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दिवाकर (चित्रकथा
युवायोगी जम्बूकुमार
अंक १५ मूल्य 20.00 |
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सुसंस्कार निर्माण विचार शुद्धि : ज्ञान वृद्धि मनोरंजन
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युवायोगी जम्बूकुमार
जैसा कि पानी स्वभाव से ढलान में बहता है। मनुष्य का मन भी स्वाभाविक रूप में सुख-सुविधाओं की ओर दौड़ता रहता है। अनेक प्रकार के कष्ट, बाधाएँ व अपमान सहकर भी इन सुखों को पाना चाहता है। किन्तु संसार में कुछ विरले मनुष्य ऐसे भी होते हैं, जिनके मन से मोह के संस्कार मिट जाते हैं, अज्ञान का पर्दा हट जाता है, वे इस प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होने पर भी इन्हें दुःखदायी समझते हैं ।
भगवान महावीर निर्वाण के लगभग १६ वर्ष पहले एक ऐसे ही अद्भुत वैरागी पुरुष ने जन्म लिया, जिसने १६ वर्ष की भरी-पूरी जवानी में सुख-सुविधाओं के अपार साधन, विपुल धन-सम्पत्ति, माता-पिता का प्यार और आठ सुन्दर नव विवाहित रमणियों के साथ विवाह हो जाने पर भी उसी रात में संसार के सब भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर, संयम के अत्यन्त कठिन कष्टप्रद मार्ग का अनुसरण किया। शरीर पर संयम करने से भी कठिन है, मन पर संयम करना। जिस मनस्वी युवक ने मन पर संयम करने की साधना का मार्ग अपनाया उसका इतिहास प्रसिद्ध नाम है जम्बूकुमार । युवायोगी जम्बूकुमार का दृढ़ संकल्प, त्याग और वैराग्य जैन इतिहास में तो प्रसिद्ध आदर्श त्याग है ही, परन्तु शायद संसार के धार्मिक साहित्य में भी ऐसी वैराग्यपूर्ण प्रेरक जीवन गाथा दूसरी मिलना कठिन है।
जम्बूकुमार को वैराग्य किसी के उपदेश से नहीं, किन्तु अन्तःकरण की जागृति से पैदा हुआ था। इसलिए उसमें इतनी तेजस्विता, प्रेरकता और हृदय स्पर्शिता थी, कि उनकी वाणी का प्रभाव अमोघ हो गया। नव-विवाहिता पत्नियाँ भी उनके वैराग्य से प्रभावित होकर उनकी अनुगामिनी बन गईं। प्रभव जैसा नामी तस्कर भी जब उनकी वैराग्य भरी वाणी सुनता है तो उसका हृदय बदल जाता है, वह भी अपने ५०० साथियों के साथ जम्बूकुमार साथ ही संसार त्यागकर संयम का मार्ग स्वीकारता है। ऐसी अद्भुत ऐतिहासिक घटना वि. सं. ४७० वर्ष पूर्व वीर निर्वाण प्रथम वर्ष) में घटी, वह दिन इतिहास का चिरस्मरणीय दिन माना जाता है।
जम्बूकुमार और उनकी पत्नियों के बीच हुआ वार्तालाप, संवाद बहुत रोचक और प्रेरक है । कथोपकथन में आई लघुकथाएँ भी बड़ी बोधप्रद है। यहाँ पर तो संक्षेप में १-२ कथाएँ ली गई हैं। बाकी किसी अन्य भाग में देने का प्रयास किया जायेगा । युवायोगी जम्बूकुमार का है जी के विद्वान शिष्य डॉ. राजेन्द्र मुनि शास्त्री ने प्रस्तुत किया है। इस सहयोग के लिए -महोपाध्याय विनय सागर
- श्रीचन्द सुराना 'सरस'
लेखक : ड
सम्पादक :
श्रीचन्द सुराना 'सरस'
प्रकाशन प्रबंधक : संजय सुराना
प्रकाशक
श्री दिवाकर प्रकाशन
-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. दूरभाष : 0562-351165 सचिव, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर
13- ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. दूरभाष : 524828, 561876,524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा 18/D, सुकेस लेन, कलकत्ता - 700001. दूरभाष : 2426369, 2424958 फैक्स: 2104139
चित्रांकन : श्यामल मित्र
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युवायोगी जम्बूकुमार
मगध की राजधानी राजगृह में ऋषभदत्त नाम का एक धनाढ्य और सम्मानित व्यापारी रहता था। उसकी सेठानी धारिणीदेवी बड़ी शीलवती और सेवा परायण थी। सेठ ऋषभदत्त के घर में सोने-चाँदी के अम्बार लगे थे। किन्तु जैसे चाँद के बिना तारों से झिलमिलाता आसमान भी सूना लगता है, वैसे ही पुत्र के बिना सेठानी धारिणी का आंगन सूना-सूना सा था। एक दिन सेठ आरामशाला में बैठे सेठानी से कह रहे थे
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धारिणीदेवी, अवश्य ही हमारे पूर्व-जन्म के पुण्यों में कुछ कमी है।
जिससे सब कुछ होते हुए भी तुम्हारी गोद अभी तक खाली है।
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साय
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सेठानी ने उदासी छुपाते हुए कहा
स्वामी, जो नहीं है, उसकी चिन्ता करके अपना मन दुःखी मत करो.. भाग्य में पुत्र का मुँह देखना लिखा है, तो कभी न कभी आशा जरूर
फलेगी..
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युवायोगी जम्बूकुमार
तभी आरामशाला में सेठ के मित्र ज्योतिषी मसमित्र ने प्रवेश | | सेठ ने कहाकिया। सेठानी के चेहरे पर उदासी देखकर उसने पूछा
मित्र, इसकी चिन्ता तो तुम जानते
ही हो। सन्तान के बिना सब कुछ आज भाभी उदास
होते हुए भी लगता है कुछ नहीं... क्यों बैठी है, क्या
तुम अपने ज्योतिष ज्ञान से कुछ चिन्ता है....
बताओ तो जानें
अभी प्रश्न लग्न लेकर बताता हूँ, भाभी की इच्छा कब फलेगी।
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सेठ ने आश्चर्यपूर्वक देखा
जसमित्र ने प्रश्न कुण्डली बनाई और प्रसन्न होकर बोलाअब चिन्ता मत करो भाभी, शीघ्र ही आपके मनोरथ पूर्ण होने वाले हैं
..सच....! तुम रहा , मित्र! भाभी एक ऐसे महान पत्र सच कह रहे हो की माता बनेगी जिसका यश सम्पर्ण जसमित्र!
। भरतक्षेत्र में फैलेगा। हजारों वर्ष तक उसकी कीर्ति संसार में गूंजती रहेगी....
