Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Paydhuni Mahavirswami Jain Derasar
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યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ
आसूडइरे आस सफल करो, प्रीतम प्राण आधार । वेग मिलो मुझ वालहा!, पूरव प्रेम संभार ॥ संभार पूरव प्रेम प्रीतम!, प्रीति अविचल कीजीयइ। पडिवन्नऊ पालो रोस टालो,सुजस सबल ओ लीजीयह॥ निसि झरइ अमृतनीर निरमल, नीलांणी अवनीयरो। सोलसे किरणे सूर विचरइ, आसू आस सफल करो ॥३॥ कातीडई रे कौतिक गहगह्या, कोमदी महोछव चंग। दिवस दीवाली गुण निलऊ, घर घर हुवइ उछरंग ॥ उछरंग नित नित हुवइ दिन दिन, धवल मंगल अति घणा। घडलीया धूना धमल घर घर, थया रंग वधामणा ॥ श्रीनेमि राजुल मिल्या मुगतइ, सासता सुखतिहां लह्या । कहइ (जिण) चंद चिरि आणंद आणो, काली कौतिक
गहगहा ॥४॥ इति नेम राजुल चउमासिया गीत । ३ जैसलमेर मंडन वीरजिन गीत
(राग नट्टनारायण मिश्र) प्रभु ! तेरी मूरति मोहनगारी, जिन ! तेरी मूरति मोहनगारी शशि अनुकारी अजब समारी, ऊपम कोटि उवारी, प्रभु० ॥१॥ हां हां सदल सकोमल सुंदर सारी, प्रफुलित अधर प्रवाली। नयन कमल दल भाल निहालति, अष्टमि शशि अणुहारी, प्रभु०॥२॥ हां हां जेसलमेरु नयर मुखमंडण, जिण सासन जयकारी। सूरति वीर जिणंदकी द्यो निति, चंदकुं मुगति पियारी, प्रभु० ॥३॥
४ गौतमस्वामी गीत
(राग वेलाउल) श्रीगौतमगुरु गाईयइ, गुणलब्धि भंडार । प्रह ऊठी निति प्रणमीयइ, वंछित (फल) दातार, श्रीगौतम०॥१॥ गौतम गोत्र प्रकाशवा, उदयउ दिनकार । कलिजुग सुरतरु सारीखउ, सहु कहइ संसार, श्रीगौतम० ॥२॥

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