Book Title: Vadsangraha
Author(s): Yashovijay Upadhyay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 7
________________ २- वादमाला (२) (पृष्ठ २३ से ५८ ) प्रतिपरिचयादि: इस ग्रन्थ के आगे ( ( २ ) ' इसलिये दिया है कि पहले पू. उपाध्यायजी महाराज की एक वादमाला का प्रकाशन हो चूका है और शेष दो वादमाला जिसका प्रकाशन अद्यावधि न हुआ है उनको नम्बर ( २ ) और (३) लगाकर यहां प्रकाशन किया गया है । वादमाला ( २ ) की मूलादर्शप्रति पू. उपाध्यायजी के स्वहस्ताक्षर से अङ्कित है और आज देवशा का पाडा (अहमदाबाद) के भंडार में सुरक्षित है जिसमें ६ पत्र हैं । ग्रन्थविषय: esiden इसमें पूज्य उपाध्यायजी ने (१) स्वत्ववाद और ( २) सन्निकर्षवाद- इन दो वादों को निबद्ध किया है । प्रथम में स्वत्वरूप पदार्थ अतिरिक्त है या सबन्धविशेषरूप है या क्या है ? इस विषय में नैयायिक सम्प्रदाय-नव्यमत- लीलावती उपाय-पदार्थतत्त्वविवेककृत् - रामभद्रसार्वभौम इत्यादि के भिन्न भिन्न मतों का निरूपण और उसका निराकरण बताया है। इसमें अपना कुछ मत पू० उपा० ने दिखाया हो ऐसा लगता नहीं है फिर भी सूक्ष्मेक्षण करने से लगता है कि अतिरिक्तस्वत्व में ही उपाध्यायजी का स्वरस हो । 'स्वत्व' के निरूपण के बाद 'स्वामित्व' का भी विस्तार से निरूपण किया है । द्वितीय सन्निकर्षवाद में द्रव्यचाक्षुष के प्रति चक्षुसंयोगहेतुता का विचार किया गया है जिसमें भिन्न भिन्न नैयायिक वादिओ में परस्पर मत भेद - खंडन का निरूपण किया है । इस वाद में सर्वथा पर समय की मान्यता का ही निदर्शन है । उपाध्यायजी का अपना मत लगता नहीं है ।

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