महामनाय नमः 262. ॐ अहँ महेभ्याय नमः 263. ॐ अहँ महावशीताय नमः 264. ॐ अहँ महाविद्याय नमः 265. ॐ अहँ महाविभवे नमः 266. ॐ अहँ महाध्यानिने नमः 267. ॐ अहँ महोत्सवाय नमः 268. ॐ अहँ महाध्येयाय नमः 269. ॐ अहँ महोत्तमाय नमः 270. ॐ अहँ महाधैर्याय नमः 271. ॐ अहँ महिमालयाय नमः 272. ॐ अहँ महासंख्याय नमः 273. ॐ अहँ मनोवशशक्तये नमः 274. ॐ अहँ जिनतारकाय नमः 275. ॐ अहँ अधेष्याय नमः 276. ॐ अहँ जगत्त्रयविशेषकाय नमः 275. ॐ अहँ नाररक्षाकर्त्रे नमः 276. ॐ अहँ वरज्यायसे नमः 277. ॐ अहँ जाड्यभेत्रे नमः 278. ॐ अहँ जंतुसौख्यकराय नमः 279. ॐ अहँ जंतुसेव्याय नमः 280. ॐ अहँ ज्वलत्तेजसे नमः 281. ॐ अहँ जितसर्वेस्मै नमः 282. ॐ अहँ तीर्थराजसे नमः 283. ॐ अहँ नरपूज्याय नमः 284. ॐ अहँ जाड्यानलाय नमः 285. ॐ अहँ देवदेवाय नमः 286. ॐ अहँ स्थिरस्थाय नमः 287. ॐ अहँ स्थिरस्थेयाय नमः 288. ॐ अहँ स्थावराय नमः 289. ॐ अहँ दानिने नमः 290. ॐ अहँ दयानिधये नमः 291. ॐ अहँ कृपाधामाय नमः 292. ॐ अहँ दनितत्पराय नमः 293. ॐ अहँ जनताधाराय नमः 294. ॐ अहँ जिनेंद्राय नमः 295. ॐ अहँ अलंकरष्णिवे नमः 296. ॐ अहँ जगत्रायिणे नमः 297. ॐ अहँ नररक्षाकराय नमः 298. ॐ अहें जगच्चूडामणये नमः 299. ॐ अहँ गतयथाजाताय नमः 300. ॐ अर्ह वृषालाय नमः 301. ॐअहँ जन्मजरामरणवर्जिताय नमः 302. ॐ अहँ जगत्ख्याताय नमः 303. ॐ अहँ अकलकलाय नमः 304. ॐ अहँ जनाधाराय नमः 305. ॐ अहँ तीर्थदेशकाय नमः 306. ॐ अहँ नरमान्याय नमः Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 307. ॐ अहँ धनाधनाय नमः 308. ॐ अहँ स्थिराय नमः 309. ॐ अहँ स्थिरस्थेष्टाय नमः 310. ॐ अहँ दयापराय नमः 311. ॐ अहँ दानवते नमः 312. ॐ अहँ दाययुक्ताय नमः 313. ॐ अहँ दमितारये नमः 314. ॐ अहँ दयालवे नमः । 315. ॐ अहँ स्थविष्टाय नमः 316. ॐ अहँ स्थवीयवते नमः । 317. ॐ अहँ देववल्लभाय नमः 318. ॐ अहँ सूक्ष्मविचारज्ञाय नमः 319. ॐ अहँ दयांचिताय नमः 320. ॐ अहँ दयामयाय नमः 321. ॐ अहँ देवसत्तमाय नमः 322. ॐ अहँ दानप्रदाय नमः 323. ॐ अहँ दुभिध्वनिनिरुत्तमाय नमः 324. ॐ अहँ दिव्यभाषासाधवे नमः 325. ॐ अहँ देवमतल्लिकाय नमः 326. ॐ अहँ देव सेव्याय नमः 327. ॐ अहँ दक्षाय नमः 328. ॐ अहँ दयाकराय नमः 329. ॐ अहँ दानाल्पितसुरद्रुमाय नमः 330. ॐ अहँ दयागर्भाय नमः 331. ॐ अहँ दलितोत्कटपातकाय नमः 332. ॐ अहँ दृढाचारिणे नमः 334. ॐ अहँ दमितेंद्रियाय नमः 335. ॐ अहँ दृढधैर्याय नमः 336. ॐ अहँ दृढसंयमिने नमः 337. ॐ अहँ दयाश्रेष्ठाय नमः 338. ॐ अहँ शरण्याय नमः 339. ॐ अहँ स्थेयानाय नमः 340. ॐ अर्ह दुःखहर्त्रे नमः 341. ॐ अहँ दयाचंचवे नमः 342. ॐ अहँ देवार्याय नमः 343. ॐ अहँ दीप्ताय नमः 344. ॐ अहँ नित्याय नमः 345. ॐ अहँ दिव्यभाषापतये नमः 346. ॐ अहँ दमिने नमः । 