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युवायोगी मम्बूकुमार
फिर प्रश्न कुण्डली पर ध्यान देते हुए जसमित्र बोला
पारण
आप बहुत शीघ्र स्वप्न में एक श्वेत बालों वाला केसरीसिंह देखेंगी, तब आपको मेरी बात पर विश्वास हो जायेगा।
| तभी द्वारपाल ने आकर सूचना दीTA
'वाह ! आज का दिन कितना शुभ है। श्रेष्ठीवर !
एक के बाद दूसरा हर्ष-समाचार मिला राजगृह के उद्यान
है। चलो हम सब गणधर सुधर्मा के में गणधर सुधर्मा
4 दर्शन कर अपनी जिज्ञासाओं का स्वामी पधारे हैं...
समाधान करेंगे?
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जसमित्र की भविष्य वाणी सुनते ही सेठानी | धारिणी का हृदय हर्ष से फूल उठा।
सभी ने जाकर गणधर सुधर्मा के दर्शन किये, प्रवचन सुना। और प्रश्नों का समाधान पाया।
एक रात सेठानी धारिणी अपने शयन कक्ष में सोयी हुई थी। रात का अन्तिम पहर था। अचानक उसने एक स्वप्न देखा-चांद-सा सफेद बालों वाला एक केसरीसिंह उसके मुख में प्रवेश कर रहा है।
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CALL
सिंह का स्वप्न देखकर धारिणी रोमांचित हो उठी।
१. जैन-धर्म का मौलिक इतिहास : भाग-२ पृष्ठ २०३-४ के अनुसार यह घटना भगवान महावीर के १४वें अन्तिम वर्षावास के समय की है।
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युवायोगी जम्बूकुमार
कुछ समय बाद उसे एक हरा-भरा बड़े-बड़े फलों वाला जम्बू वृक्ष स्वप्न में दिखाई दिया। वृक्ष आकाश से नीचे उतर कर धारिणी के मुख में प्रवेश कर गया।
सुन्दर विचित्र स्वप्न देखकर धारिणी जाग उठी। प्रातःकाल होते ही सेठानी ने सेठ को अपने स्वप्न सुनाये।
स्वामी, ऐसा सफेद सिंह मैंने जीवन में पहली बार देखा है, और दूसरे स्वप्न में हरा-भरा बड़े-बड़े पीले फलों वाला विशाल जम्बू वृक्ष । सचमुच ही विलक्षण था। PURYE
जसमित्र की भविष्यवाणी सत्य हो रही है।
सेठ ने जसमित्र को बुलाया। स्वप्न सुनकर जसमित्र ने कहा
भाभी ! आपका पुत्र सिंह के समान पराक्रमी होगा। साथ ही जम्बू वृक्ष तरह अपने युग का कोई अद्वितीय पुरुष होगा। समग्र जम्बूद्वीप में उसके यश का विस्तार फैलेगा।
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युवायोगी जम्बूकुमार धारिणी यह खुश खबरी लेकर अपनी वृद्ध सास को प्रणाम करने गई, तो उसने आशीर्वाद देते हुए कहा
बहू ! जम्बू वृक्ष का स्वप्न बहुत ही दुर्लभ स्वप्न है और यह महान सौभाग्य का सूचक है ! ध्यान रखना, माता के भोजन आदि का प्रभाव जैसे सन्तान के शरीर पर पड़ता है, वैसे ही माता के आचार-विचार का
प्रभाव भी उसके संस्कारों पर पड़ता है।
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समय पर धारिणी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का जन्मोत्सव मनाने के लिए सेठ ने विशाल प्रीतिभोज का आयोजन किया। गरीबों को खूब दान दिया। असहायों को सहायता दी। फिर स्वजन मित्रों के समक्ष घोषणा करते हुए कहा-THREEFET
पसेठानी धारिणी ने स्वप्न में
जम्बू वृक्ष देखा था, इसलिए हम पुत्र का नाम जम्बूकुमार रखना चाहते हैं।
(उत्तंम!
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उत्तम!
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स्वजन मित्रों ने उल्लास प्रकट करके सेठ की घोषणा का स्वागत किया।
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युवायोगी जम्बूकुमार जम्बू कुमार बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था। विद्याध्ययन के सेठ ने कलाचार्य का सम्मान करते साथ-साथ खेल-कूद, संगीत आदि कलाओं में भी उसकी रुचि थी। हुए कहा
आचार्यवर ! वणिक पुत्र को तो। गुरुकुल में कलाचार्य के पास उसने शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा पूर्ण
एक व्यापार कला ही काफी है। | होने पर कलाचार्य जम्बू को लेकर सेठ ऋषभदत्त के पास आये।।
बाकी कला तो मानसिक विकास मिाणाशिामाथि
में सहायक होती है। परीक्षा की सेठ जी, आपका पुत्र ८ वर्ष
क्या जरूरत है...? के अल्प समय में ही ७२ कलाओं में प्रवीण हो गया है। आप चाहें तो इसकी परीक्षा लेकर देख सकते हैं।
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सेठ ने कलाचार्य को धन, वस्त्र आदि से सम्मानित करके विदा कर दिया।
दूसरे ही दिन से राजगृह के बड़े-बड़े धनवान श्रेष्ठियों. के रिश्ते जम्बू कुमार के लिए आने लगे। सेठ ऋषभदत्त ने कन्याओं के चित्र और जन्म-पत्रिकाएँ सेठानी धारिणी के सामने रखते हुए कहा
सेठानी एक-एक करके कन्याओं के चित्र देखती यह तो बहुत सुन्दर है, और रही। यह तो सचमुच रूप की रंभा है।
इस कन्या की आँखें तो देखो कितनी मोहिनी लगती हैं। मैं अपने जम्बू के लिए एक-दो नहीं,
आठ सुन्दरियाँ लाऊँगी।
(लो, अपने जम्बू के लिए
कन्या पसन्द करो!
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युवायोगी जम्बूकुमार सेठ ने हँसते हुए कहा- आठ क्या साठ भी लाओ. तो तुम्हे क्या कमी है? परन्तु अपने बेटे से तो पूछ लिया होता?
मेरा जम्बू ! इतना आज्ञाकारी है कि माँ का कहा कभी टाल भी
नहीं सकता। मैंने तो ये आठ
कन्याएँ चुन ली हैं, इनको सम्बन्ध की स्वीकृति भेज दीजिये।
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वाह ! पुत्र ! तू कितना पुण्यवान है। लेकिन यह क्या? तेरे वस्त्रों पर इतनी मिट्टी क्यों लगी हैं? क्या बात है।
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तभी जम्बू कुमार ने आकर माता के चरण स्पर्श किये। माँ ने जम्बू को आशीर्वाद देते हुए पूछा
बेटा, तू कहाँ
गया था?
