Book Title: Vajjalaggam
Author(s): M V Patwardhan
Publisher: Prakrit Text Society

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Page 685
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 620 धरणे विहा - बालय नाहं दूई बालं जराविलंगि बाला असमेत्तरया बालाकवोलावण्ण बाला लावण्णणिही बुद्ध सच्चे मित्तं बेण वि महणारंभे for विष्णुप्पन्ना for विहुति ईओ पुरसा धरइ धरा बे मग्गा भुवणयले बेवि सपक्खा तह भगं न जाइ घडिउ भग पुणो घडिजाइ भग्गे वि बले वलिए भग्गो freeread भणि विजइन भद्दमुहमंडणं भई कुलंगणा भमर भमंतेण तए भमरो भमरो त्ति गुणो भमिओ विरं असेसी भमिओ सिभमसि www.kobatirth.org Add. 438* 3 519 Add. 328* 5 Add 185 : Add. 318 * 6 Add. 90*12 VAJJALAGGAM 459 | भग्गं चिय अलहतो भय हुयास भुंजइ भुंजियसेस भुंजति कसण्डसणा भूमीगयं न चत्ता भूमी गुणेण वडप/यवस्स भूमीसयणं जरचीर भूसणपसाद्दणाडंबरे हि महरा मयंक करणा मउलतस्य मुक्का मरुमरुमार ति मसि मलिऊण न याणसि मह स की पंथि 96 | महणमि ससी महणमि 45 95 260 Add 3498 Add. 349*9 131 203 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Add. 471*1 255 मग्गंती मूलियमूलियाइ मज्झहपत्थियम्स मडहं मालइकलिय महुलियाइ किं तुह मयणाणलसंधुक्खिय महिला जत्थ पहाणा महुरारज्जे वि हरी मंदारयं विवज्जइ मा इर्दिदिर तुंगसु मा उपिय जलं माजास वीसरियं 163 646 | मा जागह जह लुंग 506 मा जाणइ मह सुहयं 542 | मा झिजसु अणुदियहं माणविहूण रुंदीइ माणस सररहियाणं 247 माणससरोरुहाणं 541 | माणं अवलंबती 772 | माणं हु तस्मि किज्जइ Add. 496*4 माणिणि मुसु माणं 455 मादो चिय 159 मापत्ति पि दिज्ज 723 म पुत्ति कुसुमा 735 मा पुति वकवक 152 मा रज्ज सुहंजणए 554 मा वसु ओणय मुही For Private And Personal Use Only 395 मारुवसु पुत्ति 739 | मालइ पुणो वि मालइ 307 553 440 230 231 385 320 508 491 32 Add. 50*2 603 529 245 441 Add, 72*0 202 576 1.3 789 263 Add. 263*2 357 363 356 748 488 358 282 641 473 546 259

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