Book Title: Yuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015 Author(s): Rajendramuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 15
________________ युवायोगी जम्बूकुमार जम्बू ने हँसते हुए कहा | जम्बू कुमार ने कहा- रियाया परन्तु आपको मालूम है। आम की यह रात आपके स्नेह और विश्वास का सूत्र तोड़ने की रात भी है। नहीं! स्वामी! ऐसा नहीं कहिए... आपको मालुम ही है, कल प्रातःकाल का सूर्योदय मेरे जीवन का आत्मोदय होगा। मैंने गणधर सुधर्मा स्वामी के पास दीक्षा लेने का निश्चय किया है। सभी पत्नियाँ उदास स्वर में बोलीं। यह सुनकर समुद्रश्री ने कहा MILALILAMILItatus पन्नश्री बोली ZONOONNOM स्वामी, आप इन सुखमय भोगों को क्यों त्याग रहे हैं? UUMILUP DOYOOM स्वामी, जब आपने भोगों का स्वाद चखा ही महीं हैं तो इनके परिणाम का कैसे पता चला आपको? भोग आत्मा का पतन करने वाले हैं। भोग प्रारम्भ में मधुर लगते हैं, किन्तु भोगों का फल हमेशा ही दुःखदायी होता है।। MAN 13 For Private & Personal Use Only wowow.jainelibrary.orgPage Navigation
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