Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Paydhuni Mahavirswami Jain Derasar

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Page 418
________________ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ 3०८ ऋमि ऋमि सहगुरु विचरतां, आया श्रीमुलताणई रे। अति उच्छव आडंबरइ, जयजयकार वखाणई रे ॥१४॥ श्रीजिण०॥ थो(घो)रवाड नानिग तणा, राजा सीमा रंगई रे। पंचनदी साधण तणी, देई खमासण चंगई रे ॥१५॥ श्रीजिण ॥ शुभ दिवसइ मुलताणथी, पांगुरिया गुरुराया रे। संघसहित हिव अनुक्रमइ, पंचनदी तटि आया रे ॥१६॥ श्रीजिण०॥ चंदवेली पत्तन भलइ, उतरीया शुभ ठामई रे। गुणरागी श्रावक भला, सावधान गुरु कामई रे ॥ १७॥श्रीजिण०॥ हाजी फते आलम खान, समाइल देर रे । फतेपुर किहरीरना, उच्च मरोट संमेला रे ॥ १८॥ श्रीजिण० ॥ सीतपुरी उबाबडा, घल्लु जजेवाहण रे । जेसलगिरि देराउरा, भरकर भुट्टे वाहण रे ॥ १९॥ श्रीजिण ॥ पइंत्रीसां गामां तणा, संघ सहु तिहां मिलिया रे। सहगुरु भावइ वांदतां, संघ मनोरथ फलिया रे ॥२०॥ श्रीजिण ॥ आंबिल तप जप साधना, करी आतमसुद्धि सारू रे पूरवविधि सवि साचवी, करी अट्ठम तप वारू रे ॥ २१॥ श्री० ॥ सोलह सइ बावन (१६५२ ) समइ, माहसुदीइ शुभमासई रे । बारसि तिथि पुष्यारकइ, सुंदर मन उल्लासई रे ॥२२॥ श्रीजिण०॥ धूप जाप बलिबाकुला, श्रावक सयल करेई रे।। पाठक वाचक मुणिवरू, श्रावक साथइ लेई रे ॥२३॥ श्रीजिण० ॥ जपता निजगुरु देवता, बइठा बेडी मांहई रे। बेडी हिव चालती, आई नदी प्रवाहई रे ॥२४॥ श्रीजिण ॥ पंचनदी बिच पामीनइ, मंत्र जपइ तिणि वेला रे । सूर वीर साहस पणइ, श्रावक साधु समेला रे ॥२५॥ श्रीजिण ॥ भीम भयंकर अध रातइ, पंचनदी जल पूरई रे। निरधारी बेडी तिहां, राखी लोक हजूरई रे ॥२६॥ श्रीजिण॥

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