347. ॐ अहँ दांतात्मने नमः 348. ॐ अर्हं दिव्यमूर्तये नमः 349. ॐ अहँ दयाध्वजाय नमः 350. ॐ अहँ धीमते नमः 351. ॐ अहँ दुःखहारिणे नमः 352. ॐ अहँ दलितपापाय नमः 353. ॐ अहँ दृढधर्माय नमः 354. ॐ अहँ दृढव्रताय नमः 355. ॐ अहँ दृढशिलाय नमः 356. ॐ अहँ दृढ़ यानवते नमः 357. ॐ अहँ दृढक्रियाकराय नमः 358. ॐ अहँ दाक्षिण्याय नमः 359. ॐ अहँ देवप्रष्ठाय नमः 360. ॐ अहँ व्यतीताशेषबंधनाय नमः 361. ॐ अहँ दानशौण्डीराय नमः 362. ॐ अहँ खगसेविताय नमः 363. ॐ अहँ महोत्साहाय नमः 364. ॐ अहँ चिपमनोवृत्तये नमः 365. ॐ अहँ स्वयंबुद्धाय नमः 366. ॐ अहँ दमांचिताय नमः 367. ॐ अहँ कलादक्षाय नमः 368. ॐ अहँ महासूक्ष्माय नमः 369. ॐ अहँ भव्यलक्षणाय नमः Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 370. ॐ अहँ जनाधीशाय नमः 371. ॐ अहँ कृपालवे नमः 372. ॐ अहँ नीलाभाय नमः 373. ॐ अहँ क्षमयाय नमः 374. ॐ अहँ अप्रतिमायै नमः 375. ॐ अहँ छत्रत्रयविभूषिताय नमः 376. ॐ अहँ श्रीसत्कायाय नमः 377. ॐ अहँ चार्वाख्याय नमः 378. ॐ अहँ शांतिकराय नमः 379. ॐ अहँ भव्यमानवाय नमः 380. ॐ अहँ मुक्तिजानये नमः 381. ॐ अहँ कल्याणशताय नमः 382. ॐ अहँ पुंडरिकाक्षय नमः 383. ॐ अहँ लोकसिंहाय नमः 384. ॐ अहँ अयाचिताय नमः 385. ॐ अहँ चिद्रूपाय नमः 386. ॐ अहँ भद्रयुक्ताय नमः 387. ॐ अहँ अनल्पबुद्धये नमः 388. ॐ अहँ चारूमूर्तये नमः 389. ॐ अहँ कल्पवृक्षाय नमः 390. ॐ अहँ मायोच्छेदिने नमः 391. ॐ अहँ लोभहरे नमः 392. ॐ अर्ह लोकोत्तमाय नमः 393. ॐ अहँ लोकध्याताय नमः 394. ॐ अहँ सूक्ष्मदक्षेद्राय नमः 395. ॐ अहँ लोकचूडामणये नमः 396: ॐ अहँ शिष्टेष्टाय नमः 397. ॐ अहँ शांतिदाय नमः 398. ॐ अहँ चामीकरासनारूढाय नमः 399. ॐ अहँ श्रीकल्याणशासनाय नमः 400. ॐ अहँ अत्रभवान्वीराय नमः 401. ॐ अहँ प्रजाहिताय नमः 402. ॐ अहँ भव्यमानवकोटीराय नमः 403. ॐ अहँ श्रियांनिधये नमः 404. ॐ अहँ भव्याय नमः 405. ॐ अहँ बभ्रवे नमः 406. ॐ अहँ लोकनाथाय नमः 407. ॐ अहँ श्रियांनिधये नमः 408. ॐ अहँ सदोदयात नमः 409. ॐ अहँ शास्त्रविदे नमः 410. ॐ अहँ शान्ताय नमः 411. ॐ अहँ जितेन्द्रियाय नमः 412. ॐ अहं गतातंकाय नमः 413. ॐ अहँ सदाक्षराय नमः 414. ॐ अहँ अभीष्टदाय नमः 415. ॐ अहँ अनन्तजिते नमः 416. ॐ अहँ विमुक्ताय नमः 417. ॐ अहँ अमूर्ताय नमः 418. ॐ अहँ विद्यापराय नमः 419. ॐ अहँ शास्त्रे नमः 420. ॐ अहँ कमाय नमः 421. ॐ अहँ गतकल्मषाय नमः 422. ॐ अहँ शाश्वताय नमः 423. ॐ अहँ त्रिकालज्ञाय नमः 424. ॐ अहँ त्रैलोक्यपूजिताय नमः 425. ॐ अहँ व्यक्तवाक्याय नमः 426. ॐ अर्ह सर्वज्ञाय नमः 427. ॐ अहँ सिद्धाय नमः 428. ॐ अहँ प्रकाशकत्रे नमः 429. ॐ अहँ सर्वदेवेशाय नमः 430. ॐ अर्ह अमेयद्धये नमः 431. ॐ अहँ शांतिदाय नमः 432. ॐ अहँ शंभवे नमः 433. ॐ अहँ दान्ताय नमः 434. ॐ अर्ह वर्धमानाय नमः ___435. ॐ अहँ विध्नविध्वंसिने नमः Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 436. ॐ अहँ अलक्ष्याय नमः 437. ॐ अहँ अकापाय नमः 438. ॐ अहँ वदतांवराय नमः 439. ॐ अहँ विशदाय नमः 440. ॐ अहँ विज्ञाय नमः 441. ॐ अहँ अक्षयाय नमः 442. ॐ अहँ सेचनकाय नमः 443. ॐ अहँ तत्वज्ञाय नमः 444. ॐ अहँ शान्तात्मने नमः 445. ॐ अहँ नित्याय नमः 446. ॐ अहँ त्रिलोकविदे नमः 447. ॐ अहँ व्यक्ताय नमः 448. ॐ अहँ विदांवराय नमः 449. ॐ अहँ सत्यवाचे नमः 450. ॐ अहँ सत्यवाचे नमः 451. ॐ अहँ सोममूर्तये नमः 452. ॐ अहँ सिद्धात्मने नमः 453. ॐ अहँ अजय्याय नमः 454. ॐ अहँ अस्मराय नमः 455. ॐ अहँ विश्ववन्धवे नमः 456. ॐ अहँ विश्वाधारिणे नमः 457. ॐ अहँ विश्वेशाय नमः 456. ॐ अहँ विदुषे नमः 457. ॐ अहँ प्रभवे नमः 458. ॐ अर्ह वीतरागाय नमः 