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________________ बत्रीस कोडी कनक मणि माणिक, वस्त्रनी वृष्टि करावे; पूरण हर्ष करेवा कारण, द्वीप नंदीसर जावे; करी अट्ठाइ उत्सव देवा, निज निज कल्प सिधावे; दिक्षा केवल ने अभिलाषे, नित नित जिन गुण गावे। इन्द्रादिक द्वारा भगवान का जन्माभिषेक तीर्थंकर महाराजा के जन्म अभिषेक में एक कोटि साठ लाख कलशों का उपयोग है जो इस तरह हैंकलश आठ प्रकार के होते हैं : (1) सुवर्णमय, (2) रजतमय, (3) रत्नमय, (4) स्वर्णरूप्यमय, (5) स्वर्णरत्नमय, (6) रूप्यरत्नमय, (7) स्वर्णरत्नमय, (8) मृन्मय-मिट्टी के प्रत्येक के आठ हजार कलश होते हैं। प्रत्येक कलश का माप-25 योजन ऊँचा, 12 योजन चौड़ा तथा 1 योजन के नालवाला होता है। एक अभिषेक में 64 हजार कलश रहते हैं। कुल 250 अभिषेक होते हैं, जो इस प्रकार हैं...() 10 अभिषेक बारह वैमानिक देवों के इन्द्रों के 20 अभिषेक भुवनपति के इन्द्रों के 32 अभिषेक व्यन्तर के 32 इन्द्रों के 66 अभिषेक अढीद्वीप के सूर्य के 66 अभिषेक अढीद्वीप के चन्द्रों के 8 अभिषेक सौधर्मेन्द्र की आठ अग्रमहिषी के 8 अभिषेक इशानेन्द्र की आठ अग्रमहिषी के 5 अभिषेक चमरेन्द्र की पाँच अग्रमहिषी के 5 अभिषेक बलीन्द्र की पाँच अग्रमहिषी के 6 अभिषेक धरणेन्द्र की पटरानी के 6 अभिषेक भूतानंद की पटरानी के
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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