Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 7
________________ उपासकदशांग सानुवाद ॥७॥ एवं वयासी-'सदहामि णं भन्ते! निग्गन्धं पावयणं, पत्तियामि णं भन्ते ! निग्गन्धं पावयणं, रोएमि णं भन्ते:10 निग्गंथं पावयणं, एवमेयं भन्ते !, अवितहमेयं भन्ते !, इच्छियमेयं भन्ते !, पडिच्छियमेयं भन्ते !, इच्छियप-TRI १ आनंदा ध्ययन डिच्छियमेयं भन्ते!, से जहेयं तुम्भे वयह'त्ति क्टु जहा णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे राईसरतलवरमाडम्बि. यकोडम्बियसेडिसेणावइसत्यवाहप्पभिईओ मुण्डा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया नो खलु अहं तहा संचाएमि मुण्डे जाव पब्वइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पञ्चाणुब्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं| गिहिधम्म पडिवजिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबन्धं करेह ॥ .. ४ त्यार बाद आनन्द गृहपति श्रमण भगवंत महावीरनी पासे धर्म सांभळी, अवधारी प्रसन्न अने संतुष्ट थइ आ प्रमाणे बोल्यो-हे | भगवन् ! निर्ग्रन्थना प्रवचन-उपदेशनी श्रद्धा करुं छु, हे भगवन् ! हुं निर्ग्रन्थना प्रवचननी प्रतीति करुं छु, हे भगवन् ! हुं निर्ग्रन्थना प्रवचननी रुचि करूं छु. हे भगवन् ! जे तमे कहो छो ते एमज छे, हे भगवन् ! तेमज छे, हे भगवन् ! अवितथ-सत्य छे, हे भगवन् ए मने इष्ट छे, ए मने प्रतीच्छित-स्वीकृत छे अने इच्छित अने प्रतीच्छित छ. एम कहीने जेम देवानुप्रिय एवा आपनी पासे घणा राजा, युवराजो, राजस्थानीय पुरुषो, माडंबिको, कोटुम्बिको, श्रेष्ठी, सेनापति अने सार्थवाह प्रमुख मुंड थइने गृहवासथी नीकळी अनगारिताप्रव्रज्या ग्रहण करी छे तेम हुं मुंड थइ प्रव्रज्या ग्रहण करवाने समर्थ नथी, हुँ देवानुप्रिय एवा आपनी पासे पांच अणुव्रत अने सात शिक्षा व्रत रूप बार प्रकारना गृहस्थ धर्मने स्वीकारीश. (भगवंते कडं के) हे देवानुप्रिय ! जेम सुख उपजे तेम करो, इच्छा प्रमाणे करो, प्रतिबन्ध न करो.

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