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युवायोगी जम्बूकुमार
जम्बू कुमार ने अपने पिता के चरण छूते हुए कहा
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पिताश्री ! आपकी और माताश्री की इच्छा का सन्मान करके मैं विवाह करने को तैयार हूँ, परन्तु विवाह के बाद दीक्षा अवश्य लूँगा। कन्याओं के घर इसकी सूचना भेज दीजिये।
तुम भी कितनी
तभी उनकी पुत्री समुद्रश्री बीच में बोल उठीमाँ, भोली हो? जानती हो, जब तक भँवरा फूल का रस नहीं पीता, तब तक ही चूँ-चूँ. करता है...।
दूसरे दिन सेठ ऋषभदत्त का दूत सन्देश लेकर समुद्रप्रिय सेठ के घर पहुँचा। संदेश सुनकर वह विचार करने लगे
बेटी, मैं जम्बूकुमार को खूब जानती हूँ। वह कच्चा खिलाड़ी नहीं है। अपने निश्चय का पक्का है। जीवन भर का प्रश्न है, खूब सोच लो.....
ऐसा जँवाई क्या काम का? जो शादी होते ही साधु बन जायेगा. ?
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पिताश्री, मैंने भी मन से उनको अपना पति मान लिया है। अब इस बाज़ी में कौन जीतता है, आप देख लेना...।
दूसरी कन्याओं ने भी अपने माता-पिता को लगभग ऐसा ही उत्तर दिया।
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