459. ॐ अहँ रंजनाय नमः 460. ॐ अहँ विश्वाधारिणे नमः 461. ॐ अहँ विश्वेशाय नमः 462. ॐ अहँ विदुषे नमः 463. ॐ अहँ प्रभवे नमः 464. ॐ अर्ह वीतरागाय नमः 465. ॐ अहँ रंजनाय नमः 466. ॐ अर्ह विश्वाभृताय नमः 467. ॐ अहँ विकाशाय नमः 468. ॐ अर्ह विश्वत्राताय नमः 469. ॐ अहँ बैरंगिकाय नमः 470. ॐ अहँ प्रतीक्षाय नमः 471. ॐ अहँ धीराय नमः 472. ॐ अर्ह वीतमत्सराय नमः 473. ॐ अहँ जनश्रेष्ठाय नमः 474. ॐ अहँ शिवंकराय नमः 475. ॐ अहँ सदाभाविने नमः 476. ॐ अहँ विशदाशयाय नमः 477. ॐ अहँ विश्वविख्याताय नमः 478. ॐ अहँ विशारदाय नमः 479. ॐ अहँ विश्वविख्याताय नमः 480. ॐ अहँ विशारदाय नमः 481. ॐ अहँ कामाय नमः । 482. ॐ अहँ विश्वैकवत्सलाय नमः 483. ॐ अहँ जनताबन्धवे नमः 484. ॐ अहँ अमेयात्मने नमः 485. __ ॐ अहँ जगत्पतये नमः 486. ॐ अहँ विश्वपाय नमः 487. ॐ अहँ विश्वनाथाय नमः 488. ॐ अर्ह विभवे नमः। 489. ॐ अहँ प्रशान्तारये नमः 490. ॐ अहँ विश्वनायकाय नमः 491. ॐ अहँ निःसम्पन्नाय नमः 492. ॐ अहँ विश्वसिश्रुताय नमः 493. ॐ अहँ विवुधसेव्याय नमः 494. ॐ अहँ विरागवते नमः 495. ॐ अहँ विमलाय नमः 496. ॐ अहँ विश्वेशाय नमः 497. ॐ अहँ विकस्वराय नमः Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 498. ॐ अहँ कष्टहरॆ नमः 499. ॐ अहँ विश्वदर्शिने नमः 500. ॐ अहँ विश्वगाय नमः 501. ॐ अहँ विशिष्ठाय नमः 502. ॐ अहँ विधिवेत्रे नमः 503. ॐ अहँ विपक्षवर्जिताय नमः 504. ॐ अहँ विश्वेजे नमः 505. ॐ अहँ विजयिने नमः 506. ॐ अहँ विद्यादात्रे नमः 507. ॐ अहँ सज्जनोपासितक्रमाय नमः 508. ॐ अहँ प्रभूतात्मने नमः 509. ॐ अहँ स्तुतीश्वराय नमः 510. ॐ अहँ योगिनीशाय नमः 511. ॐ अहँ सदाध्येयाय नमः 512. ॐ अहँ सदामिश्राय नमः 513. ॐ अहँ सदासौध्याय नमः 514. ॐ अहँ ज्ञानगर्भाय नमः 515. ॐ अहँ ज्ञानयुक्ताय नमः 516. ॐ अहँ गतप्रेष्याय नमः 517. ॐ अहँ गुणसागराय नमः 518. ॐ अहँ ज्ञानविख्याताय नमः ॐ अहँ गूढगोचराय नमः ॐ अहँ अमायिने नमः ॐ अहँ ज्ञाननायकाय नमः ॐ अहँ हरोगोप्ताय नमः ॐ अहँ ज्ञानशोभिताय नमः 524. ॐ अहँ गुणस्थानाय नमः 526. ॐ अर्हं गतातुराय नमः ॐ अहँ गतशंकाय नमः 528. ॐ अहँ गुणमंदिराय नमः 529. ॐ अहँ ध्वस्तरोगाय नमः 530. ॐअहँ ज्ञानत्रितयसाधकाय नमः 531. ॐ अहँ अव्याबाधाय नमः 532. ॐ अहँ पारगामिने नमः 533. ॐ अहँ ईश्वराय नमः 534. ॐ अहँ सदामोदाय नमः 535. ॐ अहँ अभिवादकाय नमः 536. ॐ अहँ सदाहर्षाय नमः 537. ॐ अहँ सदाशिवाय नमः 538. ॐ अहँ गणश्रेष्ठाय नमः 539. ॐ अहँ ज्ञानचंचवे नमः 540. ॐ अहँ गुणवते नमः 541. ॐ अहँ ज्ञानदायिने नमः 542. ॐ अहँ ज्ञानभाग्याय नमः 543. ॐ अहँ ज्ञानसिद्धाय नमः 544. ॐ अहँ ज्ञानमित्राय नमः 545. ॐ अहँ ज्ञानभूयसे नमः 546. ॐ अहँ गूढात्मने नमः 547. ॐ अहँ ज्ञानतत्त्वाय नमः 548. ॐ अहँ गतशत्रवे नमः 549. ॐ अहँ ज्ञानोत्तमाय नमः 550. ॐ अहँ गंभीराय नमः 551. ॐ अहँ ज्ञातज्ञेयाय नमः 552. ॐ अहँ ज्ञानत्रितायाय नमः 553. ॐ अहँ ज्ञानाब्धये नमः 554. ॐ अहँ लोकबर्हिष्टाय नमः 555. ॐ अहँ लोकवंदिताय नमः 556. ॐ अहँ नरस्वामिने नमः 557. ॐ अहँ लोकदेशकाय नमः 558. ॐ अहँ प्रणवाय नमः 559. ॐ अहँ इशितोत्तमाय नमः 560. ॐ अहँ काम्याय नमः 561. ॐ अहँ अछद्मस्थाय नमः 562. ॐ अहँ स्तुत्यार्हाय नमः 563. ॐ अहँ अदृभ्रतेजसे नमः 564. ॐ अहँ उत्तमाख्याय नमः 519. 