________________
(५) प्रो० पटवर्धन ने अपने अंग्रेजी अनुवाद में अनेक गाथाओं की संस्कृत टीका पर जो अनुचित आक्षेप किये थे, प्रस्तुत संस्करण में उनका समुचित परिमार्जन किया गया है।
(६) वज्जालग्ग की हस्तप्रतियों में जो अतिरिक्त गाथाएँ उपलब्ध हुई हैं, उनका भी हिन्दी में अनुवाद किया गया है ।
(७) धम्मियवज्जा के अर्थ को नवीन दृष्टिकोण से व्याख्यायित करने का प्रयत्न किया गया है।
(८) वज्जालग्ग का अन्य नाम 'जयवल्लभ' था-इस प्रवाद का निरसन किया गया है।
(९) विस्तृत भूमिका में ग्रन्थकार का काल, वज्जालग्ग शब्द का अर्थ, वज्जालग्ग का वैशिष्ट्य प्रभृति विषयों पर विशद विवेचन किया गया है।
-विश्वनाथ पाठक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org