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जल, गन्ने का रस, दूध, दही, मोसंबी का रस इत्यादि विविध प्रकार के अभिषेक भी अलग-अलग राशि एवं ग्रहों की बाधा में सुन्दर परिणाम देते हैं।
औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य है, बहेडा को संस्कृत भाषा में 'बिभीतक' कहते हैं। जिसके प्रभाव से परस्पर गाठ मित्रता वाले दो मित्र अगर वह वृक्ष के नीचे कुछ क्षण रुके तो दोनों का स्वभाव परस्पर विशेष हो जाता है। दोनों में दुश्मनी हो जाती है जबकि परस्पर शत्रु भाव रखने वाले दो व्यक्ति अशोक वृक्ष के नीचे बैठे हुए होंतो दोनों में शत्रु भाव में मंदता और मित्र भाव में वृद्धि होती है। कभी-कभी तो देवों की शक्ति जहाँ नहीं पहुँच सकती है, वहाँ औषधि शक्ति ने अपना प्रभाव दिखलाया है। प.पू.आ. री सोमप्रभ सूरि म.सा. द्वारा रचित श्री 'कुमारपाल प्रतिबोध' ग्रंथ के एक कक्ष में यह बात आती है। राजा की कन्या गूंगी थी, राजा के मित्र ने देव की शक्ति का परिचय बताते हुए कहा कि उस देव को वह अपने पास ला सकता है। राजा ने मित्र से देव को बुलाने की विनती की, देव हाजिर हुए लेकिन कन्या कुछ बोली नहीं थोड़ी देर बाद कन्या बोलने लग गई। तब राजा ने देव से प्रश्न किया क्यूँ बोलने में इतनी देर हुई, तब देव ने कहा यहाँ आकर बोलने को हुआ लेकिन कन्या गूंगी होने की वजह से बोल नहीं पाया इसलिये हिमालय जाकर औषधि लाकर उसका प्रयोग किया इसलिए इतनी देर लगी।
स्तोत्र पाठ समर्पण की क्रिया है और मंत्र जाप पुरुषार्थ की क्रिया है।
इस अवधि काल के प्रथम धर्म तीर्थ स्थापक श्री ऋषभ देव भगवान ने जगत की असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मों के द्वारा जहाँ समाज को विकास का मार्ग बतलाया, वहीं अहिंसा, आचार्य, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को उपदेश द्वारा समाज की आंतरिक चेतना को जगाया और आत्म विकास का मात्र बतलाया। उचितमभिषेककाले, मुनिगात्र-पवित्र-चित्र-चारुफलं क्षीरं आरादादेक-लक्ष्मी-लक्ष्मी दध (द्) दधात्। अभिषेक के समय क्षीर सागर का जल की लक्ष्मी शोभा को धारण करता है, क्षीर (दुन्ध), मुणि (तीर्थंकर) के शरीर द्वारा पवित्र होकर आश्चर्यकारक सुंदर फल देने वाले (स्नात्र करने वाले को) लक्ष्मी प्रदान करे।