SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इति श्री जीरिकापल्ली-स्वामी पार्श्वजिन स्तुतः; श्री मेरूतुंग सुरेः स्तात, सर्वसिद्धि प्रदायकः। जीरापल्ली प्रभु पार्श्व, पार्श्वयक्षेण सेवितम्; अर्चितं धरणेन्द्रेण, पद्मावत्याप्रपूजितम् । सर्व मन्त्रमयं सर्व-कार्यसिद्धिकरं परम्; ध्यायामि हृदयाम्भोजे, भूतप्रेत प्रणाशकम् । श्री मेरूतुंग सूरिनद्रः श्रीमत् पार्श्वप्रभोः पुरः; ध्यान स्थितिं हृदि ध्यायान् सर्वसिद्धिं लभेद् ध्रुवम। श्री चिंतामणि पास स्मरण दोहा :कल्पबेल चिन्तामणि कामधेनु गुणखान। अलख अगोचर अगमगति चिदानंद भगवान।। परमज्योति परमात्मा निराकार अविकार। निभ्रय रूप ज्योति स्वरूप पूरण ब्रह्म अपार ।। अविनाशी साहिब धनी चिन्तामणि श्री पास। विनय करूं कर जोड़ के पूरो वांछित आस।। मन चिंतित आशा फले सकल सिद्ध हो काम।। चिंतामणि का जाप जप चिंता हरे यह नाम ।। तम सम मेरे को नहीं चिंतामणि भगवान। चेतन की यह विनती दीजो अनुभव ज्ञान।। चौपाई : प्राणत देवलोक से आए जनम बनारस नगरी पाये। अश्वसेनकुलमण्डन स्वामि तिहुं जग के प्रभु अन्तर्यामि।। वामादेवी माता के जाए लंछन नागफणि मणि पाए। शुभकाया नवहाथ बखानो नीलवरण तनु निर्मल जानो।।
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy