Book Title: Tulsi Prajna 1992 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ उत्कल के "कलिंगजिन" २.. जैन जगत् के प्राच्य विद्याविद् वानप्रस्थी राम (श्री रामचन्द्र जैन) ने चाहा है कि "महाराजा खारवेल द्वारा उत्कल से नन्दवंश संथापक महापद्मनन्द द्वारा वहां से ऋषभ की जबरन ले जाई गई मूर्ति को वापस लाने" पर "तुलसी प्रज्ञा" के आगामी अंक में नया प्रकाश डाल सकें तो जरूर डालें। उनका यह अनुरोध हाथी गुंफा शिलालेख पर 'तुलसी प्रज्ञा' में छपी सम्पादकीय टिप्पणियों को लेकर है।। हाथी गुंफा लेख की आठवीं-नौवीं पंक्तियों में 'कलिंगजिन' सम्बन्धित निम्न वाक्य है -कलिंगजिनं पलवभार/कपरूखे हय गज नर रथ सहयातिपुनः लेख की बारहवीं पंक्ति में तत्संबंधी एक अन्य वाक्य इस प्रकार है-नंदराजनीतं च कलिंगजिनं सनिवेसअंग मगधतो कलिंगं आनेति उपर्युक्त दोनों वाक्य कलिंगजिन के संबंध में अतीव महत्त्व की प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत करते हैं। प्रथम वाक्य खारवेल महाराजा की सेना द्वारा गोरथगिरि (अशोक का 'खलतिक' पर्वत जिसका पतंजलि-महाभाष्य १-२-२ में भी उल्लेख है) को अधीन कर राजगृह को संत्रस्त करने, जिससे यवनराज मथुरा छोड़कर भाग गया, के बाद सदधर (यमुना के किनारे बसा सहजाति नगर-महाभारत का सोस्थिवती और चेदिवंश का मूल स्थान) के सब गृहपतियों और ब्राह्मणों को पान भोजन देने की सूचना देने के पश्चात् लिखा गया है। यहां कलिंगजिन को 'पलवभार कपरूखे' कहा गया है जो अभिधानप्पदीपिका (४८०-४८१) के अनुसार २००० पल (एक पल :: ४ तोला) वज़न की मूत्ति है । उक्त वाक्य में लिखा है कि उस मूर्ति की शोभा यात्रा में महाराजा खारवेल साथ-साथ चले। इस प्रकार यह कलिंगजिन मूल प्रतिमा के अभाव में बनी द्वितीय प्रतिमा हो सकती है। दूसरे वाक्य में, जो राजा खारवेल के बारहवें शासन वर्ष का विवरण है, स्पष्ट लिखा है कि नंदराज द्वारा ले जाई गई 'कलिंगजिन' प्रतिमा को उसके संनिवेस अंग सहित मगध से वापस कलिंग में लाया गया। इसलिए यह प्रतिमा 'पलवभारकपरूखे-प्रतिमा से पृथक् और 'सनिवेस अंग' वाली थी। मांचीपुरी गुंफा में बनी दृश्यावली से भी 'कलिंगजिन' के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। गुंफा के मुख्य भाग में कुडेपसिरि, खारवेल और राजकुमार वासुक द्वारा "कलिंगजिन" की पूजा के दृश्य हैं। 'कलिंगजिन' के पीछे कल्पवृक्ष बना है और राज-परिवार के पीछे विद्याधर चित्रित हैं। एक ओर हाथी तथा दूसरी ओर दो रक्षक खड़े दिखाए गए हैं । इसी गुंफा-मांचीपुरी के ऊपरी मंजिल (स्वर्गपुरी) में खारवेल महारानी का लेख है और नीचे की मंजिल में जहां उपर्युक्त पूजा का दृश्य है, कुडेपसिरि और वासुक के लेख हैं। -परमेश्वर सोलंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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