Book Title: Vastusara Ratnapal Charitre
Author(s): Agamoddharak Granthmala
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 6
________________ Cococca Scaneu Will CamSca IN| इन्द्रपुरसमानं वै, देवपुरं महापुरम् // 14 // तत्र देवयशो राजा, पुरोहितश्च सोमिलः / सोमिला तस्य भार्यास्ति, सीललावण्य- INh शोभिता // 15 // सुकोमलाऽभिधा कन्या, रुपेण रतिसन्निभा / नम्रतादिगुणोपेता, तयोर्जाता सुलक्षणा // 16 // संप्राप्तयौवनां ताञ्च, दृष्ट्वेत्यचिन्तयद्विजः / एतद्योग्यो वरः कोऽपि, दर्शनीयो मयाऽधुना // 17 // सन्तति, न काप्यस्ति, विना पुत्र्यानया खलु। तस्मात् सुगुणसंयुक्तः, जामाता सुकुलोद्भवः // 18 // मदालये वसेद्यो हि, मुक्त्वा पित्रादिकं सदा, तस्मै कन्या मया देया। कस्मै चिन्नान्यसूनवे // 19 // (युग्म) एवं विधं वरं सोऽथ, मृगयामास सर्वतः। परं प्राप्नोति न क्वाऽपि, चिन्ता चिते च वर्धते // 20 // भाषायां-" सुखे न सुवे धननो धणी, सुखे न सुवे जेने चिन्ता घणी / सुखे न सुवे दिकरीनो बाप, सुखे न सुवे | जेना घरमां साप // 21 // " इतः कोऽपि मनुष्योऽथ, समेत्योवाच सोमिलम् / आसीच्छान्तिपुरे स्वामिन् !, विश्वभूतिपुरोहितः // 22 // वस्तुसार, सुतस्तस्य, षोडशवार्षिकः सुधीः / जनीसहित एवास्ति, कन्यायोग्यो मयेक्षितः // 23 // कथंचिद्बोधयित्वा तन्, मातरं सादरं भवान् / ददातु वस्तुसाराय, कन्यकां स्नेहलामपि // 24 // पुरोधसा तदर्थञ्च, प्रेषिता वाग्मिनो लधु / गत्वा शान्तिपुरे तेऽपि, प्रोचुः तन्मातरं मुदा // 29 // देवपुरे प्रसिद्धो यः, सोमिलोऽस्ति पुरोहितः। द्विजोतमो नरेशस्य, मान्यो गुणविभूषणः // 26 // तस्यैका सुभगा पुत्री, लावण्यरुपशोभिता / युवावस्थाञ्च संप्राप्ता, लग्नयोग्याऽधुनाऽस्ति वै // 27 // श्रुत्वा योग्य भवत्पुत्रं, वस्तुसारं गुणान्वितम् / प्रेषिताः सोमिलेनात्र, समेता वरलिप्सुना // 28 // एकैव तस्य कन्यास्ति, प्राणेभ्योऽत्यन्तवल्लभा / जामाता मद्गृहे तिष्ठेदित्येवेच्छति सोमिलः // 29 // निर्मलोवाच भो विप्राः !, एकपुत्रो ममाऽपि च / कथङ्कारं गृहे तस्य, तत्पुत्रं प्रददाम्यहम् // 30 // विप्राः प्रोचुरये सुभ्र, तव स्थितिस्तु निर्बला / कथं विवाहसंबन्धं, करिष्यसि द्विजालये // 31 // भूपणानि च वस्त्राणि, ब्रह्मभोजनकान्यपि / सर्वाणि लग्नकार्याणि, विना द्रव्यं कथं भवेत् // 32 // अन्यापि वस्तुसारस्य, प्राध्ययनविधायिनी / पाठकादिसुसामग्री, नास्ति सुखपुरःसरम् // 33 // द्रव्याभावेन सुष्ठुत्व-मस्मिन् कार्ये विचारय / धनं कन्या च विज्ञानं, सर्व तत्र भविष्यति // 34 // एवं युक्तिप्रयुक्तिभ्यां, मातुरादाय सम्मतिम् / गत्वोपवस्तुसारं ते, तन्मतं जगदुः तदा // 35 // CO2DDCRate FASTE HALFIFTHERE 220c0meOODOOD

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