Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Paydhuni Mahavirswami Jain Derasar

View full book text
Previous | Next

Page 389
________________ २८० परिशिष्ट (1) शाही फरमान नं. २ (नकल पातलाइ परवानेरी, इण ठिकाणे नवमोहररी छाप) ॥श्री॥ सेबुजा पर देहरा अरु किल्ला है सो तमाम जैन मारगके यात्राका जगा है, अरु भा(नु चंद्र)ण क्षेत्र (?) सेवड मना करता है अरु किल्लामें देहरा मत करो। पहिला वखतमें भरत चक्रवर्तिने पा(हा)ड पर किल्ला अरु देहरा बनाया। दूसरी वखत सगर चक्रवर्ति 'सोमदेव (जितशत्रु)' के बेटेने पा(हा)ड पर देहरा बणाया। तीसरे वखत राजा जुधिष्ठिर पांडवने पा(हा)ड पर देहरा बणाया। चोथा वखत विक्रमादित्यके एकसो आठ सन्में जावड बनीयेने देहरा बणाया पांचवा वखत १२१३ सन्में मेहता बाहडदे जयसिंह देवके चाकरने पा(हा)ड पर देहरा बणाया। छठा वखत अल्लाउदीनके वखतमें १३०० (१३७१ ?) सन्में समर बनीयेने एक मूरत नवी बनवाइ और जुने देहरेमें रखी। सातवें वखत $ આ ફરમાનની નકલમાં જે સાત ઉદ્ધારોનો ઉલ્લેખ છે તેનું વર્ણન કવિ લાવણ્ય સમય કૃત “શત્રુંજય ઉદ્ધાર” સ્તવનમાં આ પ્રમાણે છે "उद्धार पहिलउ भरत केरु, बीजउ सगरु सुहावए। जीजउ ति पांडव राय जुधिष्ठिर, पुहवी प्रगट करावए ॥ चउथउ ति जावड अनइ बाहड, कराव्युं जग जाणीयइ । उद्धार छठो शाह समरा, तणउ वलिय वखाणीयइ ॥” ( શ્રી વિદ્યા વિજયજી સંપાદિત “પ્રાચીન તીર્થમાલા સંગ્રહ) આ તીર્થમાલામાં ઉપરોક્ત છ ઉદ્ધારોના વર્ણન પછી સાતમો ઉદ્ધાર જે કરમાશાહ ડોસીએ સં. ૧૫૮૭ માં કરાવ્યો તેનો વર્ણન છે. અને જાવડશાહનો ઉદ્ધાર ચોથો હોવાનો કવિ “દેપાલ કૃત “જાવડ–ભાવડ રાસથી ५५ सिद्ध थाय छे, म - "जावड प्रान् वंश सिणगार, सोरठिउ सहजिइ सुविचार। जेहनउ शैजि चउथु उधार, तसु गुण पुहवी न लाभइ पार ॥ १०८ ॥ ( सनी न४ अमा। संग्रडमा छ) જય સોમજી કૃત “કર્મ ચંદ્ર મંત્રિ વંશ પ્રબંધમાં પણ કહે છે "उद्धारान् सप्त चैत्यानां, कारणाद्विदधुः पुरा ।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440