Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Paydhuni Mahavirswami Jain Derasar

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Page 417
________________ ૩૦ परिशिष्ट (७) ગણિ સમયરાજ રચિત यु. प्र. श्रीन्निचंद्रसूरि गुरु-रास श्रीजिण सासण चिरजयउ, श्रीखरतर गणधारो रे । श्रीजिणचंदसूरीसरू, गाइसुं इणि अधिकारो रे ॥ १ ॥ श्री जिण० ॥ सोहम सामि परंपरा, सूरि अनेक प्रकारो रे । चउसट्टिमइ पाटइ जयउ, जुगप्रधान जयकारो रे ॥ २ ॥ श्रीजिण० ॥ श्रीजिन माणिक मुणिवर, पाट उदयगिरि से रे । थाप्या राउल मालदे, प्रतपइ पुण्य पंडूरो रे, ॥ ३ ॥ श्रीजिण० ॥ नाण चरण निरमला, चंदकुलइ गुरु सोहई रे । देसविदेसइ विहरता, भवियण नर बोहई रे ॥ ४ ॥ श्रीजिण० ॥ अनुपम अतिसय गुण भला, श्रवणि सुण्या जिणवारई रे । अकबरसाहि नरेसरू, रंज्यउ चित्तमझारई रे ॥ ५ ॥ श्रीजिण० ॥ आदर करी गुजरातथी, वेगइ गुरु बोलाविया रे । गामागर पुरि विचरता, लाभपुरइ गुरु आया रे ॥ ६ ॥ श्री जिण० ॥ वंदी गुरु देसण सुणी, रंज्यउ अकबर जाणी रे । सात दिवस अमारीना, दीधा धरम पिछाणी रे ॥ ७ ॥ श्रीजिण० ॥ जुगप्रधान बिरुदइ कर्या, जलचर जीव उगार्या रे । अउर लाभ वलि धर्मना, दीधा जस विस्तार्या रे ॥ ८ ॥ श्रीजिण० ॥ श्रीजिणसिंघसूरीसरू, श्रीआचारिज कीधा रे । कर्मचंद मंत्रीसरू, उच्छव करी जस लीधा रे ॥ ९ ॥ श्रीजिण० ॥ अन्न दिवस मुलताणनउ, संघ घणउ तिहां आवइ रे 1 वंदीन उच्छव करी, आदर करी बोलावइ रे ॥ १० ॥ श्रीजि० ॥ मंत्रीसर कर्मचंदनई, संघ सहु अणुसारी रे। शुभशकुनादिक जोईया, लाभ विशेष विचारी रे ॥ ११ ॥ श्रीजिण० ॥ अकबर साहि विदा लही, संघ सहित गुरु चालई रे । सिंधुदेश साधण भणी, चोरउ अरि पालई रे ॥ १२ ॥ श्रीजिण० ॥ पतिसाही तिनि मेवडा, हुकमई साथई आवई रे । जिहां जिहां सहगुरु संचरद्द, जीवदया वरतावई रे ॥ १३ ॥ श्रीजिण० ॥

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