Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 6
________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदाध्ययन सम्पेहित्ता पहाए सुद्धप्पावेसाइं जाव अप्पमहग्घाभरणालतियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिनिक्वमित्ता सकोरण्टमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पायविहारचारेणं वाणियगाम नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव दृइपलासे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वन्दइ नमसइ जाव पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे आणन्दस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मकहा, परिसा पडिगया, राया य गओ। ४. तए णं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्मं सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ० जाव 'आप्रमाणे श्रमण भगवान महावीर विहरे छे, तो अरिहंत भगवंतोनुं नामश्रवण पण महा फळवाळु छे,तो वंदन नमस्कार वगेरेनुं करवू महा फळवाळु होय तेमांशुं कहेवू ? माटे हुं जाउं अने यावत् तेमनी पयुपासना करूं एवो विचार करे छे, विचार करी शुद्ध अने बहार जवा लायक वस्त्रो धारण करी अल्प अने महामूल्य अलंकारो बडे अलंकृत शरीरवाळो थइ पोताना घरथी बहार नीकळे छे. नीकळीने धारण कराता कोरंट पुष्पनी माळा युक्त छत्र वडे मनुष्य रूपी वागुग (जाळ थी वीटायेलो पगे चालीने वाणिज्य ग्राम नगरना मध्य भागमां थइने नीकळे छे अने ज्यां दृतिपलाश चेत्य छे अने ज्यां श्रमण भगवान महावीर छ त्यां आवे छ. आवीने त्रण बार जमणी बाजुथी प्रदक्षिणा करे छे. प्रदक्षिणा करी वंदन, नमस्कार यावत् ययुपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवान् महावीरे आनन्द गृहपतिने तथा अत्यन्त मोटी परिपदने धमोपदेश कयों. परिपद गइ अने गजा गयो.

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