520 521. 522. 522 527.. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 603. ॐ अह 565. ॐ अहँ मंत्रज्ञाय नमः 566. ॐ अहँ लोलुपध्नाय नमः 567. ॐ अहँ सुव्रताय नमः 568. ॐअहँ अश्वसेनकुलाधाराय नमः 569. ॐ अहँ नीलवर्णविराजिताय नमः 570. ॐ अहँ मुनिश्रेष्ठाय नमः 571. ॐ अर्ह कामदाय नमः 572. ॐ अहँ कल्याणात्मने नमः 573. ॐ अहँ कलिंदाय नमः 574. ॐ अहँ कर्मकाष्टाग्नये नमः 575. ॐ अहँ चक्षुस्याय नमः 576. ॐ अहँ कर्ममुक्ताय नमः 577. ॐ अहँ सत्यशील नमः 578. ॐ अहँ ऋद्धिकत्रे नमः 579. ॐ अहँ ऋद्धिमते नमः 580. ॐ अहँ प्रमाणाय नमः 581. ॐ अहँ इभ्याय नमः 582. ॐ अहँ संवराय नमः 583. ॐ अहँ उत्तरवैराग्याय नमः 584. ॐ अहँ अस्तभवाटनाय नमः । 585. ॐ अहँ उत्तमासेव्याय नमः 586. ॐ अहँ अधीश्वराय नमः 587. ॐ अहँ सुगुप्तामने नमः 588. ॐ अहँ परिवृढाय नमः 589. ॐ अहँ निरस्तैन्याय नमः 590. ॐ अर्ह जनपालकाय नमः 591. ॐ अहँ नीलवर्णाय नमः 592. ॐ अहँ कल्याणभाग्याय नमः 593. ॐ अहँ चतुर्धामर्त्यसेविताय नमः 594. ॐ अहँ कर्मशत्रुध्नाय नमः 595. ॐ अहँ कलाधराय नमः 596. ॐ अहँ केवलिने नमः 597. ॐ अहँ करूणान्विताय नमः 598. ॐ अहँ चतुराय नमः 599. ॐ अहँ कल्याणमंदिराय नमः 600. ॐ अहँ क्रियादक्षाय नमः 601. ॐ अहँ क्रियावते नमः 602. ॐ अहँ क्रियापात्राय नमः ॐ अहँ कीर्तिदाय नमः 604. ॐ अहँ चन्द्रप्रभाय नमः 605. ॐ अहँ चंद्रोपासितपत्कजाय नमः 606. ॐ अहँ कृपागेहाय नमः 607. ॐ अर्ह कारणंभद्रसाधवै नमः 608. ॐ अहँ क्षेमपूर्णाय नमः 609. ॐ अहँ कृतकृत्याय नमः 610. ॐ अहँ कृतज्ञकमलादात्रे नमः 611. ॐ अहँ भद्रमूर्तये नमः 612. ॐ अहँ कामकुंभाय नमः 613. ॐ अहँ कामहासापनीताय नमः 614. ॐ अहँ कमलाकराय नमः 615. ॐ अहँ चिंतामणये नमः 616. ॐ अहँ चिदानंदमयाय नमः . 617. ॐ अहँ लोभलंद्यकाय नमः 618. ॐ अर्ह वंधमोक्षज्ञाय नमः 619. ॐ अहँ कान्तिकारकाय नम 620. ___ॐ अहँ नरत्रात्रे नमः 621. ॐ अहँ कृतातविदे नमः 622. ॐ अहँ विरोधध्नाय नमः 623. ॐ अहँ क्रियानिष्ठाय नमः 624.. ॐ अहँ कमितप्रदाय नमः 625. ॐ अहँ क्रियाचंचवे नमः 626. ॐ अहँ कपटोज्जिताय नमः 627. ॐ अहँ छलोच्छेदकाय नमः 628. ॐ अहँ क्रियापराय नमः 629. ॐ अहँ कृपालुध्वस्तदुर्गतये नमः 630. ॐ अहँकलाक्तिकुमतात्कृताय नमः Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 631. ॐ अहँ कृतांतज्ञाय नमः 632. ॐ अहँ कृपावते नमः 633. ॐ अहँ कृतांतार्थप्ररूपकाय नमः 634. ॐ अहँ कृपासिंधवे नमः 635. ॐ अहँ कृत क्रियायै नमः 636. ॐ अहँ सिद्धार्थाय नमः 637. ॐ अहँ धर्ममूर्तिश्चिदानंदाय नमः 638. ॐ अहँ चिरंतनाय नमः 639. ॐ अहँ चिंतावर्जिताय नमः 640. ॐ अहँ कर्महाय नमः 641. ॐ अहँ कजनेत्राय नमः 642. ॐ अहँ कृतपुण्याय नमः 643. ॐ अहँ लोकाग्रणये नमः 644. ॐ अहँ कीर्तिमते नमः 645. ॐ अहँ लोकाग्रगताय नमः 546. ॐ अहँ लोकानंदप्रदाय नमः 547. ॐ अहँ लोकश्रमणाय नमः 548. ॐ अहँ लोकैश्वर्याय नमः 49. ॐ अहँ लोकभद्राय नमः 550. ॐ अहँ लोकपूजिताय नमः 551. ॐ अहँ उत्तममध्यानाय नमः 552. ॐ अहँ लोकसेविताय नमः । 