Book Title: Yuvayogi Jambukumar Diwakar Chitrakatha 015
Author(s): Rajendramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 10
________________ यह सुनते ही सेठानी के हाथों के तोते उड़ गये। उसने ' बार-बार जम्बू को देखा और बोली क्या ? Jain Education International युवायोगी जम्बूकुमार धन्य है प्रभु ! आपकी कृपा से मेरी आँखों का तारा कुशल क्षेम आ गया। यदि इस दुर्घटना मेरी मृत्यु हो जाती तो....?. बेटा, यह तो बहुत अच्छा किया, उनके नाम से ही सब संकट टल जाते हैं... जम्बू ने कहा ना ! ना ! बेटा ! ऐसी अशुभ बात मुँह से मत निकाल... 'जम्बू हँसते हुए बोला For Private & Personal Use Only माँ, इस दुर्घटना से बचने के बाद मेरे मन में एक विचार आया। माँ सुनो तो सही, मैं वापस • लौटकर आर्य सुधर्मा स्वामी के दर्शन करने गया। था हाँ, माँ, मेरा भी जन्म भर का संकट टल गया। मैंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का संकल्प ले लिया है। 00000001 www.jainelibrary.org

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