Book Title: Upasakdashanga Sutra Author(s): Abhaydevsuri, Publisher: Abhaydevsuri View full book textPage 9
________________ १ आनंदा उपासकदशांग सानुवाद ध्ययन ॥९॥ |॥९॥ पच्चक्खामि मणसा वयसा कायसा४। तयाणन्तरं च णं इच्छाविहिपरिमाणं करेमाणे हिरण्णसुवण्णविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं निहाणपउत्ताहिं, चउहिं बुड्डिपउत्ताहिं, चउहिं पवित्थरपउत्ताहिं, अवसेसं सव्वं हिरण्णसुवण्णविहिं पञ्चक्खामि' ३। तयाणन्तरं च णं चउप्पयविहिंपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ चउहिं वएहिं दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अवसेसं सव्वं चउप्पयविहिं पच्चक्वामि'३ । तयाणन्तरं च णं खेत्तवत्थुविहिपरिमाणं त्यार पछी खदारसंतोषने विशे परिमाण करे छे, 'एक शिवनन्दा भार्या सिवाय बाकीनी स्त्री साथे मैथुनविधिनुं मन वचन अने काया वडे प्रत्याख्यान करूं छु. त्यार बाद इच्छानुं परिमाण करतो हिरण्य अने सुवर्णर्नु परिमाण करे छे. 'चार हिरण्यकोटी निधानमां, चार हिरण्यकोटी वृद्धि-व्याजमां अने चार हिरण्यकोटी धनधान्यादिना विस्तारमा रोकेली छे, ते सिवाय बाकीना हिरण्यसुवर्णविधिनो त्याग करुं छु.' ते पछी चतुष्पदविधिनुं परिमाण करे छे. 'दस हजार गायनुं एक ब्रज तेवा चार व्रज सिवाय बाकीना चतुष्पदोनुं प्रत्याख्यान करुं छ'. त्यार बाद क्षेत्र रूप वस्तुनुं परिमाण करे छे. जेनाथी सो निवर्तन खेडी शकाय एबुं एक हळ, एवा पांचसो हळ वडे खेडी 'इक' प्रत्यय थयो होवाथी 'स्वदारसंतोषिक' रूप थाय छे. अथवा 'इ' प्रत्यय करवाधी 'स्वदारसंतोषि' रूप जाणवू. पटले पोतानी स्त्रीमात्रथी संतोष पामवो. घणी स्त्रीओथी उत्पन्न थता संतोषने संक्षेप करवो. केवी रीते करे छे ? ते बतावे छे. 'नन्नत्थ' पोतानी एक शिवनंदा भार्याने छोडी अन्यत्र-बीजी स्त्रीने विशे मैथुन सेवीश नहि. एज बाबतने स्पट करे छे. 'श्रवसेसं ते सिवाय बीजा मैथुन विधि-मैथुनना प्रकार अथवा मैथुनना कारणनो त्याग करुं छु. वृद्ध आचार्यनी व्याख्या आ प्रमाणे छे. 'नन्नत्थ' अन्यत्र बीजे, पटले शिवनंदाने छोडीने बीजे मैथुनविधिनो त्याग करुं छु. बन्ने व्याख्यामां भावार्थ तो एकज छे. इच्छाविधिना परिमाणमां 'हिरण्यं' रू', रूपाना', सुवर्ण प्रसिद्ध छे, तेनुं परिमाण करे छे. 'नन्नत्थ' निधानमा राखेली चार कोटि हिरण्य वगेरेथी बीजा हिरण्यादिनीPage Navigation
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