माँ ! मैं अभी-अभी गणधर सुधर्मा स्वामी का प्रवचन सुनकर आ रहा हूँ।
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कुछ नहीं ! माँ ! प्रवचन सुनकर वापस लौटते समय जैसे ही मैंने नगर द्वार में प्रवेश किया था कि अचानक दरवाजे के ऊपर की बड़ी शिला टूटकर मेरे रथ पर गिर पड़ी। किन्तु भाग्य से मैं बच गया, कुछ भी चोट नहीं लग़ी माँ... केवल रथ का पिछला भाग ही, थोड़ा-सा क्षतिग्रस्त हुआ है।
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यह सुनते ही सेठानी के हाथों के तोते उड़ गये। उसने ' बार-बार जम्बू को देखा और बोली
क्या ?
युवायोगी जम्बूकुमार
धन्य है प्रभु ! आपकी कृपा से मेरी आँखों का तारा कुशल क्षेम आ गया।
यदि इस दुर्घटना मेरी मृत्यु हो जाती तो....?.
बेटा, यह तो बहुत अच्छा किया, उनके नाम से ही सब संकट टल जाते हैं...
जम्बू ने कहा
ना ! ना ! बेटा ! ऐसी अशुभ बात मुँह से मत निकाल...
'जम्बू हँसते हुए बोला
माँ, इस दुर्घटना से बचने के बाद मेरे मन में एक विचार आया।
माँ सुनो तो सही, मैं वापस • लौटकर आर्य सुधर्मा स्वामी के दर्शन करने गया।
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हाँ, माँ, मेरा भी जन्म भर का संकट टल गया। मैंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का संकल्प ले लिया है।
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आँखें फाड़कर देखने लगी-1
युवायोगी जम्बूकुमार सेठानी आश्चर्य के साथ आँखें फाड़कर देखने लगी-11
क्या? यह क्या किया बेटा तुमने? मेरे मनोरथों पर सौ-सौ
घड़े पानी गिरा दिया..?
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सेठानी बेहोश होकर गिर पड़ी। सेठ दौड़कर आये| दासियों ने शीतल पानी के छींटे डाले। सेठानी होश में आई। परन्तु उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी बरसती रही।
माता की आँखों में आँसू बहते देखकर जम्बू कुमार सोचने लगे
जम्बू ने मन ही मन अपना निश्चय बदल लिया।
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मेटी दीक्षा लेने की बात से ही माता के मन को इतनी गहरी चोट पहुंची है तो दीक्षा लूँगा तो इन
पर क्या बीतेगी?
माता-पिता को प्रसन्न रखना मेरा पहला Liv), कर्तव्य है। इसलिए जो भी करना सा है इनकी खुशी से ही करूंगा।
उसने माँ से कहा
माँ, तुम चिन्ता मत। माँ ने जम्बू के सिर पर हाथ फिराते हुए कहाकरो, जैसा तुम्हारा मन
बेटा ! मैं भी तेरे साथ जबर्दस्ती है वैसा ही करूँगा....
नहीं करूंगी, पर मेरा मन है एक बार विवाह करले, बहुओं का मुँह दिखा दे,
फिर तेरी जो इच्छा हो करना...
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युवायोगी जम्बूकुमार
जम्बू कुमार ने अपने पिता के चरण छूते हुए कहा
पिताश्री ! आपकी और माताश्री की इच्छा का सन्मान करके मैं विवाह करने को तैयार हूँ, परन्तु विवाह के बाद दीक्षा अवश्य लूँगा। कन्याओं के घर इसकी सूचना भेज दीजिये।
तुम भी कितनी
तभी उनकी पुत्री समुद्रश्री बीच में बोल उठीमाँ, भोली हो? जानती हो, जब तक भँवरा फूल का रस नहीं पीता, तब तक ही चूँ-चूँ. करता है...।
दूसरे दिन सेठ ऋषभदत्त का दूत सन्देश लेकर समुद्रप्रिय सेठ के घर पहुँचा। संदेश सुनकर वह विचार करने लगे
बेटी, मैं जम्बूकुमार को खूब जानती हूँ। वह कच्चा खिलाड़ी नहीं है। अपने निश्चय का पक्का है। जीवन भर का प्रश्न है, खूब सोच लो.....
ऐसा जँवाई क्या काम का? जो शादी होते ही साधु बन जायेगा. ?
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पिताश्री, मैंने भी मन से उनको अपना पति मान लिया है। अब इस बाज़ी में कौन जीतता है, आप देख लेना...।
दूसरी कन्याओं ने भी अपने माता-पिता को लगभग ऐसा ही उत्तर दिया।
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युवायोगी जम्बूकुमार
दूसरे दिन सेठ ऋषभदत्त के घर आठ कन्याओं के सम्बन्ध पक्का करने, मिठाईयाँ व वस्त्राभूषण लेकर उनके माता-पिता पहुँच गये। एक ही शुभमुहूर्त में आठ कन्याओं के साथ जम्बूकुमार का पाणिग्रहण संस्कार धूमधाम से सम्पन्न हो गया।
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सेठ ऋषभदत्त ने जम्बू कुमार के लिए विशेष रूप से सात मंजिला सुन्दर महल बनवाया।
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वाह भई वाह ! ऐसा समारोह तो नगर में पहली बार देखा है।
महल के कक्ष में मधुर संगीत के स्वर गूंज रहे थे। सुगन्धित फूलों की महक से समूचा वातावरण मादक बन रहा था।
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रूपवती नव-यौवना रमणियों की नुपूर की झंकार मंद हँसी और मधुर बोलियों से महल का वातावरण और भी मोहक और कामोत्तेजक बना हुआ था।
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युवायोगी जम्बूकुमार
जम्बूकुमार आठों पत्नियों के साथ उस भवन के मध्य बने विशाल कक्ष में पहुँचे। कक्ष के बीच में सुन्दर कला-कृतियों वाला एक भव्य सिंहासन रखा था तथा उसके दायें बायें अर्ध गोलाकार में आठ सिंहासन लगे हुए थे। जम्बूकुमार बीच के सिंहासन पर बैठते हुए बोले
देवियों ! आप भी बैठिये ! आज की रात हमारे जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण रात है, क्यों है न?
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देवियों ! आपने यह तो ठीक कहा कि आज की रात हमारे जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण रात है, परन्तु क्यों है ....?
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आठों रमणियाँ जम्बूकुमार को घेर कर बैठ गईं।
जम्बूकुमार बहुत ही शान्त तथा निर्विकार भाव से प्रसन्न दीख रहे थे। पत्नियों को सम्बोधित करते हुए बोले
पति पत्नी परस्पर स्नेह एवं विश्वास के सूत्र में बँधते हैं.... इसलिए...
हाँ, स्वामी, आप सत्य कह रहे हैं
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स्वामी, दाम्पत्य जीवन की यह मिलन रात्रि नारी के लिए अविस्मरणीय) ...होती है.....
