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बन्दर खिसियाकर राज-सेवकों पर झपटा, तो उन्होंने उसी रस्सी से बाँध दिया, और एक मदारी को सौंप दिया।
युवायागा जम्बूकुमार
हाय, यह तो वहीं मेरी बन्दरिया है।
एक दिन मदारी बन्दर को उसी राजा के महल में तमाशा दिखाने के लिये ले गया। बन्दर ने रानी के भेष में बैठी अपनी बन्दरिया को पहचान लिया। उसे देखकर बन्दर को बीती बातें याद आ गईं और वह सिर पीट-पीटकर रोने लगा।
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मदारी ने डंडे मार-मारकर बंदर को नाचना सिखाया। वह गाँव-गाँव घूम-घूमकर बन्दर को नचाकर लोगों को तमाशा दिखाता।
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