Book Title: Updesh Shataka Author(s): Vimalsuri, Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 9
________________ ॥ षष्ठी अशुचिभावना ॥ सपलरक्तसिराजिनकीकशे, शमलमूत्रमलाविलपुद्गले । अरुचिरे नचिरे हि कलेवरे, मुयुवतेर्भवतेरितमक्षि किम् ? ॥ ३४ ॥ नयनयोः कुचयोर्भुजयोर्भुवोः, श्रवणयोः करयोः कचबन्धने । किमपि चारु न चर्मनिगुम्फितं, पिशितपूरितनिन्दितभाजनम् ॥ ३५ ॥ प्रथममेव विलोकय चिदृशा, निजतनौ विवराणि वहन्त्यरम् । नव जुगुप्सितगन्धरसानि तन्ममतया विदधासि हितं न किम् ? ॥ ३६ ॥ अनुदिनं द्वययुग्दशरन्ध्रभृयुवतिविग्रहकर्करमन्दिरम् । नगरसारणिवत्स्रवतीदृशं,त्यज मनो भज पारगतं वचः३७॥ __इति अशुचिभावना संपूर्णा ॥ ६ ॥ Jain Education.in For Privale & Personal use only w.jainelibrary.orgPage Navigation
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