Book Title: Vajjalaggam
Author(s): M V Patwardhan
Publisher: Prakrit Text Society
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धरणे विहा
- बालय नाहं दूई बालं जराविलंगि
बाला असमेत्तरया
बालाकवोलावण्ण
बाला लावण्णणिही बुद्ध सच्चे मित्तं
बेण वि महणारंभे
for विष्णुप्पन्ना
for विहुति ईओ पुरसा धरइ धरा
बे मग्गा भुवणयले बेवि सपक्खा तह
भगं न जाइ घडिउ
भग पुणो घडिजाइ भग्गे वि बले वलिए
भग्गो freeread
भणि विजइन भद्दमुहमंडणं
भई कुलंगणा भमर भमंतेण तए
भमरो भमरो त्ति गुणो
भमिओ विरं असेसी भमिओ सिभमसि
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VAJJALAGGAM
459 | भग्गं चिय अलहतो
भय हुयास भुंजइ भुंजियसेस भुंजति कसण्डसणा
भूमीगयं न चत्ता भूमी गुणेण वडप/यवस्स भूमीसयणं जरचीर भूसणपसाद्दणाडंबरे हि महरा मयंक करणा
मउलतस्य मुक्का
मरुमरुमार ति
मसि मलिऊण न याणसि
मह स की पंथि
96 | महणमि ससी महणमि
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मग्गंती मूलियमूलियाइ मज्झहपत्थियम्स
मडहं मालइकलिय
महुलियाइ किं तुह मयणाणलसंधुक्खिय
महिला जत्थ पहाणा
महुरारज्जे वि हरी
मंदारयं विवज्जइ
मा इर्दिदिर तुंगसु
मा उपिय जलं माजास वीसरियं
163 646 | मा जागह जह लुंग 506 मा जाणइ मह सुहयं 542 | मा झिजसु अणुदियहं माणविहूण रुंदीइ माणस सररहियाणं
247 माणससरोरुहाणं
541 | माणं अवलंबती
772 | माणं हु तस्मि किज्जइ
Add. 496*4 माणिणि मुसु माणं
455
मादो चिय
159 मापत्ति पि दिज्ज
723 म पुत्ति कुसुमा
735
मा पुति वकवक
152
मा रज्ज सुहंजणए
554 मा वसु ओणय मुही
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मारुवसु पुत्ति
739 | मालइ पुणो वि मालइ
307
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231
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