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सभी रमणियाँ लजाती, हँसती जम्बू कुमार की तरफ देखने लगी।
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युवायोगी जम्बूकुमार
जम्बू ने हँसते हुए कहा
| जम्बू कुमार ने कहा-
रियाया परन्तु आपको मालूम है।
आम की यह रात आपके स्नेह और विश्वास का सूत्र
तोड़ने की रात भी है। नहीं! स्वामी! ऐसा नहीं कहिए...
आपको मालुम ही है, कल प्रातःकाल का सूर्योदय मेरे जीवन का आत्मोदय होगा। मैंने गणधर सुधर्मा स्वामी के पास दीक्षा लेने का निश्चय किया है।
सभी पत्नियाँ उदास स्वर में बोलीं।
यह सुनकर समुद्रश्री ने कहा
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पन्नश्री बोली
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स्वामी, आप इन सुखमय भोगों को क्यों त्याग रहे हैं?
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स्वामी, जब आपने भोगों का स्वाद चखा ही महीं हैं तो इनके परिणाम का कैसे पता
चला आपको?
भोग आत्मा का पतन करने वाले हैं। भोग प्रारम्भ में मधुर लगते हैं, किन्तु भोगों का फल हमेशा ही दुःखदायी होता है।।
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जम्बूकुमार
ने उदाहरण देकर बताया
जैसे एक तेज धार वाली छुरी पर शहद का लेप किया हुआ हो, अबोध बालक के हाथ में आने पर वह उस छुरी को चाटने लगता है।
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युवायोगी जम्बूकुमार
छुरी चाटने से जीभ कट जाती है, बालक रोने लगता है, क्यों कि वह अज्ञानी होता है।
किन्तु एक समझदार व्यक्ति तो छुरी को जीभ से बिना चखे ही उसका परिणाम जानता है, क्या वह जीभ से चाटने की मूर्खता कर सकता है ?
नहीं ! उसे तो पता है।
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युवायोगी जम्बूकुमार
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जम्बूकुमार का पत्नियों के साथ यह वार्तालाप चल रहा था। उस समय महल के नीचे के सभी कक्ष बन्द हो चुके थे। नौकर-चाकर भी सो चुके थे।
इसी प्रकार मैंने भी गणधर सुधर्मा स्वामी का उपदेश सुनकर यह मान लिया है कि संसारविषयभोग में लिप्त होने वाला प्राणी पापकर्म करके नरक आदि दुर्गति में घोर कष्ट पाता है। मैं जानबूझ
कर इस दल-दल में क्यों फँसू?
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उन दिनों मगध में प्रभव नाम के तस्कर सम्राट का भारी आतंक छाया हुआ था। पहाड़ियों के बीच उसके गुप्त अड्डे थे। एक दिन गुप्तचरों ने प्रभव को सूचना दी
सरदार ! राजगृह के सबसे धनाढ्य सेठ ऋषभदत्त के इकलौते पुत्र जम्बू का आज आठ बड़े सेठियों की आठ कन्याओं के साथ विवाह होगा, सुना है।९९ करोड़ का दहेज आने वाला है।
वाह, हमारे भी वारे न्यारे हो जायेंगे।
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प्रभव ने सभी को तैयार होने का आदेश दिया।
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युवायोगी जम्बूकुमार
रात का अन्धकार गहराने पर एक साथ ५०० चोरों ने सेठ ऋषभदत्त के भवन पर धावा बोल दिया। चोरों के सरदार प्रभव ने अवस्वापिनी विद्या का प्रयोग किया, भवन में पहरेदार आदि जो व्यक्ति जाग रहे थे सभी गहरी नींद में सो गये। फिर हाथ उठाकर तालोद्घाटिनी विद्या का प्रयोग किया
अरे ! वाह यहाँ तो हीरे-मोती जवाहरात अन की तरह बिखरे पड़े हैं।
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सभी बंद ताले तड़ातड़ खुल गये।
देखा, सोने की मोहरों के ढेर लगे
हुए
हैं।
बको मत, चुपचाप गठरियाँ बाँधों...
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५०० चोर दहेज में आये धन की गठरियाँ बाँधने में जुट गये।
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चोरों के सामान बाँधने की खटर-पटर सुनकर जम्बू कुमार ने झरोखे में से झांका। उसे समझते देर नहीं लगी कि घर में चोर घुस आये हैं। उसने ऊपर से ही चोरों को ललकारा
तभी सब चोर चिल्लाने लगे
रुको ! कहते ही चोर जहाँ खड़े थे, वहीं ठहर गये। जैसे उनके हाथ-पैर चिपक गये हों।
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युवायोगी जम्बूकुमार
अरे रुको ! कौन हो तुम! इस कचरे को बाँधकर कहाँ ले जा रहे हो, रुको !
सरदार ! हमें छुड़ाओ। हमारे हाथ-पैर चिपक गये हैं....
यह देवकुमार जरूर सेर पर सवा सेर है। तभी तो मेरा काला जादू इस पर नहीं चला। उल्टा मेरे सभी साथियों को स्तम्भित कर दिया इसने ?
प्रभव भौंचक्का होकर ऊपर देखने लगा
कौन है यह देवकुमार मेरी विद्या का इस पर
कोई प्रभाव नहीं पड़ा ? यह जग क्यों रहा है?
प्रभव सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर जम्बू कुमार के सामने पहुँचा। जम्बूकुमार का तेजस्वी मुख देखते ही उसका मस्तक झुक गया, बोला
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श्रेष्ठी पुत्र ! मैं जयपुर नरेश विंध्यराजे का बड़ा पुत्र प्रभव हूँ। जन्म से राजपुत्र, परन्तु कर्म से तस्कर हूँ । आपके साथ मैत्री का हाथ बढ़ाना चाहता हूँ ।
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मेरी दो विद्याएँ आप रकारले लीजिए और अपनी |
४) दो विद्याएँ मुझे दे । क्या चाहते
दीजिये। हो?
किस विद्या की बात करते हो प्रभव!
आपने अपनी स्तंभिनी विद्या से मेरे साथियों के हाथ-पैर चिपका दिये हैं। अब मोचिनी विद्या से
छुड़वा दीजिये...
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और ये दोनों विद्याएँ मुझे सिखा दें। मैं अपनी अवस्वापिनी (सुलाने) और तालोद्घाटिनी (ताला खोलने) की विद्याएँ आपको सिखा देता हूँ।
जम्बूकुमार हँसते बोले- प्रभव ! न तो मैं कोई
विद्या जानता हूँ और न ही मुझे तुम्हारी विद्याओं की जरूरत है ! मेरे लिए तो यह सब धन-वैभव मिट्टी के ढेर तुल्य है!
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प्रभव खूब जोर से हँसा
वाह श्रेष्ठी पुत्र ! छोटी उम्र में भी बहुत चतुर हो तुम ! जिस धन को मनुष्य प्राणों से भी ज्यादा प्यारा मानता है तुम उसे मिट्टी
कहकर मुझे ही भरमा रहे हो?
