Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 15
________________ रात्रि भोजन पाप का फल १.९६ भव कसाई = एक भव सरोवर सुखाने का पाप । १०८ भव सरोवर सुखाने के = एक भव जंगल में आग लगाने का पाप । १०० भव जंगल में आग लगाने का पाप = एक भव कुव्यापार (अनीति से) के पाप का। १४४ भव कुव्यापार के = एक कूड़ा कलंक लगाने का भव । १५१ कूड़ा कलंक लगाने के = एक भव परस्त्री सेवन से ९९ भव परस्त्री सेवन पाप के = एक भव रात्रि भोजन के पाप का (रत्न संचय ग्रन्थ) २. चत्वारि नरक द्वाराः प्रथमं रात्रि भोजनम् (महाभारत पर्व) ३. शपथ बिना जाने नहीं देती, "रात्रि भोजन पाप"। नहीं आओ तो लगे आपको शपथ गहो यह आप ॥१०६० कन्या-वनमाला, लक्ष्मणजी से पुनः नहीं आने पर रात्रि भोजन पाप" आपको लगेगा, तब लक्ष्मणजी शपथ लेते हैं । ४. कहे सूर्य मुनि महादोष निशि (रात्रि) भोजन को । सूज्ञ त्याग कर अल्प करत संसार को ॥ दोहा ॥ (जैन रामायण) :- छह मासिक तप - एक वर्ष तक रात्रि भोजन के त्यागी को छह मास के तप का लाभ मिलता है (पू. गुरुदेव तपस्वीराज चंपालालजी म.सा.)

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