553. ॐ अहँ लोकविध्याताय नमः 554. ॐ अहँ मृत्युंजयाय नमः 655. ॐ अहँ लोकबंधवे नमः 656. ॐ अहँ लोकचक्षुषे नमः 557. ॐ अहँ लोकपृष्ठाय नमः 658. ॐ अहँ लोकभिल्लोकाय नमः 659. ॐ अहँ नामदेवाय नमः 660. ॐ अहँ लोकभत्रै नमः 661. ॐ अहँ लोकस्वामिने नमः 662. ॐ अहँ लोकपोषाय नमः 663. ॐ अहँ लोकदर्शिणे नमः 664. ॐ अहँ लोकवंद्याय नमः 665. ॐ अहँ लोकशास्त्रे नमः 666. ॐ अहँ लोकवभिावकाय नमः 667. ॐ अहँ लोकरक्षकाय नमः 668. ॐ अहँ स्थाष्णवे नमः 669. ॐ अहँ लोकपालकाय नमः 670. ॐ अहँ जैश्वर्य शोभिताय नमः 671. ॐ अहँ श्रीकंठाय नमः 672. ॐ अहँ अमृतात्मने नमः 673. ॐ अहँ ईशानाय नमः 674. ॐ अहँ जैश्वर्यकारकाय नमः 675. ॐ अहँ लोकधारकाय नमः 676. ॐ अहँ नरध्येयाय नमः 677. ॐ अहँ नरेशित्रे नमः . 678. ॐ अहँ नराधराय नमः 679. ॐ अहँ नरेश्वराय नमः 680. ॐ अहँ नरख्याताय नमः 681. ॐ अहँ लोकवत्सलाय नमः 682. ॐ अहँ नरज्यायसे नमः 683. ॐ अहँ मितंपचाय नमः 684. ॐ अर्हं गतालोकाय नमः 685. ॐ अहँ लोकभास्कराय नमः 686. ॐ अहँ नरज्येष्ठाय नमः 687. ॐ अहँ नरोत्तमाय नमः 688. ॐ अहँ नरव्याधिहंत्रे नमः 689. ॐ अहँ सुभेद्याय नमः 690. ॐ अहँ गतग्लानाय नमः 691. ॐ अहँ दरोजिगताय नमः 692. ॐ अहँ वंद्याय नमः 693. ॐ अहँ गीर्वाण सेविताय नमः 694. ॐ अहँ गतसंसाराय नमः 695. ॐ अहँ पुरस्सराय नमः 696. ॐ अहँ विनिर्मुक्ताय नमः Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 697. ॐ अहँ घनध्वनये नमः 730. ॐ अहँ लोकवल्लभाय नमः 698. ॐ अहँ धनज्ञानाय नमः 731. ॐ अहँ लोकमन्दिराय नमः 699. ॐ अहँ धनरोगहंत्रे नमः 732. ॐ अहँ लोककुंजराय नमः 700. ॐ अहँ गतार्तये नमः 733. ॐ अहँ लोकशौंडीराय नमः 701. ॐ अहँ समन्विताय नमः 734. ॐ अहँ लोकसंस्तुताय नमः 702. ॐ अहँ धनश्रेयसे नमः 735. ॐ अहँ लोकधौरेयाय नमः 703. ॐ अहँ जैश्वर्यमंडिताय नमः 736. ॐ अहँ महाकायाय नमः 704. ॐ अहँ मुमुक्षुकाय नमः ____737. ॐ अहँ महायोगात्मने नमः 705. ॐ अहँ लोकेशाय नमः 738. ॐ अहँ महायोगिने नमः 706. ॐ अहँ लोकार्काय नमः __739. ॐ अहँ महायमिने नमः 707. ॐ अहँ लोकसार्वाय नमः 740. ॐ अहँ हर्षदाय नमः 708. ॐ अहँ लोकज्ञाय नमः 741. ॐ अहँ तृष्टाय नमः 709. ॐ अर्ह लोकेन्द्राय नमः '742. ॐ अहँ सुमत्यै नमः 710. ॐ अहँ लोकााय नमः 743. ॐ अहँ सहिष्णवे नमः 711. ॐ अहँ लोकविल्लोकाय नमः 744. ॐ अहँ पुष्टाय नमः 712. ॐ अहँ लोकानालोकाय नमः 745. ॐ अहँ सदाभवाय नमः 713. ॐ अहं गतमोहाय नमः 746. ॐ अहं शिष्टाय नमः 714. ॐ अहँ गीर्वाणपूजिताय नमः 747. ॐ अहँ शारदाय नमः 715. ॐ अहँ नंद्याय नमः 748. ॐ अहँ हतकर्मणे नमः 716. ॐ अहँ खेदज्ञाय नमः 749. ॐ अहँ हतार्तये नमः 717. ॐ अहँ गीर्वाणेशाय नमः 750. ॐ अहं पुण्यवते नमः 718. ॐ अहँ घातिकर्मनाशकाय नमः 751. ॐ अहँ प्रतिभुवे नमः 719. ॐ अहँ खेदहरॆ नमः 752. ॐ अहँ यशस्विने नमः 720. ॐ अहँ धनयोगाय नमः 753. ॐ अहँ शुभ्राय नमः 721. ॐ अहँ धनदाय नमः . 754. ॐ अहँ हतदुर्भगाय नमः 722. ॐ अहँ उत्तमातमने नमः 755. ॐ अहँ प्रतात्मने नमः 723. ॐ अहँ धनमोदाय नमः 756. ॐ अहँ अंतीद्रियाय नमः 724. ॐ अहँ धनधर्माभ्यां नमः 757. ॐ अहँ अचिंत्यद्धय नमः ॐ अहँ शिरोमणये नमः 758. ॐ अहँ मोक्षदायकाय नमः 726. ॐ अहँ कृष्णाय नमः 759. ॐ अहँ महाधिभुदे नमः 727. ॐ अहँ लोकनायकाय नमः 760. ॐ अहँ महायोगविदे नमः 728. ॐ अहँ लोकालोकपुरंदराय नमः 761. ॐ अहँ महायोगपालाय नमः 729. ॐ अहँ लोकराजाय नमः 762. ॐ अहँ महायमांतकृताय नमः 725. