Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Paydhuni Mahavirswami Jain Derasar

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Page 422
________________ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ यु. प्र. जिनचंद्रसूरि गीत (द्वितीय) दूहा - सुमति जिणेसर सुख करण, हरण दुरिय दोभाग । खरतर गछ पति गाइसुं, जासु अधिक सोभाग ॥ १ ॥ चउपइ - देस मंडोवर अतिहि समृद्ध, 'बडलुं ' गाम तिहाँ सुप्रसिद्ध । सा श्रीवंत सिरिआदे नारि, तासु कुखि जिणि लीयड अवतार ॥ १ ॥ ૩૧૩ जसु गरभई माता सुविसाल, दीठ सुपन नालेर रसाल । संवत पनरइ पंचाणवइ, जायउ सुत मुहूरत सुभ लवइ ॥२॥ की सुपन तण सुविचार, होस्यइ पुत्र सही छत्रधार । तिणि सुभ नाम ठव्यउ सुरतान, मात पिता धरि मनि बहुमान ॥३॥ पहुता बीकानरइ सहू, तिहाँ माणिक सूरि खरतर पहू । दीउ निलवट वूरई बाल, सही स होस्यइ गछ प्रतिपाल ॥४॥ माता पिता बूझवि ते लीध, चडोतरइ जसु दीक्षा दीघ । संवत सोलह बारोतरइ, जेसलमेरि सुगुरु पट धरइ ||५|| जिण बल्लम जिम क्रिया कठोर, सूरि मंत्रबलि वाधउ जोर । अणहिल पाटणि जीता वाद, उतार्या कुमतीना नाद ॥ ६ ॥ राय राउल राणा राजान, प्रतिबोध्या ते कुण करइ गान । श्रीजिन कुसल तणइस निधान, बूझविआ दिल्ली सुरतान ॥७॥ देवप्रयोगइ अकबर साहि, युग प्रधान पद दीध ऊमांहिं । बावन्न साधी पंचनदी, सह गुरु सकति सहूअहं वदी ॥८॥ संवत सोलह गुणत्तरइ, कजीयइ पहुता गुरु आगरइ । बूझवि साहि सलेम उदार, कीधउ जिण सासण उद्धार ॥९॥

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