Book Title: Vajjalaggam
Author(s): M V Patwardhan
Publisher: Prakrit Text Society

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Page 674
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अपि विrees अकए वि कए विपिए अकुलीणो दोमुहओ अक्खंडिय हवयास अगणिय समविसमाणं अगणिय से सजुषाणा अग्गि व पउमसंदे Verse Index Index to First Lines Add. = Additional Stanza found in Manuscript C, and print• ed in the Appendix (pp. 216-267) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Add. 284 * 1 Add. 317! अज्जेव पियपवासो Add. 462-2 38 | अज्झाइ नी कंचुय 308 679 52 अज्झा कवोलपरिसंठियस्स अणवश्यवहलरोमंच 25 110 भणवर देतस्स वि 754 425 | अणुझिज्जिरी आलोइऊण 649 Add. 312*4 Add. 31*2 Add. 496*13 724 अणुणयकुसलं परिहास Add 284*4 चाहि महुं दे गेह 351 | अणुराश्यण भरियं अच्छता इयरजणो 93 अणुसरह मग्गलगं अछता करिवहणं Add. 214*5 | अत्ता जाणइ सुण्डं अच्छउ ता फलविहं 740 अत्ता बहिरंधलिया 407 अत्थक्को रसर हिओ 408 | अत्थरस कारणेणं 420 | अत्थं घरंति वियला अस्थि भसंखा संखा 492 27 572 584 759 499 120 346 347 उता फंससुई अच्छउ ता लोयणगोयरम्मि अच्छ ताव सविब्भम अच्छीहि तेण भणियं Add. 496*11 अच्छी पई सिहिणेहि 614 अस्थि घर चिय गणओ भज्ज कयस्थो दियो अज वि विहुरो सुपहू अज्जवि संभरह गभी 206 | मत्थो विज्जा पुरिसत्तणं 168 | भई पणेण इदंसणेण 191 अहंसणेण बालय 377 अद्दिट्ठे रणरणओ दिट्ठे ईसा 376 375 | अद्दिट्ठे रणरणओ दिट्ठे ईसा अज्जं गओ ति अज्जं अजं चिय तेण विणा मज्जं चेय पडत्यो अज्जं अजं चेय पउत्थो उज्जागरभो अजं पुण्णा अवही 374 विषणा 382 अजं चिय तेण विणा Add. 300*3 जाई gha Add. 72-3 V.L....39 609 अदिट्ठए Add. 72*2 अट्ठेि रणरणओ दिट्ठे ईसा सुइट्ठिए अद्धक्खर भनियाई For Private And Personal Use Only 337 338 9

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