Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रस्तावना पन्यास श्री धरणेन्द्रसागर जी द्वारा रचित 'योगशास्त्र' ग्रन्थ, योगिक प्रक्रियाओं के अनुभूत ज्ञान का विश्लेषणात्मक विवेचन है । विद्वान् लेखक ने बोधगम्य भाषा-शैली में सुन्दर द्रष्टान्तों के माध्यम से दुरूह श्रौर दुस्साध्य समझी जाने वाली योगिक प्रक्रियाओंों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर, इस क्षेत्र में दीर्घावधि से अनुभव की जा रही कमी की सम्पूर्ति का सद्प्रयास किया है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन क्षरण भंगुर और नाशवान् है । अतः ज्ञानी और ध्यानी प्रवृत्ति के पुरुष सदाचार तथा सद्कर्मों के द्वारा जीवन को मुक्तिकामी तथा लोकोपयोगी बनाने का प्रयास करते हैं । सांसारिक कामनाश्रों, तृष्णाओं . तथा विषय-वासनाओं के झंझावातों से भ्रमित श्रौर उत्पीड़ित जीवन को आध्यात्मिकता के विराट् एवम् अनश्वर गंतव्य की ओर उन्मुख करने के साधनों में योग की अप्रतिम भूमिका, अनादिकाल से रही है । भारतीय दर्शनों में सांख्य तथा योग प्राचीनतम माने गए हैं । सांख्य के आदिवक्ता कपिल और योग के प्रथम आचार्य हिरण्यगर्भ थे । ऋग्वेद, छान्दोग्य उपनिषद्, श्वेताश्व उपनिषद्, श्रद्भुत रामायण तथा महाभारत में हिरण्यगर्भ को योग का प्रथम प्राचार्य माना गया है: सांख्यस्य वक्ता कपिल: परमर्षिः स उच्च्यते । हिरण्यस्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्य पुरातनः ॥ afare विद्वानों ने महर्षि पतंजलि को योगशास्त्र का आदिकर्ता : बतलाया है, परन्तु ऋग्वेद के इस उदाहरण से भी स्पष्ट होता है कि योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि हिरण्यगर्भ ही थे: ( 1 ) महाभारत, 12-349, 65. (2) ऋग्वेद, 10, 121, 1. हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । स दाधार पृथिवी द्यामुतेमां कस्मे हविषा विधेम ॥12 For Private And Personal Use Only

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