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________________ भावार्थ: तब से लेकर आज तक जन्म, समय और राज्य अरोहण समय से प्रारंभ कर, करने वालों का अनुकरण करने में आदर वाले, पुण्य फल से प्रेरित सद्बुद्धिवाले मनुष्यों ने भी इसका अनुकरण किया है। क्योंकि महाजनों ने जो मार्ग अपनाया वह मार्ग तात्पर्य देवों ने अभिषेक किया इसीलिये हमारे द्वारा भी यथाशक्ति प्रयास हो। स्नात्र : अर्थात् प्रभुजी का जन्माभिषेक, जैसा कि मेरू पर्वत पर इन्द्र-इन्द्राणी मनाते हैं। उल्हास और उमंग से स्नात्र पढ़ाने से कर्मों का क्षय होता है और उत्तम पुण्य का उपार्जन होता है। अभिषेक के प्रभाव मुगल सम्राट अकबर बादशाह द्वारा स्नात्र पूजा करना :- अकबर बादशाह के बड़े पुत्र जहाँगीर के यहाँ पुत्री के जन्म हुआ । ज्योतिषियों ने बालिका का जन्म मूल नक्षत्र में होने से पिता के लिए कष्टदायक होना बताया। बादशाह ने जैन गुरु भानुचन्द्रविजयजी जो जगद्गुरु हीरसूरि के शिष्य थे तथा दूसरे जैन | विद्यवान मुनि श्री मानसिंह जो जैनाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि के शिष्य थे, उनसे पूछा कि कष्ट निवार्णार्थ क्या किया जाय? जैन गुरुओं ने फरमाया कि जैन मंदिर में स्नात्र पूजा कराई जाय तो कष्ट दूर हो सकता है। महोत्सव बड़े ही ठाठ-बाट के साथ प्रारंभ हुआ। सम्राट अकबर अपने पुत्र जहाँगीर व अन्य दरबारियों के साथ उपस्थित हुआ। मुनि भानुचन्द्र व मुनि मानसिंह ने स्नात्र विधि सम्पन्न कराई। मुनि भानुचन्द्रविजयजी ने स्वयं भक्तामर महास्तोत्र का पाठ किया संम्राट अकबर व पुत्र जहांगीर ने खड़े रहकर संपूर्ण स्नात्र पूजा विधि की । सुवर्ण पात्र से दोनों ने स्नात्र जल ग्रहण किया । फिर सम्राट व युवराज के सुख शान्ति में निरंतर वृद्धि हुई । बाहुराजा का कोढ सूरजकुंड के नव्हण जल से दूर हुआ था । सूरजकुंड के पवित्र जल से चंदराजा कुकृट से फिर मानव बन गया। गजपद कुंड का जल अत्यंत पवित्र माना जाता है, जिसके जल से दुर्गंधा नारी ने अपने शरीर की दुर्गंध दूर की। 17
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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