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 763. ॐ अहँ पुण्यदाय नमः 764. ॐ अहँ संतोषिने नमः 765. ॐ अहँ सुमतिपतये नमः 766. ॐ अहँ पुष्टिदाय नमः। 767. ॐ अहँ सिद्धरूपाय नमः 768. ॐ अहँ सर्वकारूणिकाय नमः 769. ॐ अहँ लग्नकाय नमः 770. ॐ अहँ अकर्मकाय नमः 771. ॐ अहँ हतव्याधये नमः 772. ॐ अहँ हतदुर्गतये नमः 773. ॐ अहँ मित्रयुमेध्याय नमः 774. ॐ अहँ धर्ममंदिराय नमः 775. ॐ अहँ सुभगाय नमः 776. ॐ अहँ त्रिगुप्ताय नमः 777. ॐ अहँ हृषीकेशाय नमः 778. ॐ अहँ नतदृष्टये नमः 779. ॐ अहँ शिवतातये नमः 780. ॐ अहँ शिवतातये नमः 781. ॐ अहँ अलेपाय नमः 782. ॐ अहँ हतदुःखाय नमः 783. ॐ अहँ हतानंगाय नमः 784. ॐ अहँ कदंबकाय नमः 785. ॐ अहँ सुस्वराय नमः । 786. ॐ अहँ परार्ध्याय नमः 787. ॐ अहँ शंभुशीवाय नमः 788. ॐ अहँ क्षेमंकराय नमः 789. ॐ अहँ स्तवहनार्हाय नमः 790. ॐ अहँ तपस्विने नमः ॐ अर्ह अचलात्मने नमः 792. ॐ अहँ अखिलशांतये नमः 793. ॐ अहँ अरिमर्दनाय नमः 794. ॐ अहँ अपुनरावृत्तये नमः 795. ॐ अहँ अधभंजकाय नमः 796. ॐ अहँ प्रमेयात्मने नमः 797. ॐ अहँ अगम्याय नमः 798. ॐ अहँ अनाधाराय नमः 799. ॐ अहें प्रभासराय नमः 800. ॐ अहँ अर्चिताय नमः 801. ॐ अहँ रमाकराय नमः 802. ॐ अहँ अनीालवे नमः 803. ॐ अहँ विघ्नभिदे नमः 804. ॐ अहँ अनिध्नाय नमः 805. ॐ अहँ स्तुत्यै नमः 806. ॐ अहँ हतकुलेशाय नमः 807. ॐ अहँ संयमिने नमः 808. ॐ अहँ विष्टान नमः 809. ॐ अहँ हतदुर्गताय नमः 810. ॐ अहँ सुप्रसन्नाय नमः 811. ॐ अहँ घृणालयाय नमः 812. ॐ अहँ विरागार्हाय नमः 813. ॐ अहँ हर्षसंयुताय नमः 814. ॐ अहँ अर्हाखिलज्योतये नमः 815. ॐ अहँ अमानाय नमः 816. ॐ अहँ अरिध्नाय नमः 817. ॐ अहँ अरिहंत्रे नमः 818. ॐ अहँ अरोषणाय नमः 819. ॐ अहँ अध्यात्मने नमः 820. ॐ अहँ यतीश्वराय नमः 821. ॐ अहँ उपमोपेताय नमः 822. ॐ अहँ स्वयंप्रभवे नमः 823. ॐ अहँ अतिमानाप्ताय नमः ___824. ॐ अहँ रमाप्रदाय नमः । 825. ॐ अहँ अशोकाग्रगाय नमः 826. ॐ अहँ अविनश्वराय नमः 827. ॐ अहँ अकिंचनाय नमः 828. ॐ अहँ सज्जनाय नमः (85 791. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 829. ॐ अहँ क्षमायुक्ताय नमः 830. ॐ अहँ क्षमिणे नमः 831. ॐ अहँ पुरातनाय नमः 832. ॐ अहँ परत्रात्रे नमः 833. ॐ अहँ परमद्युतये नमः 834. ॐ अहँ परमानन्दाय नमः 835. ॐ अहँ परमेश्वराय नमः 836. ॐ अहँ अजेयाय नमः 837. ॐ अहँ अनीहाय नमः 838. ॐ अहँ अरहाय नमः 839. ॐ अहँ तीर्थेशाय नमः 840. ॐ अहँ तत्वमूर्तये नमः 841. ॐ अहँ तीर्थकर्त्रे नमः 842. ॐ अहँ वीतदंभाय नमः 843. ॐ अहँ तारकाय नमः 844. ॐ अहँ तीर्थेद्राय नमः 845. ॐ अहँ ज्ञानिने नमः 846. ॐ अहँ त्यक्तसंसृतये नमः 847. ॐ अहँ जितदवेषाय नमः 848. ॐ अहँ जगत्यिप्रयाय नमः 849. ॐ अहँ तीर्णसंसाराय नमः 850. ॐ अहँ वरदर्शनाय नमः 851. ॐ अहँ ज्ञान विदे नमः 852. ॐ अहँ क्षमाचंचवे नमः 853. ॐ अहँ साक्षिणे नमः 854. ॐ अहँ परमात्मने नमः 855. ॐ अहँ पुराणाय नमः 856. ॐ अहँ पवित्राय नमः 857. ॐ अहँ पूतवाचे नमः 858. ॐ अहँ पूताय नमः। 859. ॐ अहँ परंज्योतिषे नमः 860. ॐ अहँ वरदाय नमः 861. ॐ अहँ तीर्थंकरस्तुतश्लोकाय नमः 862. ॐ अहँ तीर्थ रक्षकाय नमः 863. ॐ अहँ प्रसन्नात्मने नमः 864. ॐ अहँ तीर्थलोचनाय नमः 865. ॐ अहँ तीर्थपाय नमः 866. ॐ अहँ तापहर्त्रे नमः ____867. ॐ अहँ तत्त्वात्मने नमः 868. ॐ अहँ श्रेष्ठाय नमः 869. ॐ अहँ जगन्नाथय नमः 870. ॐ अहँ जगज्जैत्राय नमः 871. ॐ अहँ जगज्जयेष्ठाय नमः 872. ॐ अहँ जगद्ध्येयाय नमः ___873. ॐ अहँ जगज्जैत्रे नमः 874. ॐ अहँ जगन्मात्रे नमः 875. ॐ अहँ ज्योतिर्मते नमः 876. ॐ अहँ जितमोहाय नमः 877. ॐ अहँ जितनिद्राय नमः 878. ॐ अहँ जितवैराय नमः । 879. ॐ अहँ जगद्गृवयक शिवाय नमः 880. ॐ अहँ जितक्रोधाय नमः 881. ॐ अहँ जनेशिताय नमः 882. ॐ अहँ जगदानंददायकाय नमः 881. ॐ अहँ जितकल्पाय नमः 882. ॐ अहँ जगदग्रगाय नमः 883. ॐ अहँ जगत्स्वामिने नमः 884. ॐ अहँ जगत्पितामहाय नमः 885. ॐ अहँ जगज्जयिने नमः 886. ॐ अहँ विश्वदर्शिने नमः 887. ॐ अहँ जितलोभाय नमः 888. ॐ अहँ जगत्चंदाय नमः 889. ॐ अहँ मनोजयाय नमः 890. ॐ अहँ जगद्विभवे नमः 891. ॐ अहँ जगत्कर्त्रे नमः 892. ॐ अहँ जगद्गुरवे नमः (86) Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 893. ॐ अहँ जगवंद्याय नमः । 894. ॐ अर्ह सर्वशिरोमणये नमः 895. ॐ अहँ जितालस्याय नमः 896. ॐ अहँ जगतांपतये नमः 897. ॐ अहँ जिताऽनगाय नमः 898. ॐ अहँ जितक्षयाय नमः 899. ॐ अर्ह जितक्लेशाय नमः 900. ॐ अहँ जनपालाय नमः 901. ॐ अहँ जनस्वामिने नमः 902. ॐ अहँ जगन्मात्रमनोहारिणे नमः 903. ॐ अहँ जितमानाय नमः 904. ॐ अहँ जनेशाय नमः 905. ॐ अहँ जगबंधवे नमः 906. ॐ अहँ जगत्त्यागिने नमः 907. ॐ अहँ जगज्जिष्णवे नमः 908. ॐ अहँ जगद्भत्रे नमः । 909. ॐ अहँ जितामयाय नमः 910. ॐ अहँ जितस्नेहाय नमः 911. ॐ अहँ जगदूरवये नमः 912. ॐ अहँ मनोवशंकराय नमः 913. ॐ अहँ प्रकाशकृताय नमः 914. ॐ अहँ सिद्धात्माय नमः . 915. ॐ अहँ सर्व देवेशाय नमः 916. ॐ अहँ क्षमायुक्लाय नमः 917. ॐ अहँ शाक्षीयाय नमः 918. ॐ अहँ परत्रालाय नमः 919: ॐ अहँ परमछुतिये नमः 920. ॐ अहँ पवित्राय नमः 921. ॐ अहँ परमानन्दाय नमः 922. ॐ अहँ पूनवाक्याय नमः 923. ॐ अहँ पूलाय नमः 924. ॐ अर्ह अजेयाय नमः 925. ॐ अहँ परमज्योतिय नमः 926. ॐ अहँ वरदाय नमः 927. ॐ अहँ निःसंपनाय नमः 928. ॐ अहँ विकाशय नमः 929. ॐ अहँ विश्वलाय नमः 930. ॐ अर्ह श्री प्रसिक्षाय नमः 931. ॐ अहँ श्री विमलाय नमः 931. ॐ अहँ श्री विश्वेशाय नमः 932. ॐ अहँ श्री विकस्वशय नमः 933. ॐ अहँ श्री जनश्रेष्ठाय नमः 934. ॐ अहँ श्री कष्टहर्साय नमः 935. ॐ अर्ह श्री शिवंकशय नमः 936. ॐ अर्ह श्री सदाभावीने नमः 937. ॐ अहँ श्री विशिष्टाय नमः 938. ॐ अहँ श्री विख्यालाय नमः 939. ॐ अहँ श्री विधिवेसाय नमः 940. ॐ अहँ श्री विशारदाय नमः 941. ॐ अहँ श्री विपक्षयवर्जिताय नमः 942. ॐ अहँ श्री वर्जितकामाय नमः 943. ॐ अहँ श्री विश्वकवत्सलाय नमः 944. ॐ अहँ श्री विजयाय नमः 945. ॐ अहँ श्री विधादाताय नमः 946. ॐ अहँ श्री शांतिदाय नमः 947. ॐ अहँ श्री शास्त्रज्ञाय नमः 948. ॐ अहँ श्री शांताय नमः 949. ॐ अहँ श्री दांताय नमः 950. ॐ अहँ श्री विभुक्ताय नमः 951. ॐ अहँ श्री विशदाय नमः 952. ॐ अहँ श्री अमतार्य नमः 953. ॐ अहँ श्री विसाय नमः 954. ॐ अहँ श्री शास्त्र सेवनकाय नमः 955. ॐ अहँ श्री तत्वक्षाय नमः 956. ॐ अहँ श्री शाश्वतोनित्याय नमः 957. ॐ अहँ श्री त्रिकालसाताय नमः Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 958. ॐ अहँ श्री जिनेन्द्रियाय नमः 959. ॐ अहँ श्री विघ्नविध्वंसीने नमः 960. ॐ अहँ श्री अभिष्टदाय नमः 961. ॐ अहँ श्री त्रिलोकयूजिताय नमः 962. ॐ अहँ श्री सर्वज्ञाय नमः । 