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युवायोगी जम्बूकुमार
प्रभव ! यही तो तुम्हारी और मेरी समझ का अन्तर है। तुम राजपुत्र होकर भी चोरी जैसा नीच कर्म कर रहे हो, केवल धन के लिए.....
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और मैं, कल प्रातः इस धन का त्याग करके मुनि दीक्षा लेने वाला हूँ।
जम्बूकुमार की बातों से प्रभव का मन बदल गया। वह कुछ देर तक सोचता रहा। फिर निर्णायक स्वर में बोला
श्रेष्ठीपुत्र, ठीक कह रहे हैं आप। इस धन के मोह ने ही तो मुझे राजकुमार से चोर बना दिया। शान से जीने वाला आज वनों में छुप-छुप कर पशुओं जैसा जीवन बिता रहा हूँ। मैं भी अब इस धन को मिट्टी समझ कर त्याग देता हूँ । आपके साथ मैं भी मुनि बनूँगा ।
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धन्य है प्रभव तुम्हे ! सुबह के भटके शाम को लौट आये। अब अपने साथियों को भी समझाओ।
आप इन्हें मुक्त तो कीजिये। मैं इन सबसे बात करता हूँ।
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तभी नीचे से आवाज आई
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प्रभव ने कहा
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सरदार ! हम सब छूट गये। आ जाओ ! चलो... /
युवायोगी जम्बूकुमार
प्रभव सीढ़ियों से नीचे उतरकर आया। अपने सभी साथियों से कहा
जम्बूकुमार ठीक कहते हैं। इस धन के लालच ने हमें चोर और हत्यारा बना दिया, वरना हम भी सुखी जीवन जीते... अब मैं चोरी नहीं करूँगा ।
रुक जाओ !
यह धन कोई नहीं उठायेगा।
क्या बात हो गई सरदार। ऊपर वाले जादू दिया आप पर!
प्रभव ने मुनि बनने का अपना निश्चय बताया तो सभी ने कहा
सरदार, हम भी आपका साथ देंगे। जिस रास्ते आप चलोगे उसी रास्ते हम भी चलेंगे....
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युवायोगी मम्बूकुमार मम्बूकुमार वापस महलों में आ गये और पत्नियों से बातचीत करने बैठ गये। पमश्री नाम की दूसरी पत्नी ने कहा
जम्बूकुमार हँसकर बोल।।
वानर को कैसे पछताना पड़ा? बताओ तो सही!
प्राणनाथ ! आपको इस जन्म में सब सुख सुविधाएँ मिली हैं। इन्हें यूँ ही छोड़कर अगले जन्म के सुखों के लिए लालायित हो रहे हैं.... कहीं उस वानर की तरह आपको भी हाथ
मल-मल कर पछताना न पड़ें...?
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पम्मश्री ने कहानी सुनाते हुए कहा-किसी जंगल में एक इच्छापूरण द्रह (सरोवर) था उसके किनारे पर एक बड़ा वृक्ष था जिस पर कोई बन्दर बन्दरिया बैठे थे।
बन्दर ने एक डाली से दूसरी डाली पर छलाँग लगाई...
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युवायोगी जम्बूकुमार ...किन्तु वह डाल चूक गया। और द्रह में जा गिरा।
यह देखकर बन्दरिया ने भी छलाँग लगाई।
द्रह के दिव्य जल के प्रभाव से बन्दर एक सुन्दर युवक बन गया। E
और वह भी सोलह वर्ष की सुन्दरी बन गई। द्रह से बाहर निकलकर युवक (बन्दर) नेअपनी पत्नी (बन्दरिया) से कहा
यह द्रह कितना चमत्कारी है, कि डुबकी लगाते ही हम बन्दर से सुन्दर मानव बन गये। अब. अगर एक डुबकी और लगायें तो मानव से देव भी बन जायेंगे।
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पत्नी (बन्दरिया) ने टोका
प्रिय ! ऐसा मत करो। सुन्दर मानवदेह मिल गई, बहुत है। इसी में सुख-सन्तोष मानो, अधिक लोभ करना बुरा होता है।
युवायोगी जम्बूकुमार
बन्दर ने दुबारा छलाँग लगा दी। डुबकी लगाते ही वापस बन्दर बन गया। उसने फिर बार-बार छलाँग लगाई, परन्तु वापस मनुष्य नहीं बन सका। अब वह सिर पीट-पीटकर रोने लगा।
यह मैंने क्या कर दिया।
बन्दर के मन में देव बनने का लालच छूट रहा था, वह बोला
तुम मूर्ख हो, अधिक से अधिक के लिए प्रयत्न करते रहना ही समझदारी है।
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उसी समय जंगल में शिकार करने एक राजा आया। उसने तालाब पर खड़ी सुन्दरी को देखा।
वाह क्या रूप-यौवन है ? इसे ले चलो, हम अपनी महारानी बनायेंगे....
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बन्दर खिसियाकर राज-सेवकों पर झपटा, तो उन्होंने उसी रस्सी से बाँध दिया, और एक मदारी को सौंप दिया।
युवायागा जम्बूकुमार
हाय, यह तो वहीं मेरी बन्दरिया है।
एक दिन मदारी बन्दर को उसी राजा के महल में तमाशा दिखाने के लिये ले गया। बन्दर ने रानी के भेष में बैठी अपनी बन्दरिया को पहचान लिया। उसे देखकर बन्दर को बीती बातें याद आ गईं और वह सिर पीट-पीटकर रोने लगा।
मदारी ने डंडे मार-मारकर बंदर को नाचना सिखाया। वह गाँव-गाँव घूम-घूमकर बन्दर को नचाकर लोगों को तमाशा दिखाता।
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| कहानी सुनाकर पद्मश्री ने कहा
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छकुल
युवायोगी जम्बूकुमार
स्वामी, देव बनने के लालच में जैसे बन्दर ने अपनी मानवी काया खो दी, पत्नी भी खो दी और जन्मभर पछताता रहा। मोक्ष-सुख पाने के लालच में कहीं आप अपने मानवी सुख खोकर इसी प्रकार न पछतायें.....
पद्मश्री की कहानी सुनकर जम्बूकूमार मुस्कराये। फिर बोलेआर्य बाला ! सुखों के लिए पछताता वह है जिसके मन में तृष्णा हो, बन्दर के मन में सुखों की तृष्णा थी,
उसी के कारण वह जन्म भर पछताया। मैं भी तुम्हें अंगारकारक की कहानी सुनाता हूँ... सुनो....
