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मेरी दो विद्याएँ आप रकारले लीजिए और अपनी |
४) दो विद्याएँ मुझे दे । क्या चाहते
दीजिये। हो?
किस विद्या की बात करते हो प्रभव!
आपने अपनी स्तंभिनी विद्या से मेरे साथियों के हाथ-पैर चिपका दिये हैं। अब मोचिनी विद्या से
छुड़वा दीजिये...
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और ये दोनों विद्याएँ मुझे सिखा दें। मैं अपनी अवस्वापिनी (सुलाने) और तालोद्घाटिनी (ताला खोलने) की विद्याएँ आपको सिखा देता हूँ।
जम्बूकुमार हँसते बोले- प्रभव ! न तो मैं कोई
विद्या जानता हूँ और न ही मुझे तुम्हारी विद्याओं की जरूरत है ! मेरे लिए तो यह सब धन-वैभव मिट्टी के ढेर तुल्य है!
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प्रभव खूब जोर से हँसा
वाह श्रेष्ठी पुत्र ! छोटी उम्र में भी बहुत चतुर हो तुम ! जिस धन को मनुष्य प्राणों से भी ज्यादा प्यारा मानता है तुम उसे मिट्टी
कहकर मुझे ही भरमा रहे हो?
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