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युवायोगी जम्बूकुमार जम्बू कुमार बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था। विद्याध्ययन के सेठ ने कलाचार्य का सम्मान करते साथ-साथ खेल-कूद, संगीत आदि कलाओं में भी उसकी रुचि थी। हुए कहा
आचार्यवर ! वणिक पुत्र को तो। गुरुकुल में कलाचार्य के पास उसने शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा पूर्ण
एक व्यापार कला ही काफी है। | होने पर कलाचार्य जम्बू को लेकर सेठ ऋषभदत्त के पास आये।।
बाकी कला तो मानसिक विकास मिाणाशिामाथि
में सहायक होती है। परीक्षा की सेठ जी, आपका पुत्र ८ वर्ष
क्या जरूरत है...? के अल्प समय में ही ७२ कलाओं में प्रवीण हो गया है। आप चाहें तो इसकी परीक्षा लेकर देख सकते हैं।
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सेठ ने कलाचार्य को धन, वस्त्र आदि से सम्मानित करके विदा कर दिया।
दूसरे ही दिन से राजगृह के बड़े-बड़े धनवान श्रेष्ठियों. के रिश्ते जम्बू कुमार के लिए आने लगे। सेठ ऋषभदत्त ने कन्याओं के चित्र और जन्म-पत्रिकाएँ सेठानी धारिणी के सामने रखते हुए कहा
सेठानी एक-एक करके कन्याओं के चित्र देखती यह तो बहुत सुन्दर है, और रही। यह तो सचमुच रूप की रंभा है।
इस कन्या की आँखें तो देखो कितनी मोहिनी लगती हैं। मैं अपने जम्बू के लिए एक-दो नहीं,
आठ सुन्दरियाँ लाऊँगी।
(लो, अपने जम्बू के लिए
कन्या पसन्द करो!
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