Book Title: Vajjalaggam
Author(s): M V Patwardhan
Publisher: Prakrit Text Society

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Page 684
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नियगुणणे हवयं कर नियडकुडंगं पच्छन्न नियालएस मलिणा निवसति जरथ छेया निहणंति घण atreकरीरखर नीसससि रुयलि नीस किंपिय नेच्छ सग्गगमणं नेच्छसि परावयारं परजुवाणो गामो पक्खाणिलेण पहुणो पक्क्खेवं नहसूइ पज्झरणं रोमंचो पडिवज्जंति न सुयणा पडव जेण समं पडिवन दियर पढमं चिय जे पढमं चिय मह पढमारंभमणहरं पत्ते पिपाहुण मुह सुतं भट्ठी पर्याय को गुणड्ढे पयरियपयावगुण परघरगमणाल सिणी परपत्थणापव परपुरपवेसविन्नाण परलोयगाणं पि हु परविवर लन्दलक्खे परसच्छेयपहरणेण परिधूसरा वि सहार परिमुसइ करयलेण वि परिहासवा सोडण www.kobatirth.org 777 271 580 734 Add. 226*3 Add 778 472 406 169 41 476 177 235 559 * 1 46 76 66 719 Add. 496*14 Add. 349*1 INDEX Add. 438** 694 510 515 513 583 222 468 84 474 475 348 3.9 156 40 114 765 बहले तमंधारे रमिय Add. 4968 बहले तमंधयारे विज्जुजीएण Add. 72*8 बहुकूडकवडभरियाण 280 बहुकूडकवडभरिया माया 669 631 | बहुगंधलुद्ध महुयर Add. 252*4 732 582 607 बहुतरुवराण मज्झे बहुसी वि कहिज्जैतं 439 692 57 729 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पल्लवियं करयल पल्लिपएसे पज्जूस पसरइ जेण तमोहो पाइयकव्वम्मि रसो पाइयकन्दस्स नमो पाइयकलावे पामरवहु याइ पायवडिओ न गणिओ पाविज्जइ जत्थ सुहं पासपरिसंठिओ वि हु पियकेलिसंग मोसारिएण पिहुलं मसिभायणयं पुकारएण विज्जय पुकारयं पउंजसु पुच्छिज्जेता निय 458 790 708 Add. 64*5 Add. 462*1 फलसंपत्ती समो 133 | बद्धो सि तुमं पीओ पुणरुत्तपसारियदीह पुरिसविसेसेण सइ पुरिसे सच्चसमिद्धे पुरुवेण सणं पच्छेण पेक्खह महाणुचोज्जं पेम्मस्स विरोहिय 619 313 Add. 214*4 487 21 31 Add, 31*4 Add, 300*2 पेम् अणाइपरमत्थ फणसेण समं महि फरुसं न भणसि For Private And Personal Use Only 362 675 691

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