Book Title: Vagbhattalankar
Author(s): Vagbhatt Mahakavi, Satyavratsinh
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ ( २ ) अर्थात् वे श्रीनाभेय जिन, जिनकी सिद्धान्त परम्परा मत्पुरुषों के लिये मोक्षमार्ग का निरूपण किया करती है, आप सब को कल्याण लक्ष्मी में । 'श्रीनाभेय जिन' इस पद में 'श्रीश्व नामेयो ब्रह्मा च श्रीनाभेयी, नाम्यामुपलक्षितो जिनः विष्णुः श्रीनामे- यजिनः' अर्थात् लक्ष्मी किंवा ममी से पुरस्कृत विष्णु भगवान् आदि अर्थ की गवेषणा, जो कि बाग्मटालङ्कार के एक-माथ व्याख्याकारों द्वारा की जा चुकी है, वाग्भट को जैनधर्म के अतिरिक्त अन्य धर्म का अनुयायी नहीं सिद्ध कर सकती । उपर्युक्त मंगलश्लोक में 'अतिशय चतुष्टय' अर्थात् बानातिशय, पूजा विशय, अपायापगमातिशय और बचना - तिशय का जो स्पष्ट संकेत है ( क्योंकि जैन साहित्य की परम्परा में 'देव' वह है जो केवल मानी से देदीप्यमान है, श्रीनामेवजिन' वह है जो 'श्री अथवा अहमदाप्रतिष्ठार्यादि लक्ष्मी से सदा संयुक्त किंवा रागद्वेषादिरिपुचक का विजेता है और 'मोक्षमार्ग' का दर्शक वह है जो 'रलय' की आराधन - सावना में सिद्ध है) वह इसी बात का प्रमाण है किं वाग्भट की आस्था 'रत्नत्रय' के प्रति रह चुकी है और वाग्भट की मनस्तुष्टि 'जेनागमपदावली पर केन्द्रित है । वाग्भट प्रथम ने अपने वंश के मम्बन्ध में कुछ थोड़ा सा संकेत किया है जो कि वाग्मटाकार के चतुर्थ परिच्छेद में कुरालङ्कार के इस उदाहरण लोक में वह हैबम्भण्दसुतिपुढसुकिभमणिनो पहा समूह छ । सिरिवाहदत्ति तणओ असि बुहो तस्स सोमरस || (नाण्डशुक्तिसम्पुट मौक्तिकमणेः प्रभासमूह इव । श्रीवाग्भट इति तनय आसीद बुत्रस्तरय सोमस्य ॥ ) 'वाग्मटालङ्कार' के व्याख्याकार श्री सिंहदेव ने इस उदाहरण - श्लोक की अबतर शिका के रूप में जो यह निर्देश किया है 'इदानीं प्रन्थकारः इदमलङ्कारकर्तृष्वस्यापनाय वाग्भटा भिवस्य महाकषे महा माध्यस्य नाम गाययैकया निदर्शयति । ( ३० पृ० १५ ) तथा एक और व्याख्याकार श्री जिनवर्धनसूरि का जो यह उल्लेख है -- - 'तस्य सोमस्य वाह इति नाम्ना तनय आसीत् ' जिसकी पुष्टि वाग्भद के ही तीसरे व्याख्याता श्रीक्षेमसंग ने इस प्रकार से की है 'सस्य सोमस्य चाह इति तनय आसीत् ' बद्द सत्र यही सिद्ध करता है कि वाग्भट का प्राकृत नाम 'बादद्ध' रह चुका है और नाग्भट के पिता का नाम 'सोम' था

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 123