Book Title: Vajjalaggam
Author(s): M V Patwardhan
Publisher: Prakrit Text Society

View full book text
Previous | Next

Page 686
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मालविरहे रे तरुण मा वच्चह वीसंभ मा सुमर चंदण मा होगा मित्तं पयतोयसमं www.kobatirth.org मित्त सूरो कयपत्त मुत्तादलं व क मुत्ताद्दलं व पहुणो मुयमाणं माण पिंयं मुहारियाइ सुवि हराओ चिपess मूलाहिंतो साक्षण मेरुतिर्ण व सग्गो मोणकरणगणि INDEX 192 रुणरुण वलहू Add. 90*7 | रुंदारविंदमंदिर 67 रे रे कलिकालमहा 716 रे रे विश्व मा 8 693 रे ससिवाहण वाहण वारिज्जतो 360 | रहइ पियपडिरंभण Add. 540 रेहइ सुरयवसाणे 403 | लच्छिणिलयत्तणुत्ताण 645 लच्छीइ विणा रयणायरस्स 105 लच्छीए परिगहिया 505 ललिए महुरक्खरए 520 | लवणसमो नस्थि रसो मोण बालतंत मोत्ण विकेसर Add. 252*1 लंकालएण रत्तंबर कलहकुवियगोरी 606 लंकालयाण पुत्तय रच्छातुलग्गवडिओो Add. 496*10 | लीलावलोयणेण वि 548 व मग्गपेसियाई 550 वग्घाण नहा सीहाण 549 | वच्चिहिसि तुमं पाविहिसि Add. 72*7 रज्जति नेय कस्स वि Add. 300 * 5 रज्जावंति न रज्जहि न देति रज्जावंति न रज्जहि" हरंति रणरणइ घरं रणरणइ रतं रत्तेहि सियं रत्रता सम्मि रमियं जहिच्छ्याए रणाइ सुराण समपिऊण रयणाय रचत्तेण 551 वच्छस्थलं च सुइडस्स वडवाण ेण गहिओ 661 वदसि विरहे 758वड्स माइकलिए 356 वड्ढाधियकोसो जं 762 वणय तुरयाद्दिरूढो रयणायर त्ति नामं रयणायरस्मि जम्मो 268 | वण्णड्ढा मुहर सिया रणारस्सन हु होइ 755 वम्म पसंसणिज्जो रयणायरेण रयणं 746 20 जलप सोहं रयणेहि निरंतर पूरिएहि 753 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 241 | रायंगणमि परिसंठियस्त 61 राहाइ कवोलतलुच्छलंत रे ससिवाहणवाहण मा For Private And Personal Use Only 621 678 596 240 633 43 483 371 372 389 *4 328 714 750 713 29 Add. 90*1 Add, 637*1 चम्महभक्खण दिग्वोस हीइ वरतरुणिणयण वरिससयं नरभाऊ 637 283 427 214 Add. 263*1 178 751 Add. 389*7 228 715 630 561 396 663 680 666

Loading...

Page Navigation
1 ... 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706