Book Title: Yuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015
Author(s): Rajendramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

Previous | Next

Page 19
________________ चोरों के सामान बाँधने की खटर-पटर सुनकर जम्बू कुमार ने झरोखे में से झांका। उसे समझते देर नहीं लगी कि घर में चोर घुस आये हैं। उसने ऊपर से ही चोरों को ललकारा तभी सब चोर चिल्लाने लगे रुको ! कहते ही चोर जहाँ खड़े थे, वहीं ठहर गये। जैसे उनके हाथ-पैर चिपक गये हों। Oporan JO युवायोगी जम्बूकुमार Jain Education International अरे रुको ! कौन हो तुम! इस कचरे को बाँधकर कहाँ ले जा रहे हो, रुको ! सरदार ! हमें छुड़ाओ। हमारे हाथ-पैर चिपक गये हैं.... यह देवकुमार जरूर सेर पर सवा सेर है। तभी तो मेरा काला जादू इस पर नहीं चला। उल्टा मेरे सभी साथियों को स्तम्भित कर दिया इसने ? प्रभव भौंचक्का होकर ऊपर देखने लगा कौन है यह देवकुमार मेरी विद्या का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा ? यह जग क्यों रहा है? प्रभव सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर जम्बू कुमार के सामने पहुँचा। जम्बूकुमार का तेजस्वी मुख देखते ही उसका मस्तक झुक गया, बोला 17 For Private & Personal Use Only श्रेष्ठी पुत्र ! मैं जयपुर नरेश विंध्यराजे का बड़ा पुत्र प्रभव हूँ। जन्म से राजपुत्र, परन्तु कर्म से तस्कर हूँ । आपके साथ मैत्री का हाथ बढ़ाना चाहता हूँ । www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38