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शरीर पुष्ट करने वाला, आरोग्य की रक्षा करने वाला, रोगों का प्रतिकारक तत्व दूध में ही मिलता है।
दूध को संपूर्ण आहार कहा गया है, तुरन्त जन्मे बच्चे से लेकर वृद्धजनों, बीमार आदि के लिये यह अमृत समान है।
सबसे महत्व की बात यह है कि जगत में जितने भी प्रवाही हैं वह स्वाभाविक उत्पन्न होते हैं, दूध की उत्पत्ति सिर्फ नारी जाति में ही होती है यह भी आचर्य की बात है कि प्रत्येक नारी में तो नहीं पर जो स्त्री मातृत्व धारण करती है उनके ही दूध उत्पन्न होता है। क्योंकि दूध वात्सल्य करूणा का प्रतिनिधि है। वात्सल्य प्रेम से भरपूर ऐसी करूणामूर्ति माँ का प्रेम दूध रूपी अमृत द्वारा बहता है।
हमारे तीर्थंकर परमात्मा के सभी जीव करूं शासन रसी की उत्कृष्ठ करूणाधारा से ओतप्रोत हैं इसीलिये उनके शरीर में लाल रक्त की जगह श्वेत खून बहता है! जो दूध का ही प्रतीक है। परमात्मा महावीर को जब चंडकोशीक सर्प डसता है तो खून के बदले दूध की धारा बहती है।
ऐसे करूणामूर्ति परमात्मा का अभिषेक करूणा और वात्सल्य के तत्वों से भरपूर ऐसे दूध से करने का सूचन क्षीर यानी दूध रूपी जल से करना बताया है।
करूणा के सागर परमात्मा का दुग्धाभिषेक करने वाले को शीघ्र आरोग्य, ऐचर्य और यश का लाभ करने वाला होता है ऐसा मेरा सैंकड़ों बार का अनुभव है। क्योंकि दूध में यह कुदरती गुण है।
इस चार्तुमास में 120 दिन परमात्मा के दूध अभिषेक! इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है? निःसंदेह करूणासागर वात्सल्यमूर्ति परमात्मा का अभिषेक वात्सल्य और प्रेम का प्रतीक ऐसे दूध से ही करना उचित है।