Book Title: Yuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015 Author(s): Rajendramuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 27
________________ | कहानी सुनाकर पद्मश्री ने कहा 200000 छकुल युवायोगी जम्बूकुमार स्वामी, देव बनने के लालच में जैसे बन्दर ने अपनी मानवी काया खो दी, पत्नी भी खो दी और जन्मभर पछताता रहा। मोक्ष-सुख पाने के लालच में कहीं आप अपने मानवी सुख खोकर इसी प्रकार न पछतायें..... Jain Education International पद्मश्री की कहानी सुनकर जम्बूकूमार मुस्कराये। फिर बोलेआर्य बाला ! सुखों के लिए पछताता वह है जिसके मन में तृष्णा हो, बन्दर के मन में सुखों की तृष्णा थी, उसी के कारण वह जन्म भर पछताया। मैं भी तुम्हें अंगारकारक की कहानी सुनाता हूँ... सुनो.... ओह ! प्यास के मारे गला सूखता ही जा रहा है। एक कोयला बनाने वाला (अंगारकारक) था। वह जंगल में वृक्षों को जला-जलाकर कोयला बनाता था। एक बार गर्मी के मौसम में कोयला बनाने के लिए वह लकड़ियाँ जला रहा था। भीषण गर्मी के कारण उसे तीव्र प्यास लगी। उसके पास घड़े में जितना पानी था धीरे-धीरे सब पी गया, फिर भी प्यास नहीं बुझी। आठों रमणियाँ उत्सुक होकर जम्बूकुमार की कहानी सुनने लगी। जनावर 100 25 For Private & Personal Use Only Immmary; www.jainelibrary.orgPage Navigation
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