ओह ! प्यास के मारे गला सूखता ही जा रहा है।
एक कोयला बनाने वाला (अंगारकारक) था। वह जंगल में वृक्षों को जला-जलाकर कोयला बनाता था। एक बार गर्मी के मौसम में कोयला बनाने के लिए वह लकड़ियाँ जला रहा था। भीषण गर्मी के कारण उसे तीव्र प्यास लगी। उसके पास घड़े में जितना पानी था धीरे-धीरे सब पी गया, फिर भी प्यास नहीं बुझी।
आठों रमणियाँ उत्सुक होकर जम्बूकुमार की कहानी सुनने लगी।
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युवायोगी जम्बूकुमार प्यास के मारे वह इधर-उधर पानी की तलाश उसने स्वप्न देखा, कि वह प्यास से पीड़ित करता हुआ एक विशाल वृक्ष के नीचे पहुँच हुआ कुओं, बावड़ी तालाब आदि पर घूमगया।
घूमकर पानी पी रहा है। ANA Mosjay
1940
कितनी शान्ति महसूस हो
रही है।
ठण्डी हवा और शीतल छाया के कारण उसे नींद की झपकी लग गई।
समूचा पानी पी लेने पर भी प्यास नहीं बुझ रही है।
तभी नींद खुली, तो वह एक बावड़ी के भीतर उतरकर अंजुली में पानी भरने की कोशिश करने लगता। परन्तु बावड़ी में पानी की जगह कीचड़ था। कीचड़ उसके हाथों पर लग गया।
कहानी सुनाकर जम्बूकुमार ने पम श्री की तरफ देखा
बताओ; कुएं और तालाब के पानी
से भी जिसकी प्यास नहीं बुझी हो। क्या कीचड़ से उसकी प्यास
बुझ सकती है?
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नहीं ! यह सम्भव
ही नहीं है।
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वह जीभ से उसी कीचड़ को चाट कर प्यास बुझाने की चेष्टा करता रहा...
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जम्बूकुमार ने हँसते हुए कहा
हमारा यह जीव (आत्मा) अनेक जन्मों में चक्रवर्ती, देव, देवेन्द्रों के दिव्य सुख भोगकर भी तृप्त नहीं हुआ तो कीचड़ के समान मानव जीवन के तुच्छ सुख भोगने पर कैसे तृप्त हो, सकता है?
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युवायोगी जम्बूकुमार
जम्बूकुमार के तर्क पर सभी रमणियाँ मौन होकर देखने लगीं। जम्बूकुमार ने अपना आशय स्पष्ट करते हुए कहा
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| इस प्रकार रातभर जम्बूकुमार और आठों स्त्रियों के बीच कहानियाँ और तर्क वितर्क चलते रहे। अन्त की युक्तियों से सभी का मोह भंग हो गया। उन्होंने स्वीकार किया
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देवियों ! भोगों से मन की तृष्णा कभी भी शान्त नहीं हो सकती। भोग से विरक्ति होने पर ही मन को शान्ति मिलेगी और उसका एक ही मार्ग है, संयम ! त्याग !
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आर्य पुत्र ! आपके ज्ञान पूर्ण वैराग्य से हमारा मन भी जाग उठा है। अब हमें भी भोगों से विरक्ति हो गई। हम सभी आपके साथ संयम दीक्षा लेंगी...
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जम्बूकुमार
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युवायोगी जम्बूकुमार
जम्बूकुमार ने कहा
इधर प्रातः जम्बूकुमार ने माता-पिता के चरणस्पर्श किये तो माता ने पूछा
पुत्र ! अब तो तेरा वह विचार नहीं रहा न...?
यदि आपका निश्चय पक्का है, तो फिर
अपने माता-पिता को इसकी सूचना दीजिये। उनकी स्वीकृति प्राप्त कर कल हम सब साथ ही प्रव्रजित होंगे...
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माँ, अब तो मैं अकेला नहीं, किन्तु आपकी आठों पुत्र वधुयें भी इसी पथ का
अनुसरण करेंगी...
माता आश्चर्य के साथ देखने लगी।
पिता ने कहा
तब तक राजगृह में घर-घर में यह खबर फैल चु लोग एक दूसरे को बताने लगे
वैराग्य की उम्र तो हमारी है, हमें भी जागना चाहिए... पर हम अब
तक सोये ही रहे।
अभी क्या हुआ है जी ! जब जागे तभी । सबेरा, जब नवविवाहित तरुण पुत्र और पुत्रवधुएँ संसार के भोग त्यागकर संयम मार्ग पर बढ़ रहे हैं, तो हम बुढ़ापे में इस
कीचड़ में क्यों फँसे रहें...
सेठ ऋषभदत्त का इकलौता पुत्र / इससे भी बड़ा आश्चर्य की जम्बूकुमार अपार वैभव का
बात यह है कि उसकी त्याग कर दीक्षा ले रहा है?
आठों नवविवाहिता भी दीक्षा
को तैयार हो गईं हैं... अरे, उनके माता-पिता भी संसार त्यागकर दीक्षा ले रहे हैं..
भासंसा
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युवायोगी जम्बूकुमार उसी समय मगधपति महाराज कूणिक सेठ ऋषभदत्त के घर पर पहुंचे और जम्बूकुमार का अभिवादन करते हुए बोले
abo कुमार धन्य है आपका वैराग्य ! हम आपके इस कठोर पथ का अनुसरण नहीं कर सकते,
50000 परन्तु हृदय से इसका अनुमोदन अवश्य करते प्रकार
हैं।' मेरे लिए कोई कार्य हो तो... महाराज ! त्याग पथ पर
बढ़ने वालों को आप सहयोग देते रहें यह भी
तो उत्तम कार्य है।
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तभी तस्कर सम्राट प्रभव अपने ५०० साथियों के साथ दीक्षा के लिए तैयार होकर वहाँ आ पहुंचा। उसने जम्बूकुमार को, फिर महाराज कूणिक को नमस्कार किया। कूणिक आश्चर्यपूर्वक प्रभव की ओर देखने लगे। तभी जम्बूकुमार ने कहा
प्रभव !! यहाँ महाराज ! यह है प्रभव ! किसी समय का)
इस रूप में...? तस्कर सम्राट् ! इसने आपके बहुत DDIOSDADARI Ayo
अपराध किये हैं, परन्तु...
कूणिक चौंक कर देखते रहे। प्रभव का नाम सुनते ही सैनिक चौकन्ने हो गये|IM
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महाराज ! इसने कल रात मेरे भवन में चोरी करने का प्रयास किया, परन्तु मेरे विचार सुनकर इसका भी हृदय बदल गया है। यह अपने ५०० साथियों सहित दीक्षा लेने के लिए तैयार हुआ है।
वाह ! अद्भुत है आपकी वाणी
का प्रभाव !
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कूणिक ने नम्र भाव से प्रभव को कहा
युवायोगी जम्बूकुमार
महानुभाव ! मेरे क्षमादान के लिए तो अब कोई अवकाश ही कहाँ रह गया है? आपने तो स्वयं ही सब कुछ त्याग दिया है। फिर भी मैं आपके सब अपराध क्षमा करता हूँ। आप निर्विघ्न रूप में श्रमण दीक्षा ग्रहण करें।
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महाराज ! आपसे मेरा एक अनुरोध है-यह प्रभव अपने साथियों सहित दीक्षा ग्रहण करने को तैयार हुआ है। इसलिए इसके पिछले सब अपराध क्षमा कर दें।
तभी जनता ने जयनाद किया
वैरागी जम्बूकुमार की जय !
