Book Title: Yuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015 Author(s): Rajendramuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 11
________________ आँखें फाड़कर देखने लगी-1 युवायोगी जम्बूकुमार सेठानी आश्चर्य के साथ आँखें फाड़कर देखने लगी-11 क्या? यह क्या किया बेटा तुमने? मेरे मनोरथों पर सौ-सौ घड़े पानी गिरा दिया..? S S । YORKINNIN Voi सेठानी बेहोश होकर गिर पड़ी। सेठ दौड़कर आये| दासियों ने शीतल पानी के छींटे डाले। सेठानी होश में आई। परन्तु उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी बरसती रही। माता की आँखों में आँसू बहते देखकर जम्बू कुमार सोचने लगे जम्बू ने मन ही मन अपना निश्चय बदल लिया। 0000 मेटी दीक्षा लेने की बात से ही माता के मन को इतनी गहरी चोट पहुंची है तो दीक्षा लूँगा तो इन पर क्या बीतेगी? माता-पिता को प्रसन्न रखना मेरा पहला Liv), कर्तव्य है। इसलिए जो भी करना सा है इनकी खुशी से ही करूंगा। उसने माँ से कहा माँ, तुम चिन्ता मत। माँ ने जम्बू के सिर पर हाथ फिराते हुए कहाकरो, जैसा तुम्हारा मन बेटा ! मैं भी तेरे साथ जबर्दस्ती है वैसा ही करूँगा.... नहीं करूंगी, पर मेरा मन है एक बार विवाह करले, बहुओं का मुँह दिखा दे, फिर तेरी जो इच्छा हो करना... Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38