Book Title: Vastusara Ratnapal Charitre Author(s): Agamoddharak Granthmala Publisher: Agamoddharak Granthmala View full book textPage 7
________________ Scaneu with CamSca श्रीवस्तुसारचरित्रम् RecorderDOL | अज्ञानाद्वस्तुसारेण, स्वीकृतं तद्वचो रहः / तृष्णापाशैरहो बद्धा, जन्तवः किं न कुर्वते' // 36 // भाषायां-" चार कोशकी आवण जावण, बार कोशकी घी घलावण / तीसकोस माथाको मोड, घरजमाइ गंडककी ठोड // 37 // " वस्तुसारेण साध ते, आगतास्सोमिळान्तिके। दृष्वा जामातरं योग्य, हृदये हर्षभागभूत् // 38 // कुंकुमतिलकं कृत्वा, लग्नं च समहोत्सवम् / मन्यते स्वं कृतार्थ च, सोमिलः पुलकाश्चितः // 39 // अध्ययनाय तेनासौ, प्रामान्तरं च प्रेषितः। उषित्वा तत्र सारोऽप्य-भ्यासं करोति संमुदा // 40 // श्वशुरस्य गृहे याति, कदायाति निजे गृहे / एवमनेक वर्षाणि, व्यतितानि सुखेन वै // 41 // इतश्च वस्तुसारस्य, प्रिया गर्भ बभार च / परिवर्तित चेष्टा सा, गर्भ च परिरक्षति // 42 // इतः संपूर्ण काले सा, पुत्र प्रासूत कोमला। जन्मोत्सवः कृतस्तस्य, सोमिलेन महामहैः // 43 // शुभे दिने तदा तस्य, कृतं नाम सुधीरिति / सुलक्षणेन युक्तः स, इन्दुकलेव वर्धते // 44 // यदा तु वस्तुसारोऽगात्, नुत्यै श्रीमातृसन्निधौ / तदा च वक्ति तं माता, पौत्रं च मम दर्शय // 45 अहोऽहं मन्दभाग्यास्मि, यन्नदृष्टं स्नुषामुखम् / द्रष्टुं पौत्रं न शक्नोमि, 'चित्रा गतिर्हि कर्मणाम् // 46 // पौत्रेक्षणाय हे पुत्र !, ममेच्छा वर्ततेऽधुना / वस्तुसारो जगौ मातः !, दर्शयिष्यामि ते सुतम् // 47 // इत्याश्वास्य जनीं सारः, समागात् श्वशुरौकासि / श्वश्रू च कथयामास, जननी हृदयाशयम // 48 // कोपं कृत्वा तदा श्वश्रूः, वक्ति जातमातरं प्रति / रे मूढ ! कि वदत्येवम् , पुत्रकाविमको मम // 49 // गमिष्यतो न मे गेहाद्, अन्यगृहे कदाचन / द्रष्टुमिच्छति ते माता, तोगच्छतु सादरम् // 50 // अचिन्ति वस्तुसारेण, 'स्त्रोषु प्रज्ञा भवेन्नहि' / श्वशुरं कथयिष्यामि, 'बुद्धिशाली नरो यतः // 51 // एकदा सोमिलस्याने, वस्तुसारोऽवदत् पुनः / मातुर्मे वर्तते कांक्षा, द्रष्टुं पौत्राननं खलु // 52 // मातुर्मनः समाध्य, तौ नीत्वा च निजे गृहे। पश्चाद् द्वित्रि दिनान्नुन-मागन्तास्मि तवान्तिके // 53 / / श्रुत्वैवं वस्तुवाचं हि, तदा वह्निकणोपमाम् / पुरोहितोऽब्रवीदेवं, क्रुधा विवेप वर्मकः // 54 // अरे मूढ ! न जानासि, जामाता त्वं गृहे मम / एषा पुत्री सुतश्चैषो, दोगुन्दकसहोदरौ॥ 55 // नोगमिष्यत एतौ तु, मातुस्ते सन्निधौ क्वचित् / गत्वा शान्तिपुरे शीघ-मानय जननी तव // 56 // श्रुत्वेदं वस्तुसारोऽथ, विलक्षोऽचिन्तयत्तदा / अहोऽसमञ्जसं जातं, गृहे जामा THEHELHI ecorrespono Romeomom200omicPage Navigation
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