Book Title: Yuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015 Author(s): Rajendramuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 29
________________ जम्बूकुमार ने हँसते हुए कहा हमारा यह जीव (आत्मा) अनेक जन्मों में चक्रवर्ती, देव, देवेन्द्रों के दिव्य सुख भोगकर भी तृप्त नहीं हुआ तो कीचड़ के समान मानव जीवन के तुच्छ सुख भोगने पर कैसे तृप्त हो, सकता है? ये युवायोगी जम्बूकुमार जम्बूकुमार के तर्क पर सभी रमणियाँ मौन होकर देखने लगीं। जम्बूकुमार ने अपना आशय स्पष्ट करते हुए कहा में | इस प्रकार रातभर जम्बूकुमार और आठों स्त्रियों के बीच कहानियाँ और तर्क वितर्क चलते रहे। अन्त की युक्तियों से सभी का मोह भंग हो गया। उन्होंने स्वीकार किया Jainucation International देवियों ! भोगों से मन की तृष्णा कभी भी शान्त नहीं हो सकती। भोग से विरक्ति होने पर ही मन को शान्ति मिलेगी और उसका एक ही मार्ग है, संयम ! त्याग ! CACCA आर्य पुत्र ! आपके ज्ञान पूर्ण वैराग्य से हमारा मन भी जाग उठा है। अब हमें भी भोगों से विरक्ति हो गई। हम सभी आपके साथ संयम दीक्षा लेंगी... 27 For Private & Personal Use Only जम्बूकुमार www.jainelibrary.orgPage Navigation
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