महाराज कूणिक की जय !
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युवायोगी जम्बूकुमार
इसके बाद जम्बूकुमार की शोभायात्रा प्रारम्भ हुई। सबसे आगे महाराज कूणिक अपनी चतुरंगिणी सेना सहित चल रहे थे और उनके पीछे जम्बूद्वीप का अधिष्टाता अनाधृत देव अपने दिव्य वैभव के साथ सम्मिलित था। जम्बूकुमार एक शिविका में बैठे हुए थे। पीछे आठों रमणियाँ, उनके पीछे उनके माता-पिता फिर प्रभव अपने ५०० साथियों सहित चल रहा था और उसके पीछे विशाल जनसमूह जय नाद करता हुआ राजगृह नगर में घूमती हुई शोभायात्रा गुणशील उद्यान में पहुँची।
वैराग्यमूर्ति जम्बूकुमार की जय !
136
1022
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५२६ व्यक्तियों के साथ जम्बूकुमार ने गणधर सुधर्मा स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की।
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स्वामी की जय !
समाप्त
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पत्नी
ii: ॐ
विशेष ज्ञातव्य जम्बूकुमार का जीव पूर्व भव में विद्युन्माली नामक समृद्धिशाली देव था। भगवान महावीर के निर्वाण से १६ वर्ष पूर्व उसने राजगृह में भगवान की वन्दना की। तब सम्राट श्रेणिक के प्रश्न के उत्तर में भगवान ने बताया-यह देव आज से 6वें दिन स्वर्ग से च्यवकर श्रेष्ठी ऋषभदत्त की धारिणीदेवी की कुक्षि से पुत्र रूप में उत्पन्न होगा। जम्बूकुमार नाम से यह प्रसिद्ध होगा। भरत क्षेत्र में अन्तिम केवली होगा। इस घटना से तथा आचार्य हेमचन्द्र आदि के कथनानुसार भगवान महावीर के निर्वाण के १६ वर्ष पूर्व जम्बूकुमार का जन्म हुआ! तथा निर्वाण के कुछ ही दिनों बाद आर्य सुधर्मा के पास १६ वर्ष की | आयु में दीक्षा ग्रहण की। जम्बूकुमार की आठ पत्नियाँ व उनके माता-पिता के नाम इस प्रकार है
पिता
माता समुद्रश्री समुद्रप्रिय
पभावती पम श्री . समुद्रदत्त
कमलमाला पभसेना सागरदत्त
विजयश्री कनक सेना कुबेरदत्त
जयश्री जयसेना कुबेरसेन
कमलावती कनकश्री श्रमणदत्त
सुषेणा कनकवती वसुषेण
वीरमती - जयश्री
वसुपालित
जयसेना जम्बूकुमार सहित दीक्षित होने वाले व्यक्तियों के नाम१ जम्बूकुमार ५०० प्रभव और साथी
८ पत्नियाँ १६ पत्नियों के माता-पिता
र जम्बूकुमार के माता-पिता _= ५२७ कुल • दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में प्रभव के स्थान पर विधुच्चोर का नाम उल्लेख है।
आर्य जम्बू स्वामी का समयजन्म : वीर निर्वाण के १६ वर्ष पूर्व दीक्षा : वीर निर्वाण के प्रथम वर्ष आचार्यपद: वीर निर्वाण संवत् २०वीं की समाप्ति पर केवलज्ञान : वीर निर्वाण के २० वर्ष बाद (आर्य सुधर्मा के निर्वाण पश्चात) निर्वाण : वीर निर्वाण के ६४ वर्ष पश्चात् ४६२ ईस्वी पूर्व (८0 वर्ष की आयु में) जम्बू स्वामी के निर्वाण के साथ ही 90 विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियों का विच्छेद हुआ। 9. मनःपर्यव ज्ञान
२. परमावधि ज्ञान . ३. पुलाक लब्धि ४. आहारक शरीर ५. क्षपक श्रेणी
६. उपशम श्रेणी जिनकल्प
८. तीन प्रकार के विशिष्ट चारित्र ९. केवल ज्ञान
90. मुक्ति मगन
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वार्षिक सदस्यता फार्म मान्यवर, ___मैं आपके द्वारा प्रकाशित चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे निम्नलिखित वर्षों के लिए सदस्यता प्रदान करें।
(कृपया बॉक्स पर 7 का निशान लगायें) - तीन वर्ष के लिये अंक 34 से 66 तक (33 पुस्तकें) 540/। पाँच वर्ष के लिये अंक 12 से 66 तक (55 पुस्तकें) 900/. दस वर्ष के लिये अंक 1 से 108 तक (108 पुस्तकें) 1,800/मैं शुल्क की राशि एम. ओ./ड्राफ्ट द्वारा भेज रहा हूँ। मुझे नियमित चित्रकथा भेजने का कष्ट करें। नाम (Name)(incapital letters) पता (Address)
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पिन कोड अवश्य लिखें। चैक/ड्राफ्ट/एम.ओ. निम्न पते पर भेजेंSHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282 002. PH.: 0562-351165
दिवाकर चित्रकथा की प्रमुख कड़ियाँ 1. क्षमादान
16. राजकुमार श्रेणिक
30. तृष्णा का जाल 2. भगवान ऋषभदेव
17. भगवान मल्लीनाथ
31. पाँच रत्न 3. णमोकार मन्त्र के चमत्कार
18. महासती अंजना सुन्दरी
32. अमृत पुरुष गौतम 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ
19. करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) 33. आर्य सुधर्मा 5. भगवान महावीर की बोध कथायें
20. भगवान नेमिनाथ
34. पुणिया श्रावक 6. बुद्धि निधान अभय कुमार
21. भाग्य का खेल
35. छोटी-सी बात 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ
22. करकण्डू जाग गया (प्रत्येक बुद्ध) 36. भरत चक्रवर्ती 8. किस्मत का धनी धन्ना
23. जगत् गुरु हीरविजय सूरी
37. सद्दाल पुत्र 6-10 करुणा निधान भ. महावीर (भाग-1,2) 24. वचन का तीर
38. रूप का गर्व | 11. राजकुमारी चन्दनबाला
25. अजात शत्रु कूणिक
39. उदयन और वासवदत्ता |-12. सती मदनरेखा
26. पिंजरे का पंछी
40. कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य 13. सिद्ध चक्र का चमत्कार
27. धरती पर स्वर्ग
41. कुमारपाल और हेमचन्द्राचार्य 14. मेघकुमार की आत्मकथा
28. नन्द मणिकार (अन्त मति सो गति) 42. दादा गुरुदेव जिनकुशल सूरी 15. युवायोगी जम्बूकुमार
29. कर भला हो भला
43. श्रीमद् राजचन्द्र
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एक बात आपसे भी.........
