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युवायोगी जम्बूकुमार सेठ ने हँसते हुए कहा- आठ क्या साठ भी लाओ. तो तुम्हे क्या कमी है? परन्तु अपने बेटे से तो पूछ लिया होता?
मेरा जम्बू ! इतना आज्ञाकारी है कि माँ का कहा कभी टाल भी
नहीं सकता। मैंने तो ये आठ
कन्याएँ चुन ली हैं, इनको सम्बन्ध की स्वीकृति भेज दीजिये।
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वाह ! पुत्र ! तू कितना पुण्यवान है। लेकिन यह क्या? तेरे वस्त्रों पर इतनी मिट्टी क्यों लगी हैं? क्या बात है।
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तभी जम्बू कुमार ने आकर माता के चरण स्पर्श किये। माँ ने जम्बू को आशीर्वाद देते हुए पूछा
बेटा, तू कहाँ
गया था?
माँ ! मैं अभी-अभी गणधर सुधर्मा स्वामी का प्रवचन सुनकर आ रहा हूँ।
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कुछ नहीं ! माँ ! प्रवचन सुनकर वापस लौटते समय जैसे ही मैंने नगर द्वार में प्रवेश किया था कि अचानक दरवाजे के ऊपर की बड़ी शिला टूटकर मेरे रथ पर गिर पड़ी। किन्तु भाग्य से मैं बच गया, कुछ भी चोट नहीं लग़ी माँ... केवल रथ का पिछला भाग ही, थोड़ा-सा क्षतिग्रस्त हुआ है।
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