Book Title: Vadsangraha
Author(s): Yashovijay Upadhyay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 6
________________ कूपदृष्टान्त का विषयः अपनी प्रतिज्ञा को स्पष्ट करते हुए पू. उपाध्यायजी दूसरे श्लोक में कहते हैं कि गृहस्थों से किया गया स्नान पूजादि द्रव्यस्तव करने द्वारा अपने को और अनुमोदना द्वारा स्वपर उभय को पुण्य का कारण होता है। इस प्रतिज्ञा के समर्थन में कूपखनन को बताया गया है-जैसे निर्मल जल निष्पादन द्वारा वह स्वपर उभय का इहलोक में कल्याणकारी होता है। इस प्रतिज्ञा के खण्डन के लिये किसी ने यह आशंका की है कि "पूजा पञ्चाशक की दसवीं गाथा की व्याख्या में श्री अभयदेवसूरि महाराज ने द्रव्यस्तव में अल्पदोष भी बताया है-वह आपने क्यों नहीं बताया ?" . .. इस आशंका के समाधान में पू० उपाध्यायजी महाराज ने पू० अभयदेवसूरि महाराज के अभिप्राय को बताते हुए कहा है कि वह जो अल्पदोष बताया गया हैं वह तो भक्ति होने पर भी यदि यतनादि विधि का पालन न किया हो तभी होता है । यदियतनादि विधि पूर्वक स्नानपूजादि किया जाय तो द्रव्यस्तव नितान्त निष्पाप है । पू. उपाध्यायजी महाराज ने पू० हरिभद्रसूरि महाराज के 'पूजा पञ्चाशक' की ४२ वीं गाथा गत 'कथञ्चिद्' वचन की अन्यथाऽनुपपत्ति द्वारा इस का समर्थन किया है। आगे जाकर स्थान स्थान पर भगवतीसूत्र उपदेशपद और पञ्चाशकषोडशक आदि अनेक ग्रन्थों के उद्धरण देकर और अनेक अकाट्य युक्तियों द्वारा विधियुक्त द्रव्यस्तव की निर्दोषता का समर्थन किया है । इसमें प्रसङ्ग से दुर्गतनारी का भी विस्तार से उदाहरण दिया गया है। प्रसङ्ग से ध्र वबन्धादि प्रक्रिया को भी बताई गई है।

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