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________________ 06 युवायोगी जम्बूकुमार उसी समय मगधपति महाराज कूणिक सेठ ऋषभदत्त के घर पर पहुंचे और जम्बूकुमार का अभिवादन करते हुए बोले abo कुमार धन्य है आपका वैराग्य ! हम आपके इस कठोर पथ का अनुसरण नहीं कर सकते, 50000 परन्तु हृदय से इसका अनुमोदन अवश्य करते प्रकार हैं।' मेरे लिए कोई कार्य हो तो... महाराज ! त्याग पथ पर बढ़ने वालों को आप सहयोग देते रहें यह भी तो उत्तम कार्य है। पOM तभी तस्कर सम्राट प्रभव अपने ५०० साथियों के साथ दीक्षा के लिए तैयार होकर वहाँ आ पहुंचा। उसने जम्बूकुमार को, फिर महाराज कूणिक को नमस्कार किया। कूणिक आश्चर्यपूर्वक प्रभव की ओर देखने लगे। तभी जम्बूकुमार ने कहा प्रभव !! यहाँ महाराज ! यह है प्रभव ! किसी समय का) इस रूप में...? तस्कर सम्राट् ! इसने आपके बहुत DDIOSDADARI Ayo अपराध किये हैं, परन्तु... कूणिक चौंक कर देखते रहे। प्रभव का नाम सुनते ही सैनिक चौकन्ने हो गये|IM 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.002814
Book TitleYuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size25 MB
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