Book Title: Vajjalaggam
Author(s): M V Patwardhan
Publisher: Prakrit Text Society

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Page 688
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सरला मुड़े न जीहा सरसलिएण भणियं सरसाण सूरपरिसंठियाण सरसा निसणसारा सरसा विदुमा सरसा वि सरसरमणसमध्पण सवियारसविब्भम सन्वत्तो वसद्द धरा सन्वन्नुवयणपंकय सन्स एह पयई सव्वंगरागरतं - सब्बायरेण रक्खह सब्द गाउ जणो roat छुहिओ सोह सहद्द सलोहा घणघाय सहस तिजं न दिट्ठो सब्भावे पहुहियए समउत्तुंग विसाला सयलजणपिच्छणिज्जो Add. 1993 Add, 199* 4 218 717 575 63 हु कष्वकहा Add. 31*1 संकुइ संकु संकेच कुठं गोडीण संघडि घडिय www.kobatirth.org संचुण्णिय थोरजुय संज्ञासमए परिकुविय संतं न देति वारेति INDEX संतेहि असंतेहि य संधुकिज्जइ fore 175 | संभविण य रुण्णं 304 सात सहत्यदिन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 326 293 697 सातम्मि हियय दुलहम्मि सा तुझ कए गयमय सादियहं चिय पेच्छ सामाखामा न सहेइ सामा नियंबगरुया सायर लज्जाइ कह सा देवा ताइ पाणियाइ सालत्तयं पयं ऊरुएसु 1 सालंकाराहि सलक्खणाहि Add. 578 2 | साहसमवलंबतो 264 | साहीणाम यस्यणो 14 सिग्वं आरुह कज्जं 161 | सिद्धगणा उरस्थल 562 सियक सिणदीहरूज्जल 284 | सिरजाणुए निउत्तो Add, 199*1 Add. 300*4 587 सहस त्ति जं न भज्जइ Add 3184 | सिसिरमयरंदपज्झरण 532 संकुइयकंपिरो 662 सिहिपेणावयंसा 212 146 सिद्दिरडियं घणरडियं Add. 4454 Add. 4965 सिंचतो वि मियंको Add. 496*12 106 सीलं वरं कुलाओ कुलेण 179 | सीलं वरं कुलाओ दालिद्द 608 | सीसेण कह न कीरइ Add Add. 454*2 435 39 | सा सुहय सामलंगी Add. 438*4 107 761 92 56 सुपमाणा य सुसुत्ता 82 सुमद्द पंचम 634 सुम्मइ वल्याण रवो 623 428 432 Add, 438-1 514 317 764 187 620 10 For Private And Personal Use Only संपत्तियाइ कालं गमेसु 570 | सुयणस्स होइ सुक्खं संपत्तिया विखज्जइ Add. 496*9 | सुयणो न कुप्पइ च्चिय संभरसि कण्ह कालिंदि 605 सुमणो सुद्धसहावी 86 85 507 *1 573 290 321 Add. 48 * 2 333333 34

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