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________________ बुद्धि का चमत्कार कम्बल किसका ? सर्दी का समय था। दो पथिक भिन्न-भिन्न दिशाओं से आये । एक तालाब पर दोनों स्नान करने के लिए रुके। एक के पास ओढ़ने के लिए ऊनी कम्बल था, दूसरे के पास सूती वस्त्र था। सूती कपड़े वाले ने ज्यों ही कम्बल देखा, उसका मन ललचा गया। वे उसे प्राप्त करना चाहता था । दोनों स्नान करने के लिए तालाब में उतरे, किन्तु जिसके मन में कम्बल लेने की भावना थी उसने अत्यन्त शीघ्रता से स्नान किया और कम्बल लेकर चलता बना। कम्बल के मालिक ने जब देखा कि वह कम्बल लेकर जा रहा है तो उसने विचारा कि भूल हो गई है। उसने आवाज दी, पर भूल अनजान में नहीं हुई थी, अतः वह उसकी आवाज को सुना-अनसुना कर आगे बढ़ गया । कम्बल का मालिक तालाब से निकला । सूती कपड़ा लेकर वह भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा । बहुत दूर जाने पर उसने चोर को पकड़ लिया तथा उससे अपना कम्बल छीनने लगा । चोर ने उसे डाँटते हुए कहा- तुम मेरे कम्बल पर अधिकार जमाना चाहते हो। कम्बल तुम्हारा नहीं, मेरा है। दूसरे की अच्छी वस्तु देखकर उसे हड़पना क्या मानवता है ? तुम कहते हो कि कम्बल मेरा है पर तुम्हारे पास इसका क्या प्रमाण है ? प्रमाण है तो बताओ ? चोर, साहूकार बनकर उसी पर रौब जमाने लगा। कम्बल के मालिक ने अनेक प्रकार से उसे समझाने का प्रयास किया, पर उसे सफलता नहीं मिली। दोनों आपस में झगड़ते हुए न्याय के लिए राजा के पास पहुँचे। साक्षी के अभाव में राजा को न्याय करने में कठिनता हो रही थी । उसी समय राजा को एक उपाय सूझा। राजा ने अपने विश्वस्त अनुचर के द्वारा दोनों के बालों में कंघी करवाई । कम्बल के असली मालिक के सिर में ऊन के कुछ रेशे निकले, किन्तु चोर के सिर में से कुछ भी नहीं निकला। राजा ने अपना निर्णय सुना दिया। चोर को प्रतिष्ठा और कम्बल दोनों से वंचित होना पड़ा। राजदण्ड का वह भागी हुआ सो अलग। बुद्धि की धार बहुत पैनी होती है। कथासार–बालको ! सदैव ही अपनी नीयत को साफ रखो। किसी दूसरे की वस्तु देखकर कभी ललचाना नहीं चाहिए। जो तुम्हारे पास है उसी से सन्तुष्ट रहो । ACHARYA SRI KAILASSAGARSURI GYANMANDIR Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002814
Book TitleYuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size25 MB
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