963. ॐ अहँ श्री सारधियाय नमः 964. ॐ अहँ श्री नराधीशाय नमः 965. ॐ अहँ श्री धर्मरक्षकाय नमः 966. ॐ अहँ श्री धर्मवानाय नमः 967. ॐ अहँ श्री धर्मपालाय नमः 968. ॐ अहँ श्री प्रकाशात्माय नमः 969. ॐ अहँ श्री धमीधमार्य नमः 970. ॐ अहँ श्री सनातनाय नमः 971. ॐ अहँ श्री असंगाय नमः 972. ॐ अहँ श्री मनोहराय नमः 973. ॐ अहँ श्री पापहराय नमः 974. ॐ अहँ श्री अबंधनाय नमः 975. ॐ अहँ श्री वीराय नमः 976. ॐ अहँ श्री अपुनर्भवाय नमः 977. ॐ अहँ श्री स्वयंभूयाय नमः 978. ॐ अहँ श्री शंकराय नमः 979. ॐ अहँ श्री ऋषभाय नमः 980. ॐ अहँ श्री अनन्त ज्ञानीने नमः 981. ॐ अहँ श्री अनन्सदशीने नमः 982. ॐ अहँ श्री विश्वव्योपने नमः 983. ॐ अर्ह संवराय नमः 984. ॐ अहँ उत्तरवैराग्याय नमः 985. ॐ अर्ह अस्तभवाटनाय नमः 986. ॐ अहँ उत्तमासेव्याय नमः 987. ॐ अहँ अधीश्वराय नमः 988. ॐ अहँ सुगुप्तामने नमः 989. ॐ अहँ परिवृढाय नमः 990. ॐ अहँ निरस्तैन्याय नमः 991. ॐ अहँ जनपालकाय नमः 992. ॐ अहँ नीलवर्णाय नमः 993. ॐ अहँ कल्याणभाग्याय नमः 994. ॐ अहँ चतुर्धामर्त्यसेविताय नमः 995. ॐ अहँ कर्मशत्रुध्नाय नमः 996. ॐ अहँ कलाधराय नमः 997. ॐ अहँ केवलिने नमः । 998. ॐ अहँ करूणान्विताय नमः 999. ॐ अहँ चतुराय नमः 1000. ॐ अहँ कल्याणमंदिराय नमः 1001. ॐ अहँ क्रियादक्षाय नमः 1002. ॐ अहँ क्रियावते नमः 1003. ॐ अहँ क्रियापात्राय नमः 1004. ॐ अहँ कीर्तिदाय नमः 1005. ॐ अहँ चन्द्रप्रभाय नमः 1006. ॐ अहँ कृपागेहाय नमः 1007. ॐ अहँ कारणंभद्रसाधवै नमः 1008. ॐ अहँ क्षेमपूर्णाय नमः Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक के विचार - तपस्वी साधक प० जिनेशरत्नसागरजी मसा० और तन्त्र / मंदिर का जो शिल्प है वह यन्त्र है, स्तुति या प्रार्थना जो है। वह मन्त्र है और परमात्मा का अभिषेक केशर, चंदन पूजा या विलेपन आदि जो क्रिया है वह तन्त्र है। कोई भी दो द्रव्य मिलने से उसमें रासायनिक प्रक्रिया होती है और फलस्वरूप गुणधर्म में परिवर्तन होता है। इसीलिये विविध देशी जडी बूटियों से मिश्रित जल (अनेक नदियों एवं विविध कूप से प्राप्त) से परमात्मा का अभिषेक का आग्रह होता है। कोई भी नये या पुराने अपूजित प्रतिमा यन्त्र आदि को प्रतिष्ठित करने से पहले अभिषेक का विधान महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से हमारे पूर्वजों को इस सभी बातों का सम्पूर्ण ज्ञान था साथ में उनके पास आध्यात्मिक दृष्टि भी थी इसीलिये वे ऐसी रचना और विधि दे पायें कि जिससे जीव मात्र का कल्याण हो लेकिन नुकशान कदापि न हो, और हमें निर्दोष अहिंसात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हुई। अतः विविध प्रकार के तीर्थादि के जल अभिषेक से विघ्नों और अशुचि का नाश होता है, और दूध के अभिषेक से आरोग्य, ऐश्वर्य, यश लाभ में वृध्धि होती है।