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सम्माननीय बन्धु,
सादर जय जिनेन्द्र !
जैन साहित्य में संसार की श्रेष्ठ कहानियों का अक्षय भण्डार भरा है। नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर, शिक्षाप्रद, रोचक कहानियों में से चुन-चुनकर सरल भाषा-शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक छोटा-सा प्रयास हमने गत चार वर्षों से प्रारम्भ किया है।
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इन चित्रकथाओं के माध्यम से आपका मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही जैन इतिहास संस्कृति, धर्म, दर्शन और जैन जीवन मूल्यों से भी आपका सीधा सम्पर्क होगा।
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___ आप इसके तीन वर्षीय (33 पुस्तकें), पाँच वर्षीय (55 पुस्तकें) व दस वर्षीय (108 पुस्तकें) सदस्य बन सकते हैं।
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आपका नोट-वार्षिक सदस्यता फार्म पीछे है।
श्रीचन्द सुराना 'सरस'
सम्पादक SHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7. AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282 002. PH.: 0562-351165
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500.00 भक्तामर स्तोत्र (जेबी गुटका) 18.00 सचित्र तीर्थंकर चरित्र 200.00 सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र 500.00 सचित्र मंगल माला सचित्र आचारांग सूत्र 500.00 सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र 500.00 सचित्र भावना आनुपूर्वी 21.00
चित्रपट एवं यंत्र चित्र सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्र 25.00
श्री गौतम शलाका यंत्र चित्र
15.00 भक्तामर स्तोत्र यंत्र चित्र
25.00
श्री सर्वतोभद्र तिजय पहत्त यंत्र चित्र श्री वर्द्धमान शलाका यंत्र चित्र
15.00 श्री घंटाकरण यंत्र चित्र
25.00 - श्री सिद्धिचक्र यंत्र चित्र 20.00 श्री ऋषिमण्डल यंत्र चित्र
20.00
20.00
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बुद्धि का चमत्कार
कम्बल किसका ?
सर्दी का समय था। दो पथिक भिन्न-भिन्न दिशाओं से आये । एक तालाब पर दोनों स्नान करने के लिए रुके। एक के पास ओढ़ने के लिए ऊनी कम्बल था, दूसरे के पास सूती वस्त्र था। सूती कपड़े वाले ने ज्यों ही कम्बल देखा, उसका मन ललचा गया। वे उसे प्राप्त करना चाहता था । दोनों स्नान करने के लिए तालाब में उतरे, किन्तु जिसके मन में कम्बल लेने की भावना थी उसने अत्यन्त शीघ्रता से स्नान किया और कम्बल लेकर चलता बना। कम्बल के मालिक ने जब देखा कि वह कम्बल लेकर जा रहा है तो उसने विचारा कि भूल हो गई है। उसने आवाज दी, पर भूल अनजान में नहीं हुई थी, अतः वह उसकी आवाज को सुना-अनसुना कर आगे बढ़ गया ।
कम्बल का मालिक तालाब से निकला । सूती कपड़ा लेकर वह भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा । बहुत दूर जाने पर उसने चोर को पकड़ लिया तथा उससे अपना कम्बल छीनने लगा ।
चोर ने उसे डाँटते हुए कहा- तुम मेरे कम्बल पर अधिकार जमाना चाहते हो। कम्बल तुम्हारा नहीं, मेरा है। दूसरे की अच्छी वस्तु देखकर उसे हड़पना क्या मानवता है ? तुम कहते हो कि कम्बल मेरा है पर तुम्हारे पास इसका क्या प्रमाण है ? प्रमाण है तो बताओ ?
चोर, साहूकार बनकर उसी पर रौब जमाने लगा। कम्बल के मालिक ने अनेक प्रकार से उसे समझाने का प्रयास किया, पर उसे सफलता नहीं मिली।
दोनों आपस में झगड़ते हुए न्याय के लिए राजा के पास पहुँचे। साक्षी के अभाव में राजा को न्याय करने में कठिनता हो रही थी । उसी समय राजा को एक उपाय सूझा। राजा ने अपने विश्वस्त अनुचर के द्वारा दोनों के बालों में कंघी करवाई । कम्बल के असली मालिक के सिर में ऊन के कुछ रेशे निकले, किन्तु चोर के सिर में से कुछ भी नहीं निकला। राजा ने अपना निर्णय सुना दिया। चोर को प्रतिष्ठा और कम्बल दोनों से वंचित होना पड़ा। राजदण्ड का वह भागी हुआ सो अलग।
बुद्धि की धार बहुत पैनी होती है।
कथासार–बालको ! सदैव ही अपनी नीयत को साफ रखो। किसी दूसरे की वस्तु देखकर कभी ललचाना नहीं चाहिए। जो तुम्हारे पास है उसी से सन्तुष्ट रहो ।
ACHARYA SRI KAILASSAGARSURI GYANMANDIR
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________________ * अत्यन्त लोकप्रिय सबसे अधिक बिकने वाली ck विश्व प्रसिद्ध सचित्र पुस्तकें सचित्र णमोकार महामंत्र सचित्र तीर्थंकर चरित्र (हिन्दी, अंग्रेजी) (हिन्दी/अंग्रेजी अनुवाद) सचित्र भक्तामर स्तोत्र (हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी) (ऋद्धि, मंत्र, यंत्र सहित) आगम ज्ञान गंगा रशित तीर्थकर चरित्र and inter traine पोलि पोपरियार कारण मेले हिन्दी संस्करण 125/अंग्रेजी संस्करण 150/सचित्र उपासना कक्ष मूल्य 200/भाव करे भव पार नचित्र भक्तामर स्तोत्र BHAKTAMAR SIOTRA दे वासनाक मूल्य 325/ मूल्य 175/ भाव करे मत पार Januatihardencineral मूल्य 150/ भक्तामर महिमा (साधना की कुंजी) सचित्र मंगल माला riveSpa समयमा अचानक भक्तामर स्तोत्र (पॉकेट साइज) माला मूल्य 100/अन्तकृद्दशा महिमा SKSA मूल्य 25/ भक्तामर-महिमा मूल्य 40/ मूल्य 20/ अत्तकददशा महिमा राजकुमार वर्धमान तनाव और हमारा स्वास्थ्य नशाकुमा तनाव और हमारा स्वास्थ्य मूल्य 50/सचित्र पार्श्व कल्याण-कल्पतरू सचित्र भावना आनुपूर्वी मूल्य 100/ मूल्य 25/ भावना आनुपूर्वी बापाचकल्याण-कल्पना मूल्य 30/ मूल्य 21/पुस्तकें मंगाने के लिए निम्न पते पर ड्राफ्ट/एम.ओ. भेजें। श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम.जी.रोड, आगरा-282002. Ph. (0562) 351165 or Private Personal Use Only www.jainelibrarytorg