Book Title: Vastusara Ratnapal Charitre
Author(s): Agamoddharak Granthmala
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 12
________________ Scanneu win CamSca श्रीवस्तुसारचरित्रम् Coorcemera // 8 // COCERTEREDEIDOS | हि तौ दृष्ट्वा, पृष्टवान् कारणं किमु // 142 // जगौरथोथ हे भ्रातः, पुत्रः क्वापि न दृश्यते / कृता शुद्धर्हि सर्वत्र, परं न IN | लभ्यते क्वचित् // 143 // समागच्छाम्यहं शीघ्रं, मुक्त्वा भारं निजे गृहे / गृहे गतो निजां भार्याम् , हसन्तीमीक्षते मुहुः | // 144 // गृहान्तरे हि क्रीडन्त, बालमसौ समीक्ष्य च / चुम्बति तं महामोहा-दत्यंतस्नेहपूर्वकम् // 145 // पृच्छतिस्म तदा नारी, अयोग्यं किं कृतं त्वया / सा जगाद मयैतत्तु, नर्मणा कृतमेव हि // 146 // सूरसेनो जगादेव-मयुक्तं हि त्वया कृतम् / | आनाय्य च रथं तत्र, तत् पुत्रकं मुदा ददौ // 147 // एवं तु स्वस्थतां प्राप्तौ, कथञ्चित् दम्पती तु वै / तेन बद्धान्तराया सा, I0 मृतेयाय भवान्तरम् // 148 // सूरसेनस्य जीवस्तु, अयं पुरोहितश्च ते / सुन्दरी रामको जातो, कोमला पितराविह // 149 / / भानुमति जनी जाता, वस्तुसारस्य संप्रति / न दृष्टं पौत्र वक्त्रं च, भवेऽस्मिन् तेन कर्मणा // 150 // चित्रा गतिस्तु देवस्य, वाचामगोचरा हि सा / श्रुत्वैतद् वस्तुसारोथ, प्राप जातिस्मृति तदा // 151 // कृत्वाञ्जलिं मुदा तत्र, प्राहमुनिवरं प्रति / भवता कथितं तत्तु, सत्यमेव महामुने ! / / 152 / / गत्वा गृहे स्वपुत्राय, अर्पयित्वा धनादिकम् / आगच्छामि व्रतार्थञ्च, कृपां विधाय | तिष्ठतु // 153 // पुरोहितेन राज्ञा च, परिवारेण सार्धकम् / गृहीतः संयमस्तत्र, गुरोः पार्श्व प्रमोदतः // 154 // पालयित्वा सुचारित्रं, निर्दोषमप्रमादतः। सुखं देवगृहे भुक्त्वा, मोक्षमापुः विदेहके // 155 // चरित्रं वस्तुसारस्य, श्रुत्वा भव्या ! विचार्य च / केषामपि न कर्तव्यं, नर्मादिकं सुदुःखदम् // 156 / / 'निपुणाः सर्वशास्त्रेषु, नरेशादि प्रबोधकः। आगमोद्धारकर्तारोः, देवर्द्धिरिव योधुऽना // 157 / / राजरकौ समौ येषां, समौ शत्रुसुमित्रकौ / जयन्तु सूरयस्ते वै, आनन्दसागरा भुवि // 158 / / तेषां | शिष्यस्य दक्षस्य, क्षान्त्यादिगुणशालिनः / व्याख्याने सुप्रविणस्य, पाठकस्य क्षमाम्बुधेः // 159 // शिष्येण लघु भूतेन, त्रैलोक्याभिधवार्धिना / वाग्वरे च शुभे देशे, आसपुराभिधे पुरे // 160 / / खवसुवेदनेत्रे (2480) वै, वीरवर्षे शुभे तथा / विक्रमे रुद्रव्योमाक्षि(२०११) संज्ञके हायने मुदा // 161 // शुभे कार्तिकमासे च, पञ्चमीवासरेऽसिते / माणिक्याब्धिमहासूरेः, गच्छनेतुस्समाश्रये / 162 / संपूर्णा लघुकाकारा, एषा विश्वहितावहा / कथा पद्येन संदृब्धा, प्रार्श्वनाथप्रसादतः // 163 / / सूर्योदयप्रबोधाभ्यां, द्रङ्गे कपट CPepperpecseeroeoepeecene

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