Book Title: Vajjalaggam
Author(s): M V Patwardhan
Publisher: Prakrit Text Society
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VAJJALAGGAM
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एक्को चिय दुव्विसहो 638 कलियामिसेण उम्भेवि 234 एक्को चिय दोसो
731 कलं किर खरहियओ 365 एक्को वि को विनिय 170 कवडेण रमंति जणं
568 ए दइइ मह पसिजसु 352 कस्स कएण किसोयरि Add. 624*3 एमेव कह वि कस्स वि 79 | कस्स कहिजति फुडं Add. 421*2 एमेव कह वि माणसिणीइ
कस्स न भिदइ हिययं 295 Add. 364*2 कह कह वि रपइ पयं
22 एयं चिय नवरि फुडं
11 कह नाम तीइ तं तह 312 एयं चिय बहुलाहो
51, कह लभइ सत्थरयं 494 एयं वज्जालागं ठाणं
795 कह वि तुलग्गावडियं Add. - 26*2 एयं वजालग्गं सव्वं
5 कह सा न संभलिजइ जत्थ 398 ओ खिप्पड मंडल
207 · कह सा न संभलिजइ जा सा ओलग्गिओ सि धम्मम्मि 154
अत्तत्त ओसरसु मयण घेत्तण
388 कह सा न संभलिजइ जा सा ओ सुम्मइ वासहरे 324 घरबार ओ सुयइ विल्लरविल्ल Add. 214*|| कइ सा न संभलिजइ जा सा कइया गओ पिओ
379
नवणलिणि 400 कक्खायपिंगलच्छो
647 | कह सा न संभलिज्जइ जा सा कजं एव पमाणं Add. 90*6 नीसास 402 कण्हो कण्हो निसि 594 | कंकेलिपल्लवुब्वेल्लमणहरे 220 कण्हो जयइ जुवाणो 592 कंचीरएहि कणवीरएहि कण्हो देवो देवा वि 602 कंठभंतरणिग्गय
285 कत्तो उग्गमइ रई
कंपति वलंति समूससंति 405 कत्तो तं रायघरेसु
205 का समसीसी तियसिंदयाण 745 कत्तो लभंति धुरंधराह 185 का समसीसी सह मालईइ 233 कत्तो लवंगकलिया 254 / कित्तियमेत्तं एवं
414 कत्थ वि दलं न गंध 237 किसिओ सि कीस
600 कद्दमरुहिरविलित्तो Add. 178*2 | किसिणिजति लयंता करचरणगंडलोयण ___316 कि करइ किर वराओ 30 करफंसमलणचंबण Add. 559*2 किं करह कुरंगी बहुसुएहि 200 करिणिकरप्पियणवसरस 199 किं करह तुरियतुरियं करिणो हरि-णहर
581 किंकरि करि म अजुत्तं
528
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