SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ श्री पार्श्वनाथाय नमः। श्रद्धेय मनिराज श्री जिनेश रत्न सागर जी महाराज एवं सहवर्ती मुनिजन। आप सबको खूब-खूब वंदन सुखसाता, खूब-खूब वंदन सुखसाता, वंदन सुखसाता। विशेषः यह समाचार जानकर अत्यंत खुशी हुई कि आप श्री जी। जिनेन्द्र परमात्मा के अभिषेक विधियों को प्रकाशित कर रहे हैं। इस प्रकाशन से अनेक लाभ होंगे। अभिषेक प्रक्रिया के अनुभव आप श्रीजी ने जो ओस्त्रा में हम मुनियों को सुनाए थे, तब से इच्छा थी कि यदि इन अनुभवों और विधियों का प्रकाशन हो जाए तो समाज के लिए एक नई दिशा बन जाएगी। स्त्रोत्रों, स्तुतियों, रासों एवं कई पुस्तकों में पढ़ते ही थे, अभिषेक की महिमा-जैसे कि : नृत्यंति नित्यं माणि पुष्प वर्मं, सृजन्ति गत्यंति च मंगलानि। स्त्रोमाणि गोत्राणि पटंति मंत्रान्। कल्याण भाजो हि जिनाभिषेके । बृहच्तान्ति।। जो जिनेन्द्र परमात्मा के अभिषेक के समय मणि पुष्पादि बरसाते हुए विद्यावधे नृत्य करते हैं, मंगलचिन्हों को बनाते हैं, स्त्रोत्र और मंत्र बोलते हैं, अपने गोत्र बतलाते हैं वे जीव निश्चित ही कल्याण के भागी होते हैं। अर्थात् पुण्य बांधने एवं भोगते हुए मोक्ष स्थिति को प्राप्त करते हैं। एव अन्य गाथा लिखना उचित मानता हूँ। येषाअभिषेककर्म कृत्वा मत्रा हर्षकरात् सुखम् सुरेन्द्राः तृणमापि गणवन्ति नैव नाकं, प्रातः सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः। जिनका अभिषेक करके हर्ष से मंत्र बने हुए देवेन्द्रादि स्वर्गीय सुख को तिनके जैसा - तच्छ। मानते हैं ऐसे जिनेन्द्र परमात्मा प्रातःकाल में अपने कल्याण के लिए हैं। आदि। ऐसे तो अनेक पद हैं। आत्म कल्याण का कारण है जिनेन्द्र परमात्मा का अभिषेक। इतना ही नहीं, रोग, शोक, भय, कष्ट निवारण है जिन अभिषेक। श्रीपाल और मयणासुंदरी की नहति/न्वांगी टीका का आचार्य श्री अभयदेव सूरीश्वर जी महाराज की कहानी आदि चरित्रकथाएं मात्र जिन अभिषेक के महत्त्व को ही बतलाती हैं। आचार्य श्री मानदेव सूरीश्वर जी महाराज द्वारा परिचित लघु शांति वे साथ जिनेन्द्र परमात्मा का अभिषेक दैविक उपद्रवों के नाश का कारण बन गया वैसे ही आप श्री जी के द्वारा नानाविधि लिखित, उद्धृत स्त्रोत्रों एवं मंत्रों पूर्वक अभिषेक मंगलकारी एवं संकटहारी साबित होगा यह विश्वास है। आप श्री जी ने यह कार्य किया यह एक नई विद्या है। इसके लिए हमारी मंगलकामनाएं स्वीकारें। इस पुस्तक के मुद्रण का लाभ गुजरानवालीय श्रीमान् शांतिलाल जी खिलौने वालों ने लिया है। यह भी उन्होंने बहुत-बहुत अनुमोदनीय कार्य किया है। वे जो जिनेन्द्र भक्त हैं त्यों ही गुरुभक्त हैं। गुरुभक्ति के रूप में दिल्ली स्मारक पर किया कराया काम हमेशा स्मार्य है त्यों ही यह कार्य उनकी जिन भिक्ति का साक्ष्य रहेगा। उन्हें भी इस कार्य के लिए आशिष। __ धर्मधुरंधर सूरीजी म.सा.
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy